भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में दशकों से कृषि के योगदान को कमज़ोर और मायूसी भरा बताया जाता रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि तमाम शहरीकरण और उद्योगीकरण के बावजूद आज भी देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी खेती-बाड़ी या इसके जुड़े कारोबार पर ही निर्भर है और इसी से अपनी रोज़ी-रोटी कमाती है, लेकिन देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी बमुश्किल 2.5 से लेकर 3.5 फ़ीसदी तक ही रही है।
तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि कोरोना काल में लगाये गये लॉकडाउन की वजह से जब अर्थव्यवस्था के अन्य प्रमुख क्षेत्र या कोर सेक्टर औंधे मुँह गिरे हुए थे तब अर्थव्यवस्था के पहिये को घूमते रहने का काम मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र ने ही किया।
कोरोना काल में GDP की वृद्धि दर 27 प्रतिशत तक ऋणात्मक हो चुकी थी। लेकिन चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसम्बर) में 0.4 प्रतिशत की धनात्मक वृद्धि दर दर्ज़ की गयी है। इस अवधि में कृषि क्षेत्र में 3.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे पहले की दो तिमाहियों (अप्रैल-जून और जुलाई-सितम्बर) में ये आँकड़ा 3.4 फ़ीसदी का था।
3.7 फ़ीसदी रही GDP की वृद्धि दर
राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (NSO) के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक, आधार वर्ष 2011-12 यानी स्थिर मूल्य के मुकाबले चालू वित्त वर्ष (2020-21) की तीसरी तिमाही में 36.22 लाख करोड़ रुपये GDP रही। ये वित्त वर्ष 2019-20 की इसी तिमाही में 36.08 लाख करोड़ रुपये थी। इस तरह जीडीपी में 0.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। दूसरे शब्दों में कहें तो बीती तिमाही में 3.7 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज़ रही जबकि 2019-20 की इसी अवधि में ये 3.3 प्रतिशत थी।
कृषि क्षेत्र में 0.5 प्रतिशत की तेज़ी
कुलमिलाकर, बीती तिमाही में जहाँ अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों की सामूहिक वृद्धि दर में 0.4 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ वहीं कृषि क्षेत्र में 0.5 प्रतिशत की तेज़ी दर्ज़ हुई। इन आँकड़ों से एक बार फिर ये साबित हुआ है कि कोरोना काल का दुष्प्रभाव अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टर्स की तुलना में कृषि क्षेत्र पर सबसे कम रहा है।
अब भी सबसे ख़राब दशा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की बनी हुई है। इसकी वृद्धि दर 1.6 प्रतिशत रही। इसके अलावा निर्माण क्षेत्र में 6.2 प्रतिशत जबकि बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगी सेवाओं में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ हुई। कोर सेक्टर यानी 8 बुनियादी उद्योगों वाले क्षेत्र का उत्पादन इस साल जनवरी में मामूली रूप से (0.1 प्रतिशत) से बढ़ा था। ये बढ़ोत्तरी भी मुख्य रूप से उर्वरक, इस्पात और बिजली के उत्पादन में हुई वृद्धि के कारण थी। माँग और ख़पत बढ़ने के वजह से नहीं। यही सबसे चिन्ता की वजह बनी हुई है।