Drought Resistant Crops: सूखे की स्थिति से किसानों को अक्सर दो चार होना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण ही हीटवेव, सूखा और बाढ़, तापमान में अचानक से बढ़त, बारिश के पैटर्न में बदलाव आते हैं। ये सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा के लिए सीधा खतरा पैदा करता है। इसमें पानी की कमी एक गंभीर और बढ़ती हुई चिंता है, जो तेज़ी के साथ खाद्य और कृषि पर हावी होती जा रही है। इससे किसानों की पैदावार पर भी असर पड़ा है। इसको देखते हुए सूखारोधी फसलों (Drought Resistant Crops) की ज़रूरत सबसे ज़्यादा पड़ने लगी है।
सूखाग्रस्त क्षेत्रों में खेती (Farming In Drought Prone Areas?)
सूखा प्रतिरोधी फसलें (Drought-Resistant Crops) बदलते मौसम के बावजूद खाद्य आपूर्ति को बनाए रखती हैं। आज के वक्त में सूखा प्रतिरोधी फसलों (Drought-Resistant Crops) की अहमियत दुनियाभर में बढ़ती जा रही है। इसके लिए फसलों की नई-नई किस्मों को उगाने के लिए वैज्ञानिक भी रिसर्च में लगे हैं और कृषि विज्ञान इस मामले में आशाजनक प्रगति भी कर रहा है। आइये जानते हैं कुछ ऐसी ही फसलों (Drought-Resistant Crops) के बारें में, जो सूखाग्रस्त इलाकों के लिए सही मानी जाती हैं, जो कम पानी में भी ज्यादा पैदावार देती हैं।
जौ (Barley)
जौ भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। इस फसल को मुख्य रूप से नवंबर में बोया जाता है और मार्च के आखिरी हफ़्ते तक कटाई की जाती है। शोध से पता चलता है कि जौ सूखा सहनशीलता की श्रेणी में आता है। जौ की फसल में सूखा प्रतिरोध में शामिल कई जीनों की पहचान की गई है। इसका एक प्रमुख जीन एचवीए1 है, जो सूखे की प्रतिक्रिया के साथ एक संबंध दिखाता है।
ज्वार (Sorghum)
ज्वार उपज के मामले में बेहतरीन किस्म है। ये एक बहुत ही खतरनाक कीट हेसियन मक्खी के प्रति भी प्रतिरोधी होती है। ज्वार अत्यधिक सूखा सहनशील फसल (Drought-Resistant Crops) होने के कारण ये देश के उन स्थानों पर उगाने के लिए बेहतरीन साबित होता है जहां पर पानी की समस्या सबसे ज़्यादा है।
ग्वार (Guar)
ग्वार एक सूखा-प्रतिरोधी दलहनी फसल (Drought-Resistant Crops) हैं। इसकी खेती असिंचित और बहुत सूखे वाले क्षेत्रो में सफलतापूर्वक होती है। ग्वार ख़ासतौर से बीज, सब्जी, हरा चारा, खाद और ग्वार गम के रूप में इस्तेमाल में लाया जाता है। ग्वार की खेती वैसे तो हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है। ग्वार की बुआई का सबसे अच्छा समय जुलाई का पहला हफ्ता है।
चिफ़ा (Chifa)
चिफ़ा एक जौ की किस्म है। ये सूखा प्रतिरोधी फसल (Drought-Resistant Crops) है, साथ ही मधुमेह और इस्केमिक रोगों के खिलाफ एक बेहतर फाइबर आहार है। ये नेट ब्लॉच रोग के प्रति भी उत्कृष्ट प्रतिरोध भी है।
पूसा जेजी 16 (Pusa JG 16)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने अपने सहयोगी संस्थानों के साथ मिलकर सूखा सहिष्णु और ज़्यादा उपज देने वाली चने की किस्म ‘पूसा जेजी 16’ विकसित की है। ये मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त इलाके बुंदेलखंड क्षेत्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात के मध्य क्षेत्र के भागों में टर्मिनल सूखे की समस्या को दूर करती है। यहां की सबसे बड़ी समस्या ये है कि कभी-कभी उपज का 50 से 100 फीसदी भी नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है। वहां ये फसल उत्पादकता को बढ़ाती है।
बाजरा (Pearl Millet)
गेहूं और धान के विपरीत, बाजरा सूखाग्रस्त क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में पनपता है। सरकार की ओर से भविष्य के सुपरफूड के रूप में बाजरा को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए सरकार कई तरह की योजनाएं भी चला रही है। वहीं बाजरा में कीटनाशकों और उर्वरक की बमुश्किल आवश्यकता होती है। बाजरा, भारत समेत एशिया के कई देशों में मूल अनाज है। ये फसल गर्म मौसम की चरम सीमा का सामना कर सकती है।
यूएएस 446 गेहूं की फसल (UAS 446 Wheat Crop)
यूएएस 446 गेहूं की एक नई किस्म है। ये किस्म सूखे स्थानों पर उगाने के लिए बहुत ही बेहतर है। ये पत्ती रतुआ और तना रतुआ रोगों के प्रति भी प्रतिरोधी है।
पर्सलेन (कुल्फा) Purslane (Kulfa)
एक अध्ययन में इस बात का उल्लेख हुआ है कि ‘पोर्टुलाका ओलेरेशिया’ (Portulaca Oleracea) एक सामान्य खरपतवार है जिसे आमतौर पर पर्सलेन (कुल्फा) भी कहा जाता है। जलवायु परिवर्तन से घिरी पूरी दुनिया में सूखे में भी उगने वाली ये फसल काफी अहमियत रखती है।
अंगूर (Grapes)
अंगूर की बेलें पानी के बिना लंबे वक्त तक जीवित रह सकती हैं। उन्हें ऐसे स्थान पर लगाया जाता है, जहां हर दिन छह से आठ घंटे सूरज की रोशनी पड़ती हो। अंगूर अच्छी जल निकासी वाली, रेतीली, दोमट मिट्टी पसंद करते हैं।
ओकरा ( भिंडी) okra
भिंडी तेज़ गर्मी का सामना कर सकती है और प्रचुर मात्रा में पानी के बिना भी अच्छी बनी रहती है। जहां पर सूरज की तेज़ सूरज की रोशनी हो वहां पर भिंडी सबसे अच्छी बढ़ती है। इसे रेतीली, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में लगाएं जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो।
स्कार्लेट ग्लोब मैलो (Scarlet Globe Mallow)
स्कार्लेट ग्लोब मैलो (स्फेरैल्सिया कोकिनिया) प्राकृतिक सूखा सहनशीलता वाला सूखे से बचने वाला पौधा है। सूखे की स्थिति में पौधे बड़ी मात्रा में बायोमास बनाए रखते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान परियोजनाएं (International Research Projects)
सूखा सहनशीलता (Drought Tolerance) में सुधार के लिए अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान परियोजनाएं (International Research Projects) शुरू की गई हैं। जैसे अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह (सीजीआईएआर)। सीजीआईएआर की ऐसी एक परियोजना में खेतों में सूखे की सहनशीलता का मूल्यांकन करने के लिए तराई के चावल, ऊपरी भूमि के चावल और गेहूं में डीआरईबी1 जैसे जीन को शामिल करना शामिल है।
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