केंद्र सरकार ने बिजली सब्सिडी के लिए किसानों को डीबीटी सिस्टम (DBT System) उपयोग करने की योजना को रद्द किया?

विद्युत अधिनियम (Electricity Act) में संशोधन के माध्यम से डीबीटी सिस्टम (DBT System) शुरू किया जाना था। सरकार इस कदम के जरिये बिजली वितरण कंपनियां ‘डिस्कॉम’ (Discomm) को संबंधित राज्य सरकारों से सब्सिडी की मनमानी राशि के दावे को नियंत्रित कर ज़रूरतमंद उपभोक्ताओं को सीधे खाते में सब्सिडी भेजना चाहती थी।

डीबीटी सिस्टम

सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय बिजली मंत्रालय (Union Power Ministry) ने डीबीटी (Direct Benefit Transfer) सिस्टम के जरिए किसानों को बिजली सब्सिडी देने की योजना को रद्द कर दिया है।

क्यों हुआ डीबीटी सिस्टम रद्द ?

इस प्रस्तावित सिस्टम को रद्द करने का कारण ये बताया जा रहा है कि बिजली उपयोगकर्ताओं के बीच सबसे अधिक सब्सिडी प्राप्त करने वाले किसानों की ओर से ये चिंता जताई जा रही है कि डीबीटी सिस्टम से उन पर ज़्यादा बोझ पड़ेगा और ज़्यादा बिजली बिलों का भुगतान करना पड़ सकता है।

राष्ट्रीय स्तर पर बिजली आपूर्ति की लागत लगभग 6 रुपये प्रति यूनिट है।  घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं के लिए औसत शुल्क 27 प्रतिशत और 87 प्रतिशत कम है। इन वर्गों को वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोगकर्ताओं द्वारा आंशिक रूप से क्रॉस-सब्सिडी दी जाती है। 

केंद्र सरकार ने बिजली सब्सिडी के लिए किसानों को डीबीटी सिस्टम (DBT System) उपयोग करने की योजना को रद्द किया?
तस्वीर साभार : The Hindu

केंद्र सरकार ने बिजली सब्सिडी के लिए किसानों को डीबीटी सिस्टम (DBT System) उपयोग करने की योजना को रद्द किया?

संसद में पहले भी ये संशोधन नहीं हुआ पारित 

सरकार द्वारा प्रस्तावित अधिनियम में अन्य प्रमुख सुधार -सीमा पार बिजली व्यापार को प्रोत्साहित करने, भुगतान सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने और अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने के लिए दंड तंत्र को शामिल करने के प्रावधान हैं।

2014 और 2018 में केंद्रीय बिजली मंत्रालय द्वारा संशोधनों के दो मसौदे जारी किए गए थे, लेकिन इन्हें संसद द्वारा पारित नहीं किया जा सका। 2014 का मसौदा चर्चा के लिए लोकसभा में भी गया, लेकिन अंततः इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। अभी चल रहे संसद सत्र में संशोधनों के पेश होने की बहुत कम संभावना है क्योंकि उन्हें अभी तक कैबिनेट द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है।

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प्रस्तावित संशोधनों के माध्यम से, केंद्र सरकार बिजली वितरण व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा लाने का इरादा रखती है। इसमें राज्य के स्वामित्व वाले एकाधिकार को बिजली वितरण में सबसे कमजोर कड़ी के रूप में पहचाना जाता है। उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प प्रदान करने और क्षेत्र में उच्च दक्षता लाने के लिए, बिजली मंत्रालय ने वितरण व्यवसाय को लाइसेंस देने और किसी भी इकाई को देश में कहीं भी डिस्कॉम चलाने की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया है। सरकार द्वारा प्रस्तावित अधिनियम में अन्य प्रमुख सुधार सीमा पार बिजली व्यापार को प्रोत्साहित करने, भुगतान सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने और अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने के लिए दंड तंत्र को शामिल करने के प्रावधान हैं।

केंद्र सरकार और राज्यों के बीच नहीं हैं सहमति

कई राज्य प्रस्तावित संशोधनों के विरोध में हैं। इन राज्यों का आरोप है कि ये संशोधन बिजली नियामकों की नियुक्ति के लिए राज्यों के अधिकार को कमजोर करते हैं। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने दो केंद्रीय सदस्यों और राज्यों के एक प्रतिनिधि की कमिटी गठन करने के पहले के प्रस्ताव को छोड़ने का फैसला किया है।

मौजूदा सिस्टम के अनुसार, राज्य बिजली नियामक आयोगों में जगह खाली होने पर हर बार अलग चयन समितियों का गठन करने की आवश्यकता होती है। इससे उनके नियमित कार्य करने की क्षमता बाधित होती है।

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