एक ओर नए कृषि कानून (New Agriculture Law) के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर जमे किसान कॉरपोरेट कल्चर को कोस रहे हैं। वहीं दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में अडानी, वॉलमार्ट, सफल, बिग बास्केट, रिलायंस फ्रेश जैसी नामी गिरामी कंपनियों से सेब बागवान भारी मुनाफा कमा रहे हैं।
इन बड़ी कंपनियों को सेब बेचने से बागवानों का पैकिंग, ग्रेडिंग और ढुलाई का करीब ढाई सौ रुपये प्रति पेटी खर्च भी बच रहा है।
दरअसल व्यापारी बागवानों से पेटी के हिसाब सेब (Apple) खरीदते हैं। पेटी में कितने किलो सेब होते हैं, इसका हिसाब भी नहीं रहता। इसके अलावा कभी-कभी आढ़ती भुगतान को लटका भी देते हैं। सीधे बड़ी कंपनियों को सेब बेचने से फायदा बढ़ गया है।
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88 रुपये प्रति किलो बिका सेब
अडानी एग्रीफ्रेश हिमाचल के बागवानों से प्रति किलो के हिसाब से सेब खरीदती है। इस साल कंपनी ने सेब के रंग, आकार और गुणवत्ता के हिसाब से बागवानों को 88 रुपये प्रति किलो के हिसाब से पैसे का भुगतान किया है।
ज्यादा समय तक फ्रेश रहता है यह सेब
अधिक ऊंचाई के सेब की भंडारण अवधि अधिक होती है। कोल्ड स्टोर में रखा यह सेब दिसंबर से जून तक देश के विभिन्न राज्यों में भेजा जाता है।
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7 से 10 दिनों में भुगतान
ये कंपनियां सेब खरीदने के बाद 7 से 10 दिनों के भीतर बागवानों को ऑनलाइन भुगतान कर रही हैं। इससे बागवानों के साथ धोखाधड़ी की आशंका भी कम रहती है। हिमाचल प्रदेश मार्केटिंग बोर्ड के मुताबिक बागवानों के सामने यह विकल्प है कि वह जहां अच्छा दाम मिले, वहां अपने सेब बेच सकते हैं।
क्वालिटी की जांच
अडानी एग्रीफ्रेश (Adani Agrifresh) की सैंज में एक लैब है। इसमें बागवानों को जानकारी दी जाती है कि इस सेब में किन पोषक तत्वों की कमी है। इसके लिए एक निर्धारित शुल्क लिया जाता है।