पंजाब में फसल की खरीद का भुगतान किसानों के बैंक खातों में सीधे करने के आदेश से नाराज़ चल रहे आढ़तियों से बातचीत के लिए मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने 22 मार्च का वक़्त दिया है। गेहूँ के ख़रीद सीज़न से ऐन पहले पंजाब में एशिया की सबसे बड़ी खन्ना अनाज मंडी के आढ़तिये केन्द्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय के उस फ़ैसले से ख़फ़ा हैं जिसमें पंजाब सरकार को हिदायत दी गयी है कि वो किसानों का भुगतान सीधा उनके बैंक खातों में ही करने का इन्तज़ाम करे।
आढ़तियों के तेवर को देखते हुए फ़िलहाल पंजाब सरकार ठिठक गयी है। हालाँकि, प्रादेशिक खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में केन्द्र सरकार के आदेश को लागू करने से जुड़े पहलुओं पर चर्चा जारी है, क्योंकि किसानों को सीधे भुगतान के लिए उनके खेतों के रिकॉर्ड को भी बैंक खाते और आधार नम्बर से जोड़ना ज़रूरी है। उधर, आढ़तियों को शक है कि केन्द्र सरकार धीरे-धीरे फसल खरीद सिस्टम से उन्हें बाहर करना चाहती है। उन्होंने मौजूदा व्यवस्था को ही जारी रखने की माँग को लेकर एक अप्रैल से हड़ताल पर जाने का एलान भी किया है।
केन्द्र सरकार के आदेश में कहा गया है कि अनाज ख़रीद पोर्टल पर फ़सल बेचने वाले किसानों की ज़मीन के मालिकाना हक़ यानी ज़माबन्दी का भी ब्यौरा भी दिया जाए। ताकि आढ़तियों से ख़रीदारी करने वाला भारतीय खाद्य निगम (FCI) ज़मीन के ब्यौरे का सत्यापन कर सके। आदेश में ये भी कहा गया है कि ऐसी व्यवस्था को क़ानूनी जामा पहनाने के लिए पंजाब सरकार अपने Agricultural Produce Market Committee Act, 1961 (APMC Act) में भी आगामी ख़रीदारी को शुरू करने से पहले बदलाव करे।
अभी क्या है व्यवस्था?
पंजाब में अभी आढ़तियों के माध्यम से किसानों को उनकी बेची गयी उपज का भुगतान किया जाता है। दरअसल, जब किसान अपनी उपज लेकर मंडी में आढ़तियों के पास पहुँचते हैं तब आढ़तिये मंडियों में फसल खरीदकर, उसकी सफ़ाई करवाकर उसे बोरियों में भरने और लोडिंग-अनलोडिंग का काम करते हैं। अगर फसल में नमी ज़्यादा होती है तो आढ़तिये ही उसे पंखे से सुखवाते हैं। फिर सुबह या शाम को होने वाली बोली में खरीद एजेंसी FCI के इंस्पेक्टर फसल को खरीदते हैं और ट्रकों में लोडिंग करवाकर गोदामों में भेजते हैं।
इन गतिविधियों के लिए आढ़तियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के अलावा 2.5 फ़ीसदी आढ़त और प्रदेश सरकार को मिलने वाले 3 प्रतिशत देहात विकास फंड का भुगतान किया जाता है। इसी रक़म में से आढ़तिये किसानों को ऑनलाइन या चैक से भुगतान करते हैं। वैसे कई बार आढ़तियों से किसान एडवांस में भुगतान भी ले जाते हैं। इसे बाद में किसान को होने वाले अन्तिम भुगतान में आढ़तिये एडजस्ट कर लेते हैं।
अब क्या बदलाव होगा?
अब केन्द्र सरकार चाहती है कि पंजाब सरकार सीधे किसानों के खाते में उनकी रकम डाले। यानी, आढ़तिया को भुगतान की चेन से बाहर निकलना होगा। दूसरी ओर, औरों की ज़मीन पर खेती करके मंडी में उपज बेचने वाले किसान अपनी ज़मीन का रिकार्ड नहीं दे सकते, क्योंकि सरकारी दस्तावेज़ों में वो ज़मीन के मालिक तो होते ही नहीं। अलबत्ता, खेती-किसानी का अहम दारोमदार इसी तबके पर होता है। इस तबके को आढ़तियों से काफ़ी सहारा था, क्योंकि इनकी ज़मीन के मालिकाना हक़ से आढ़तियों का कोई वास्ता नहीं होता।
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क्यों मचा आढ़तियों में कोहराम?
जब आढ़तियों को केन्द्र सरकार के नये फ़रमान का पता चला तो उनमें कोहराम मच गया। इसके बाद आढ़तियों के अलग-अलग एसोसिएशन्स ने बैठकें की और बेमियादी हड़ताल पर जाने की घोषणा कर दी। आढ़तिये इस बात से भी ख़फ़ा हैं कि पंजाब सरकार ने कथित रूप से भरोसा दिलाया है कि गेहूँ के आगामी ख़रीद सीज़न से ही केन्द्र सरकार का आदेश लागू कर दिया जाएगा। माना जा रहा है कि किसानों को सीधे भुगतान का मुद्दा पंजाब सरकार के परेशानी का सबब बन सकता है।
क्या है हाईकोर्ट का आदेश?
तीन साल पहले APMC में संशोधन करके अमरिन्दर सिंह सरकार ने ऐसी ही व्यवस्था बनायी थी। अकाली-भाजपा गठबन्धन सरकार के वक़्त भी चंडीगढ़ हाई कोर्ट ने किसानों को चेक से भुगतान करने का आदेश दिया था। तब भी आढ़तियों ने इसका पुरज़ोर विरोध किया था तो तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने बीच का रास्ता निकाला कि यह फैसला किसानों पर छोड़ना चाहिए कि वो सरकारी एजेंसी से भुगतान लेना चाहते हैं या आढ़ती से।
इसी 5 मार्च को पंजाब विधानसभा में गरमाये इसी मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के विधायक अमन अरोड़ा ने कहा कि इस साल पंजाब में 24 हज़ार करोड़ रुपये की गेहूँ की ख़रीदारी होनी है। ऐसे में जो लोग ठेके पर ज़मीन लेकर खेती करते हैं, उन्हें पेमेंट कैसे होगी? वो ज़माबन्दी का ब्यौरा कैसे देंगे? इससे तो असली किसान और मंडियों का सिस्टम दोनों तबाह होंगे। उन्होंने समस्या का समाधान निकालने के लिए सदन की एक ख़ास समिति बनाने की भी माँग की। हालाँकि, पंजाब सरकार ख़ामोश रही।
इस बीच, ऐसी ख़बरें भी हैं कि विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आन्दोलन कर रहे किसानों के कई संगठन केन्द्र सरकार के इस फैसले से खुश हैं कि भुगतान सीधे उनके खातों में आ जाएगा, क्योंकि ये किसानों की पुरानी माँग रही है। लेकिन आढ़तिये चाहते हैं कि जैसे उन्होंने किसानों का समर्थन किया वैसे ही किसान भी उनका समर्थन करें और उनके विरोध का हिस्सा बने। इसे लेकर दिल्ली में किसानों नेताओं के साथ आढ़तियों की बैठक भी हुई।