भारत के बासमती चावल की सुगंध अब विदेशों में फैल रही है। साल 2020-21 में भारत से 30 हज़ार करोड़ रुपये मूल्य का 46.30 लाख मीट्रिक टन चावल विदेश भेजा गया। इससे जहां बासमती धान की खेती कर रहे किसानों को आर्थिक लाभ हो रहा है, वहीं देश में बासमती धान का रकबा भी बढ़ रहा है। इस समय देश में किसान बासमती चावल की करीब 33 प्रजातियों की बुआई कर रहे हैं। बासमती चावल भारत से चीन, पाकिस्तान, अमेरिका, खाड़ी देशों सहित दुनिया के लगभग 125 देशों में निर्यात किया जाता है। इससे गैर-बासमती चावल की तुलना में अब बासमती चावल की खेती में किसानों का रूझान तेज़ी से बढ़ रहा है।
बासमती धान की उन्नत प्रजातियां
मेरठ के मोदीपुरम स्थित बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि वर्तमान में भारत में बासमती धान की 33 प्रजातियां हैं। गुणवत्ता के आधार पर तरावडी बासमती, टाइप 3, बासमती 370, रणबीर बासमती और CSR-30, उम्दा पारम्परिक प्रजातियों में से हैं। इन प्रजातियों की उपज क्षमता तो कम है, लेकिन उच्च गुणवत्ता होने के कारण देश-विदेश में इनका अच्छा दाम मिलता है। ये प्रजातियां अधिक बढ़ने वाली होती है। इन प्रजातियों में खाद एवं पानी की आवश्यकता भी कम होती है।
इसके अलावा, बासमती की पूसा बासमती-1, पूसा बासमती-1121, हरियाणा बासमती-1, वल्लभ बासमती-22, वल्लभ बासमती-23, वल्लभ बासमती-24, उन्नत पूसा बासमती-1, पूसा बासमती-6, पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1609, पूसा बासमती-1637, पूसा बासमती-1718, पूसा बासमती-1728, पंत बासमती-1, पंत बासमती-2, पंजाब बासमती-2, पंजाब बासमती-3, मालवीय बासमती -10-9, पंजाब बासमती-4, हरियाणा बासमती-2 और पंजाब बासमती-5 भी विकसित की गई है। इनकी उपज अपेक्षाकृत ज़्यादा है। डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि किसान अगर बासमती धान की खेती में नर्सरी से लेकर कटाई तक कुछ ज़रूरी बातों पर ध्यान देते हैं तो बेहतर क्वालिटी की अच्छी पैदावार किसान ले सकते हैं। बासमती धान की खेती के लिए प्रजाति के अनुसार 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा पर्याप्त होती है।
नर्सरी बीज डालने के पहले इन बातों का रखें ख्याल
डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती धान की नर्सरी बुवाई से पहले खेत को लेज़र लेवलर द्वारा समतल ज़रूर कराएं और सम्भव हो तो छोटी-छोटी क्यारियां बना लें। बासमती के बीज सदैव प्रमाणित संस्था या अनुसंधान केन्द्र से ही खरीदें। बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन भी उच्च गुणवत्ता युक्त बासमती के बीज उपलब्ध कराता है।
बासमती धान की खेती करने से पहले बीजोपचार करना ज़रूरी
डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि नर्सरी में बीज बुवाई से पहले बीज का शुद्धीकरण ज़रूर करें। इसके लिए एक टब या बाल्टी में एक किलो सादा नमक व 10 लीटर पानी का घोल बनाकर उसमें बीज को धीरे-धीरे छोड़ें। ऐसा करने से हल्के बीज सतह पर तैरने लगते हैं। इन हल्के बीजों को निकालकर अलग कर देना चाहिए। अच्छे बीजो को साफ पानी से दो बार ज़रूर धोएं।
फिर 20 ग्राम कार्बेडाजिम और एक ग्राम स्ट्रप्टोसाइक्लीन और पानी की उचित मात्रा के घोल में 10 किलो बीज भिगोकर 24 घन्टे के लिए छाया में रखें। इसके बाद जूट के बैग में ढ़ेर बनाकर अंकुरित होने के लिए 24 घंटे के लिए छायादार जगह पर रख दें। बीजों को सड़ने से बचाने के लिए नमी अवश्य बनाए रखें। ऐसा करने से एक समान अंकुरण होता है।
एक किलोग्राम बीज को बोने के लिए कम से कम 25 वर्ग मीटर क्षेत्र अवश्य लेना चाहिए। नर्सरी की क्यारी अच्छी तरह से समतल होनी चाहिए। नर्सरी क्षेत्र की अन्तिम पडलिगं से ठीक पहले नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक एवं आयरन का सन्तुलित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। अंकुरित बीजों को शाम के समय एक सामान रूप से छिटक कर बोना चाहिए। बीज छिटकते समय नर्सरी में 2-3 सेंटीमीटर पानी भरा होना चाहिए। नर्सरी क्षेत्र में खरपतवार नहीं होने चाहिए एवं पानी का स्तर धीरे-धीरे बढाना चाहिए। पौध को पानी भरकर ही उखाड़ना चाहिए।
बासमती धान की रोपाई करते समय इन ज़रूरी बातों का रखें ध्यान
ड़ॉ रितेश शर्मा ने कहा कि बासमती धान की खेती करने वाले किसान अपने खेतों को रबी फसल की कटाई के बाद लेजर लेवलर द्वारा समतल ज़रूर काराएं। संभव हो तो खेती का आकार छोटा रखें। इससे सिंचाई में खर्च होने वाले पानी की मात्रा की बचत की जा सकती है। बासमती धान की खेती के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली चिकनी या मटियारी मिट्टी उपयुक्त होती है। बासमतीधान की खेती के लिए समय से 2 से 3 बार जुताई करनी चाहिए। साथ ही खेतों का मजबूत मेड़ भी बनाना चाहिए। हरी खाद की बुवाई अवश्य करें। इसके लिए ढैचा/सनई/लोबिया या मूंग फसल की बुवाई करें। बासमती धान की रोपाई से पहले अपने खेतो में पानी भर कर हरी खाद को पडलिंग के द्वारा खेत में पलट दें। इससे जुताई लागत भी कम की जा सकती है।
किसान मिट्टी जॉच रिपोर्ट के आधार पर ही अपने खेत में अन्तिम पडलिंग से ठीक पहले फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक एवं आयरन की सन्तुलित मात्रा का प्रयोग करें। रोपाई के लिए 20 से 25 दिन की पौध का ही प्रयोग करना चाहिए। पूसा बासमती 1509 की 18-22 दिन की पौध होने पर रोपाई कर देनी चाहिए। पौध को उपचारित करने के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम प्रति लीटर पानी की दर के घोल में कम से कम एक घंटे के लिए डुबो कर अवश्य रखें। रोपाई से पहले पौध का ऊपरी भाग लगभग 3 से 4 सेन्टीमीटर तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए। पौध की रोपाई हमेशा पंक्तियों में ही करनी चाहिए। 2 से 3 मीटर रोपाई करने के बाद 40 सेन्टीमीटर के रास्ते छोड देने चाहिए। ऐसा करने से हवा व सूर्य का प्रकाश मिलने के कारण कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है और उपज में वृद्धि होती है।
रोपाई करते समय पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी 20 सेन्टीमीटर रखनी चाहिए। पौध की रोपाई 2 से 3 सेन्टीमीटर से ज्यादा गहरी नहीं करनी चाहिए। नाली, मेड़ों, खेतों व उनके आस-पास के क्षेत्र को साफ रखना चाहिए। अधिक फुटाव के लिए रोपाई के 15 से 25 दिन के बीच खेत में पानी भर कर हल्का पाटा 15 से 18 किलोग्राम वजन का एक से दो बार चलाना चाहिए।
ये भी पढ़ें- Seed Drill Farming Of Paddy: धान की सीधी बुआई तकनीक का आसान मतलब है कम लागत में अधिक उत्पादन
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।