ग्लिरिसिडिया (Gliricidia): भारतीय खेती की सबसे बड़ी चुनौती है हमारी मिट्टी के उपजाऊपन में लगातार आ रही गिरावट। देश का 37 प्रतिशत भूभाग यानी करीब 12 करोड़ हेक्टेयर इलाका घटिया मिट्टी की समस्या से प्रभावित है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति का सीधा नाता किसानों की ख़ुशहाली से है। मिट्टी की सेहत बिगड़ने की असली वजह असंतुलित खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल है जिसकी वजह से खेतों में ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इससे उत्पादकता और किसान की कमाई, दोनों प्रभावित होती है।
किसान की आमदनी गिरती है जो वो घटिया मिट्टी से और मुँह चुराने लगते हैं। इससे देखते ही देखते ऊसर बढ़ने लगता है। लिहाज़ा, मिट्टी के पोषण के लिए दीर्घकालिक उपाय करना बेहद ज़रूरी है। हरी पत्तियों की खाद ‘ग्लिरिसिडिया’ की खेती ऐसा ही एक शानदार वैज्ञानिक उपाय है। इसे सभी किस्म की मिट्टी और पर्यावरण में उगाया जा सकता है।
मिट्टी को पोषण देने का शानदार उपाय
ICAR-भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल के विशेषज्ञों के अनुसार, देश में खेतों में पोषक तत्वों की माँग और पूर्ति में करीब 1 करोड़ टन का अन्तर है। हालाँकि, मिट्टी के गिरते उपजाऊपन की रोकथाम और टिकाऊ फसल उत्पादन के लिए अनेक उपाय मौजूद हैं। Gliricidia sepium सबसे अधिक आशाजनक और जलवायु अनुकूल विकल्प है। ग्लिरिसिडिया एक मध्यम आकार का, अर्ध-पर्णपाती, तेज़ी से बढ़ने वाला बहुउद्देशीय पौधा है। मध्य अमेरिका, मैक्सिको, पश्चिम अफ्रीका, वेस्टइंडीज और दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में इसके ज़रिये मिट्टी को भरपूर पोषण देने के लिए उगाया जाता है।
ग्लिरिसिडिया को छोटे और सीमान्त किसानों के लिए सबसे अच्छी खाद बताया गया है। हरी पत्तियों की खाद ‘Gliricidia’ रासायनिक खाद का भी विकल्प है। यह पौधा सूखे का मुकाबला करने और मिट्टी में नमी को सुरक्षित रखने के अलावा उसे पोषक तत्वों से भरपूर बनाता है। ग्लिरिसिडिया से हरी खाद, चारा और ईंधन भी प्राप्त होता है। इसका उपयोग बायोचार (पायरोलाइज्ड बायोमास) तैयार करने के लिए भी किया जाता है।
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जैविक नाइट्रोजन का स्रोत है ग्लिरिसिडिया
ग्लिरिसिडिया अपनी जड़-गाँठों के ज़रिये राइजोबिया के साथ सहजीवी सम्बन्ध बनाकर पौधों को नाइट्रोजन उपलब्ध करवाता है। इस तरह Gliricidia से वायुमंडलीय नाइट्रोजन जैविक स्थिरीकरण होता है। Isotope dilution नामक वैज्ञानिक विधि से पाया गया है कि एकल फसल प्रणाली में Gliricidia से मिट्टी को 70 से 274 किग्रा प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष नाइट्रोजन की प्राप्ति होती है। Gliricidia की हरी पत्ती की खाद को खेत में डालने से मक्का, चना, बाजरा, अरहर जैसी फसलों की पैदावार और मिट्टी के उपजाऊपन में टिकाऊ सुधार देखा गया है। इस खाद को 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डालने से मक्का की पैदावार में 1.7 से 2.1 टन प्रति हेक्टेयर अधिक हुई है।
फसलचक्र और सघन फसल प्रणाली में भी ग्लिरिसिडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे किसी भी तरह की मिट्टी और जलवायु में उगाया जा सकता है। इसके बावजूद ये वर्षा आधारित फसल प्रणाली यानी बारानी खेती के लिए ख़ासतौर पर बेहद लाभदायक है। इसलिए किसानों को खेत-तालाब की मेड़ पर Gliricidia लगाने की सलाह दी जाती है। रासायनिक उर्वरकों के साथ हरी पत्ती की खाद के रूप में Gliricidia के इस्तेमाल से ऊसर के जैविक गुणों को भी सुधारकर उन्हें उपजाऊ खेतों में बदला जा सकता है।
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ज़ोरदार हरी खाद है ग्लिरिसिडिया
एक टन ग्लिरिसिडिया हरी पत्ती की खाद से लगभग 21 किग्रा नाइट्रोजन, 2.5 किग्रा फॉस्फोरस, 18 किग्रा पोटाशियम, 85 ग्राम जिंक, 164 ग्राम मैंगनीज, 365 ग्राम कॉपर और 728 ग्राम आयरन (लौह तत्व) मिट्टी को मिलते हैं। इसके अलावा यह सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बोरॉन और मॉलिब्डेनम आदि तत्व भी काफ़ी मात्रा में प्रदान करता है। सूक्ष्मजीवों जैसे कवक, बैक्टीरिया, एक्टिनोमाइसेट्स, माइक्रोबियल बायोमास कार्बन और नाइट्रोजन के माध्यम से मिट्टी के जैविक गुणों में सुधार होता है।
ग्लिरिसिडिया हरी पत्ती की खाद डालने से मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों में भारी सुधार होता है। Gliricidia में वायुमंडल से कार्बनडाइऑक्साइड को सोखने और इसे बायोमास के रूप में इक्कठा करने की क्षमता है। इससे करीब 33 टन प्रति हेक्टेयर तक शुष्क पदार्थ मिलता है, जो 14.6 टन कार्बन के बराबर है। इसकी कार्बन सीक्वेंस्ट्रेशन दर 0.91 टन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष है। ये मिट्टी के कार्बनिक कार्बन भंडार को बनाये रखने में सीधा योगदान देता है।
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कैसे करें ग्लिरिसिडिया की खेती?
ग्लिरिसिडिया को उगाने की दो विधियाँ हैं। इसके डंठल की सीधे रोपाई की जा सकती है तो इसके बीजों को भी बोया जाता है। जब तने से पौधा तैयार करना हो तो इसकी क़लम को पूरी तरह से विकसित पेड़ की शाखा से ही लेना चाहिए। क़लम को दोनों सिरों पर तिरछा काटा जाता है। फिर 20 से 50 सेमी लम्बी क़लम को मिट्टी में गाड़ देते हैं। यदि ग्लिरिसिडिया को खेत की जीवित बाड़ के रूप में लगाना हो तो क़लम की लम्बाई करीब एक मीटर की होनी चाहिए।
यदि बीज के ज़रिये Gliricidia के पौधे विकसित करने हों तो उचित अंकुरण के लिए बीज को रात भर पानी में भिगोना चाहिए। नर्सरी में भीगे हुए बीज को प्लास्टिक के पाउच और पॉलीथीन की थैलियों में मिट्टी, रेत और गोबर की खाद की समान मात्रा के मिश्रण में बोना चाहिए। उचित नमी के लिए नियमित रूप से थैलियों में पानी देना चाहिए। इसके बाद खेत-तालाब के मेड़ पर बारिश के मौसम में पौधों की रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के लिए 3 से 4 महीने पुराने पौधों को एक-दूसरे से 50 सेमी की दूरी पर लगाना चाहिए। यदि ग्लिरिसिडिया को ढलान वाली जगह पर लगाना हो पौधों के बीच का फ़ासला 20 सेमी का रखना चाहिए। इससे मिट्टी का कटाव रोकने में मदद मिलती है।
ग्लिरिसिडिया की कटाई
ग्लिरिसिडिया की बढ़वार के दौरान इसे किसी ख़ास देखभाल की ज़रूरत नहीं पड़ती। मिट्टी के बढ़िया पोषण के लिए Gliricidia की साल में तीन बार कटाई-छँटाई करनी चाहिए। इसे ज़मीन से 75 सेमी ऊपर से काटना चाहिए। पहली कटाई-छँटाई खरीफ़ की बुआई से पहले यानी जून में करना चाहिए। दूसरी कटाई रबी की बुआई से पहले नवम्बर में और तीसरी कटाई मार्च में की जा सकती है।
कटाई-छँटाई के बाद Gliricidia के तनों और पत्तियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत की मिट्टी पर फैला देना चाहिए। इस तरह नयी फसल से पहले खेतों को हरी खाद की ख़ुराक़ मिल जाएगी। ग्लिरिसिडिया की पत्तियों में लगभग 2.4% नाइट्रोजन, 0.1% फॉस्फोरस, 1.8% पोटेशियम के अलावा कैल्शियम और मैग्नीशियम की प्रचुर मात्रा पायी जाती है।