विश्व मधुमक्खी दिवस (World Bee Day 2024) पर विशेष: पॉलीहाउस की खेती (Polyhouse Farming) के भले ही ढेरों फ़ायदे हों लेकिन इसकी चुनौतियाँ भी कम नहीं होतीं। मसलन, पॉलीहाउस की खेती में फलों और सब्ज़ियों की अच्छी उपज पाने के लिए हाथ से परागण (Pollination) करवाना पड़ता है। क्योंकि पॉलीहाउस के संरक्षित माहौल से कीट-पतंगों को बाहर रखा जाता है। हाथों से पॉलीनेशन करवाने का तरीका एक मुश्किल और मेहनतकश काम है। इससे फ़सल की लागत भी बढ़ती है। जबकि खुले खेतों में उन्मुक्त कीट-पतंगे फलों और सब्जियों के बीच परागण की प्रक्रिया पूरी करवाते हैं। इसीलिए पॉलीहाउस में ऐसे कीट-पतंगों की कमी अखरती है जो खुले खेतों की तरह बन्द माहौल में भी किसानों को क़ुदरती परागण की सौगात दे सकें।
भारतीय नस्ल और डंक रहित मधुमक्खी हैं बेजोड़
किसानों की इसी ज़रूरत को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) ने बैंगलुरु स्थित संस्थान Indian Institute of Horticultural Research (IIHR) को पॉलीहाउस में होने वाली पॉलीनेशन की चुनौती का समाधान ढूँढ़ने की ज़िम्मेदारी दी। वर्ष 2019-20 के दौरान IIHR के वैज्ञानिकों ने तीन फसल चक्रों का गहन अध्ययन करके अनेक प्रयोग किये। फिर उन्होंने तय किया कि पॉलीहाउस में यदि भारतीय नस्ल वाली मधुमक्खी ‘एपिस सेराना’ और डंक रहित मधुमक्खी ‘टेट्रागोनुला इरिडिपेनिस’ को पाला जाए तो वहाँ के insect proof माहौल में भी खुले खेतों जैसी कीट-पतंगों वाली पॉलीनेशन की ख़ूबियाँ और फ़ायदे हासिल हो सकते हैं। अपने प्रयोग के दौरान IIHR के बाग़वानी विज्ञानियों ने पाया कि खरबूजे और खीरे के नर और मादा फूलों पर दोनों प्रजातियों की कार्यकर्ता मधुमक्खियों (worker bees) ने ख़ूब दौरे किये। इससे फूलों के पॉलीनेशन की प्रक्रिया बख़ूबी सम्पन्न हुई।
कैसे करें पॉलीहाउस में मधुमक्खी पालन?
पॉलीहाउस में इस्तेमाल होने लायक मधुमक्खियों की नस्लों का पता लगाने के बाद IIHR के बाग़वानी विज्ञानियों ने इनके इस्तेमाल के लिए उपयुक्त विधि या प्रोटोकॉल को भी तय किया। किसानों के लिए वैज्ञानिकों का नुस्ख़ा है कि नयी तकनीक की सफलता के लिए आठ फ्रेम और आगे-पीछे निकासी वाले मधुमक्खी के बक्शे को पॉलीहाउस में उस दौर में रखना चाहिए जब फसल पर फूल खिलने वाले हों।
डंक रहित मधुमक्खी ‘टेट्रागोनुला इरिडिपेनिस’ के बक्शों को पॉलीहाउस की छत से लटकाकर रखना भी बेहद उपयोगी साबित होता है। अपने शोध की सफलता को आँकने के लिए वैज्ञानिकों ने मधुमक्खियों के सम्पर्क से परागित (Pollinated) फसल की पैदावार की तुलना उस फसल से की जिसे कीट-पतंगों से दूर रखकर और हाथों से परागित किया गया था।
मधुमक्खियों के इस्तेमाल से कैसा रहा उत्पादन?
अपने प्रयोग के बाद बाग़वानी विज्ञानियों ने पाया कि हाथ से करवाये गये परागण की तुलना में मधुमक्खियों से हुए परागण वाले खीरों के मामले में औसत फल सेट, प्रति पौधा फलों की संख्या और खीरे के फलों का वजन क्रमशः 88.6%, 21.4 और 375.5 ग्राम था। जबकि खरबूज़ों में यही आँकड़ा 92.5%, 1.85 और 1.6 किलोग्राम रहा। यानी, मोटे तौर पर मधुमक्खियों के परागण से लगभग वैसे ही नतीज़े मिले जैसा हाथों के मामले में था।
नये नुस्ख़े से कितना होगा फ़ायदा?
इस तरह, मधुमक्खियों वाली नयी तकनीक से मज़दूरी की उस लागत की बचत हुई जो हाथ से परागण करवाने में ख़र्च करनी पड़ती है। इसके अलावा, मधुमक्खी के बक्से से मिलने वाले शहद और मोम वग़ैरह का जो भी दाम बने वो अतिरिक्त आमदनी ही तो कहलाएगी। इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों ने पॉलीहाउस में देसी प्रजातियों की मधुमक्खी को परागण के लिए पालने की ज़ोरदार सिफ़ारिश की है। इस बारे में यदि कोई किसान और भी जानकारी चाहता है तो उसे ICAR-IIHR से सम्पर्क साधना चाहिए। इस संस्थान के निदेशक का ईमेल [email protected] है।
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