कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है, हालांकि कुछ विश्लेषक देश की जीडीपी में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के योगदान का हवाला देकर इस पर सवाल भी उठाते हैं। विश्लेषक आंकड़ों का हवाला देकर ये बताते हैं कि देश की आबादी का करीब 50 फीसदी मानव संसाधन कृषि क्षेत्र में है, इसके बाद भी ये क्षेत्र जीडीपी में 15-16 फीसदी ही योगदान कर पाता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि इन तथ्यों के बावजूद क्यों भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है कृषि और कैसे इस क्षेत्र में आ रहा है बदलाव?
पिछले करीब दो साल कोविड 19 वैश्विक महामारी से बुरी तरह प्रभावित रहे हैं। वैश्विक आपदा कोरोना के असर से दुनिया के सभी प्रभावित देशों की तरह ही भारत की भी आर्थिक गतिविधियां क़रीब-क़रीब ठप पड़ गईं, जिससे वित्त वर्ष 2020-2021 की पहली छमाही में जीडीपी में 14.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, दूसरी छमाही में भी 0.3 फीसदी की मामूली वृद्धि ही अनुमानित है। दूसरी ओर, इसी दौरान अगर कृषि विकास दर की बात करें तो वहां 3.6 फीसदी की बढोतरी दर्ज हुई। वहीं वित्त वर्ष 2021-2022 कृषि विकास दर की बात करें तो वहां 3.9 फीसदी की बढोतरी दर्ज हुई।
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इन आंकड़ों ने ये साबित किया कि बाक़ी तमाम क्षेत्र अगर अच्छी विकास दर हासिल कर रहे हैं तो विपरीत परिस्थितियों में नकारात्मक विकास में भी जा सकते हैं, जबकि कृषि विकास में एक स्थायित्व है, मज़बूती है और ये मज़बूती रीढ़ की हड्डी जैसी है। इस साल पेश की गई आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021-22 में देश की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 20.2 फीसदी थी, जो 2021-22 में 18.8 फीसदी दर्ज की गई है। कृषि विकास दर में लगातार दो वित्तीय वर्ष में ऊपर की ओर जाता ये ग्राफ एक महत्वपूर्ण संकेत है।
जीडीपी में कृषि क्षेत्र का क़रीब 20 फीसदी का योगदान क़रीब दो दशक पहले देखा गया था। साल 2000 से लेकर 2003 तक लगातार दो वित्तीय वर्ष में सूखा पड़ा था, जिससे कृषि विकास दर में भारी गिरावट हुई थी। इसके बाद 2003-04 में 9 फीसदी से ज़्यादा की वृद्धि के साथ कृषि विकास दर वापस पटरी पर लौटी थी। 2003-4 में जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 20.7 फीसदी थी, जिसके बाद से अब जाकर ये 19.9 फीसदी पहुंची है।
5 ट्रिलियन इकोनॉमी का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य हासिल करने के लिए कृषि विकास दर का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर चढ़ना ज़रूरी है। अगर हम 2014 की एसएएस रिपोर्ट (सिचुएशन असेसमेंट सर्वे) और मौजूदा रिपोर्ट की तुलना करें तो फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्तियों में 22.6 फीसदी की वृद्धि देखते हैं। कृषि क्षेत्र का ये विकास सिर्फ फसल उत्पादन पर निर्भरता का नतीजा नहीं है, पिछले एक दशक में पशुपालन, डेयरी, मछलीपालन जैसे कृषि संबद्ध क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ने से सकारात्मक आंकड़े सामने आने शुरू हुए हैं।
देश में पशुधन विकास की सकारात्मक रफ्तार
पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है। पारंपरिक रूप से किसान परिवारों में मवेशी पालन होता रहा है, हालांकि पिछले एक दशक में देसी गायों और साथ ही भैंसपालन में चारा का खर्च बढ़ने के अनुपात में दूध की कीमत नहीं बढ़ने से पशुपालकों की मुश्किलें भी बढ़ी हैं। इसके बावजूद कृषि क्षेत्र में बढोतरी के प्रमुख प्रेरक के रूप में पशुपालन उभर कर सामने आया है। पशुपालन और डेयरी क्षेत्र में भारत के महत्व का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि विश्व दुग्ध उत्पादन का 19 फीसदी योगदान यहां का है, 16.5 करोड़ टन दूध उत्पादन भारत करता है।
पिछले 5 साल के विकास को साल 2019-20 के अंत से देखें तो पशुधन क्षेत्र 8.15 फीसदी के सीएडीआर पर बढ़ रहा है। मोटे तौर पर पशुपालन किसान परिवारों में स्थायी आय का साधन बना रहा है और पशुधन से किसान परिवारों की कुल मासिक आय का लगभग 15 फीसदी पशुधन के जरिये प्राप्त होता है। पशुपालन छोटे किसानों, भूमिहीनों के लिए ये स्थायी आय काफी कारगर है।
मछली पालन में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक
भारत के जीडीपी में मछलीपालन की हिस्सेदारी तो महज 1.1 फीसदी ही है, लेकिन वैश्विक उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है। भारतीय में वैश्विक मछली उत्पादन का लगभग 6.3 प्रतिशत उत्पादन होता है। ये कृषि क्षेत्र का 5.15 फीसदी है। खास बात ये है कि देश के कुल निर्यात का करीब 10 फीसदी मछली और मछली उत्पाद हैं यानी भारतीय मछली पालन देश में विदेशी मुद्रा का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
कास्तकार किसानों से ज़्यादा है कृषि मजदूरों की संख्या
कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में रोज़गार की बात करें तो कुल कामकाजी आबादी का 40 प्रतिशत यहीं काम करती है। कुल ग्रामीण आबादी का करीब 70 फीसदी कृषि और संबद्ध क्षेत्रों पर पूरी तरह निर्भर है। कृषि मजदूरों की संख्या किसानों से ज़्यादा है, इसलिए ये आंकड़ा उभरकर आता है कि 40 फीसदी आबादी के कार्यरत होने के बावजूद 20 फीसदी से भी कम जीडीपी में योगदान है। कास्तकार किसानों की संख्या करीब 12 करोड़ है, जबकि कृषि मजदूरों की संख्या 14.5 करोड़ है। देश की कुल आबादी का 10 फीसदी से भी कम कास्तकार किसान कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में देश की जीडीपी का करीब 20 फीसदी योगदान दे रहे हैं।
स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22
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