केंद्र सरकार ने पाम ऑयल के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक अहम मिशन की शुरुआत कर दी है। इस मिशन का नाम है राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन (NMEO-OP)। इस मिशन के तहत ताड़ की खेती को बढ़ावा देकर पाम ऑयल के आयात को कम करना है। इसके तहत किसानों को पाम ऑयल की खेती के लिए सहायता राशि दी जाएगी। इसके लिए सरकार ने सहायता राशि में इज़ाफ़ा कर दिया है तो वहीं पौधा रोपने पर आर्थिक मदद देने का भी ऐलान किया है।
अब किसानों को इतनी मिलेगी सहायता राशि
इस मिशन के तहत पाम ऑयल रोपण के लिए सामग्री पर मिलने वाले अनुदान में बढ़ोतरी की गई है। अब तक किसानों को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 12 हज़ार रुपये दिये जाते थे, जिसे लगभग ढाई गुना बढ़ाकर 29 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है। इसके अलावा पुराने बागों को दोबारा चालू करने के लिए 250 रुपये प्रति पौधा के हिसाब से विशेष सहायता देने का भी ऐलान किया गया है, यानी एक पौधा रोपने पर किसान को 250 रुपये मिलेंगे। वहीं पौधे की कमी को दूर करने के लिए बीजों की पैदावार करने वाले बागों को भी सहायता राशि दी जाएगी। इसमें भारत के अन्य स्थानों में 15 हेक्टयेर तक की नर्सरी के लिए 80 लाख रुपये और पूर्वोत्तर और अंडमान क्षेत्रों में 15 हेक्टेयर पर एक करोड़ रुपए की सहायता राशि देने का निर्णय किया गया है।
2029-30 तक देश में 28 लाख टन पाम ऑयल के उत्पादन का लक्ष्य
इस योजना में पूर्वोत्तर और अंडमान को विशेष पूंजी सहायता देने का भी प्रावधान है। इसके अंतर्गत पांच मीट्रिक टन प्रति घंटे के हिसाब से पांच करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, देश में 28 लाख हेक्टेयर का क्षेत्र पाम ऑयल की खेती करने के लिए अनुकूल है, जिसमें 9 लाख हेक्टेयर का हिस्सा अकेले ही पूर्वोत्तर के राज्यों में है। यहीं वजह है कि पूर्वोत्तर के क्षेत्र में पाम ऑयल की खेती को प्रोत्साहित करने पर सरकार विशेष ध्यान दे रही है।
फिलहाल भारत सालाना करीब 150 लाख टन खाद्य तेल का आयात करता है। इसमें 56 प्रतिशत हिस्सेदारी अकेले ही पाम ऑयल की है। दूसरे देशों पर निर्भरता को कम करने के लिए ही इस योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) की पैदावार 2025-26 तक 11.20 लाख टन और 2029-30 तक 28 लाख टन तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
क्या है पाम ऑयल योजना
इस मिशन पर 11,040 करोड़ रुपये निवेश किए जाएंगे। इसमें केंद्र सरकार अपनी ओर से 8,844 करोड़ रुपये देगी वहीं 2,196 करोड़ राज्यों को वहन करना होगा। इसमें आय से अधिक खर्च होने की स्थिति में उस घाटे की भरपाई करने की भी व्यवस्था है। भारत में खाद्य तेलों की निर्भरता बड़े पैमाने पर आयात पर ही टिकी है। भारत को अपने खाद्य तेलों की कुल माँग की 60 फ़ीसदी की भरपाई आयात से करनी पड़ती है, क्योंकि देश में खाद्य तेलों की कुल माँग 24 मिलियन टन है, जबकि उत्पादन 11 मिलियन टन है। इसलिये यह जरूरी है कि देश में ही खाद्य तेलों के रकबे और पैदावार में तेजी लाई जाए। सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से किसानों का झुकाव दूसरी फसलों के साथ-साथ पाम ऑयल की खेती की तरफ भी बढ़ेगा। भारत की आबादी में हर साल करीब 2.5 करोड़ का का इज़ाफ़ा हो रहा है, जिससे खाद्य तेल की खपत में सालाना 3 से 3.5 फ़ीसदी की बढ़त होने का अनुमान है। ऐसे में ये योजना और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
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किसानों की आय बढ़ोतरी करने का लक्ष्य
सरकार का कहना है कि इस योजना से पाम ऑयल के किसानों को लाभ होगा, पूंजी निवेश में बढ़ोतरी होगी, रोजगार के अवसर पैदा होंगे, आयात पर देश की निर्भरता कम होगी और किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। मौजूदा समय में ताड़ की खेती सिर्फ़ 3.70 लाख हेक्टेयर में ही होती है। अन्य तिलहनों की तुलना में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ताड़ के तेल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 10 से 46 गुना अधिक होता है। इसके अलावा एक हेक्टेयर की फसल से लगभग चार टन तेल निकलता है। इस तरह पाम ऑयल की खेती में किसानों के लिए बहुत संभावनाएं हैं।
किसानों को मिलेगी एमएसपी जैसी सुविधा
पाम ऑयल की कीमत केंद्र सरकार ही तय करेगी ताकि किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिल सके और उनके साथ कोई धोखा न हो। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि पाम की फसल के दाम को लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी सुविधा बनाई गई है। इसके अलावा अगर भाव गिर गए तो किसानों को केंद्र सरकार सीधे पैसे मुहैया कराएगी। कई बार बाज़ार में उतार-चढ़ाव के कारण किसानों को सही कीमत नहीं मिल पाती, ऐसे में अगर पाम की कीमत बाज़ार में कम हुई तो किसानों को नुकसान न हो इसके लिए तय कीमत के अनुसार जो अंतर होगा वो सरकार द्वारा सीधे किसानों के खाते में कर दिया जाएगा।