किसी भी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए मात्र बुवाई या रोपाई कर देने से अच्छी उपज नहीं प्राप्त की जा सकती। रोपाई के बाद खाद, उर्वरक, सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन पर भी विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होती है। बासमती धान की खेती के लिए कब और कैसे खाद, उर्वरक, सिंचाई और खरपतवार का प्रबंधन करें, इसके बारे में किसान ऑफ़ इंडिया ने मेरठ के मोदीपुरम स्थित बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा से विस्तार से जाना।
बासमती धान में उर्वरक एवं खाद प्रबंधन
डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि बासमती धान की परम्परागत प्रजातियों में अपेक्षाकृत कम नाइट्रोजन की ज़रूरत होती है। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच और फसल की मांग के आधार पर आवश्यकतानुसार करना चाहिए। पूरी फसल के दौरान ऊंची बढ़ने वाली प्रजातियों के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम डीएपी एवं 70 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट की मात्रा पर्याप्त होती है।
बौनी प्रजातियों के लिए यूरिया 140 किलोग्राम और बाकि उर्वरकों की मात्रा समान है। डीएपी, एमओपी (पोटाश) और जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा अंतिम पडलिंग के समय प्रयोग करनी चाहिए। जिंक को कभी भी फॉस्फेटिक उर्वरको के साथ मिलाकर न दें। यूरिया की आधी मात्रा रोपाई के 7-10 दिन बाद और बाकी बची मात्रा को दो बार में आवश्यकतानुसार प्रयोग करें। गोभ अवस्था आने के बाद यूरिया का प्रयोग नहीं करना चाहिए। गोभ में बाली बनते समय घुलनशील पोटाश (0:0:50) की 5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से दानों में चमक आती है। दाने का विकास अच्छा होता है और बीमारी भी कम लगती है।
बासमती धान की खेती में कब और कैसे करें सिंचाई?
डॉ. रितेश शर्मा के अनुसार, रोपाई के समय में केवल 2-3 सेंटीमीटर पानी काफ़ी है। खेतों में रोपाई के बाद दरार बनने से पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बाद में जल स्तर धीरे-धीरे बढ़ा कर 3-5 सेंटीमीटर तक कर देना चाहिए। यह 3-5 सेंटीमीटर जल स्तर पहले 30 दिन तक बनाये रखें। इससे खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलेगी। इसके बाद दाने भरने तक केवल खेत गीला रखने से भी पूरी पैदावार मिलेगी। खेत मे दरार न पड़ने दें। बाली निकलने एवं दाने में दूध बनने की दशा में पानी खेत में भरा रखने से लाभ होता है।
बासमती धान की खेती में खरपतवार प्रबंधन
खरपवार नियंत्रण के लिए मजदूर उपलब्ध होने पर धान की दो बार 20 वें और 40वें दिन में निराई कर देनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण हेतु ब्यूटाक्लोर 0.6 किलोग्राम सक्रिय पदार्थ अथवा प्रीटिलाक्लोर 50 ई.सी. 500 मिलीलीटर अथवा आक्सादाजिल 80% WP 40 ग्राम सक्रिय पदार्थ की मात्रा का प्रति एकड़ प्रयोग रोपाई के 1-3 दिन के अन्दर करना चाहिए। खरपतवारनाशी प्रयोग करते समय खेत में 2-3 सेंटीमीटर पानी होना चाहिए।
बासमती धान में पाटा तकनीक का प्रयोग करने के फ़ायदे
डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती धान के खेतों में अधिक फुटाव (अधिक कल्ले निकलना) के लिए किसान कई तरह की दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। जबकि किसी भी रसायन का सुझाव अधिक फुटाव के लिए नहीं किया गया है। खेत में अधिक फुटाव के लिए आसान तकनीक बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा विकसित की गई है। इस तकनीक में धान की रोपाई करने के बाद 15 से 25 दिन के मध्य एक हल्का पाटा या सीधी लकड़ी का लट्ठ (जिसका वजन लगभग 12-18 किलोग्राम तक हो व लम्बाई लगभग 2 से 3 मीटर हो) उसको खेत में पानी भरकर एक अथवा दो बार रस्सी की सहायता से चलाया जा सकता है। इस तकनीक का उपयोग करने से कई फ़ायदे होते हैं।
डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि बासमती धान की खेती में पाटा तकनीक का इस्तेमाल करने से धान में ज़्यादा कल्ले निकलते हैं। मिट्टी की ऊपरी सतह अस्त-व्यस्त होने से भूमि में वायु संचार अधिक होता है और जड़ों का विकास बहुत अच्छा होता है। भूमि में दरार नहीं पड़ती और पानी की बचत होती हैं। पत्ती लपेटक और तना छेदक कीट से फसल की शुरुआती अवस्था में बचाव होता है। पूरे पौधे की बढ़वार सही तरीके से होती है। छोटे-छोटे खरपतवारों को भी नष्ट करने में मदद मिलती है और अधिक उपज प्राप्त होती है।
कटाई, मड़ाई और भंडारण
जब बाली मे 85 से 90 प्रतिशत दानो का रंग हरे से सुनहरे पीले रंग में बदल जाय तो फसल को ज़मीन की सतह से 6-8 इंच ऊपर से काट लेना चाहिए। कटाई के तुरंत बाद मड़ाई करके फसल को छांव मे सुखाना चाहिए। धूप में सुखाने पर चावल की क्वालिटी खराब हो जाती है। 10-14 फ़ीसदी नमी पर सुखाकर बोरों में भरकर भण्डारण ऐसी जगह करे जहां नमी न हो।
अच्छी क्वालिटी की पैदावार के लिए कुछ ज़रूरी बातें
डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती धान की खेती करने के लिए प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करना चाहिए। बीज उपचार ज़रूर करना चाहिए। एक किलोग्राम बीज नर्सरी के लिए कम से कम 25 वर्ग मीटर क्षेत्र अवश्य रखें। पौध उखाड़ने से पहले नर्सरी में पानी भरें और पौध की जड़ों को उखाड़ने के बाद आधा से एक घंटे तक ट्राइकोडर्मा अथवा कार्बेन्डाजिम के घोल में डूबोकर पौध उपचार करें। 20 से 25 दिन की नर्सरी पौधरोपण का ही प्रयोग करें। 20 से.मी. x 20 से.मी. की दूरी पर लाइनों में रोपाई करें। बची हुई नर्सरी को अवश्य नष्ट कर दें।
उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जाँच कराकर आवश्यकतानुसार करें। यूरिया का उपयोग कम एवं गोभ की अवस्था से पहले कर लेना चाहिए। पोटाश और जिंक का उपयोग ज़रूर करें। खेत में लगातार पानी भरकर न रखें और घास व खरपतवार न होने दें। खेत को हमेशा साफ रखें। रोगित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें। कल्ले निकलते समय एवं बाली निकलते समय खेत में पानी की कमी न होने दें। रसायन का उपयोग केवल वैज्ञानिक सलाह से ही करना चाहिए। बाली निकलने के बाद कोई स्प्रे नहीं करना चाहिए। कटाई ज़मीन की सतह से 6-8 इंच ऊपर से करें।
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