चिकोरी की खेती (Chicory Farming) : चिकोरी जिसे कासनी भी कहा जाता है का वैज्ञानिक नाम सिकोरियम इंटीबस है और ये एक औषधीय गुणों वाला पौधा है। मूल रूप से चिकोरी की खेती उत्तर-पश्चिमी यूरोप में की जाती है। चिकोरी की जड़ों में फाइबर की भरपूर मात्रा होती है।
चिकोरी (कासनी) का पौधा कई तरह से उपयोगी है। पहला तो ये पशुओं के लिए बेहतरीन चारा है, दूसरा इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। इस्तेमाल एक इंसुलिन के तौर पर किया जा सकता है और कैंसर जैसी बीमारी के लिए भी इसे उपयोगी माना जाता है।
इतना ही नहीं, इसकी जड़ों को भूनकर कॉफ़ी में डालकर पिया जाता है। चिकोरी (कासनी) की जड़ें मूली की तरह दिखती हैं, जबकि इसके फूल नीले रंग के होते हैं जिनसे बीज तैयार किया जाता है। चिकोरी की खेती कंद और दाने दोनों के लिए की जाती है। भारत में मुख्य रूप से उत्तराखण्ड, पंजाब, कश्मीर और उत्तर प्रदेश में की जाती है। अगर आप भी चिकोरी की खेती से मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं, तो आपको इसकी खेती से जुड़ी ज़रूरी बातें पता होनी चाहिए। ICAR की ओर से सुझाए गए चिकोरी की खेती के मुख्य तरीके कुछ इस तरह है।
चिकोरी की खेती- मिट्टी और जलवायु
चिकोरी की खेती वैसे तो किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन आप अगर इसकी खेती व्यापारिक तौर पर करना चाहते हैं, तो इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी माना जाती है, क्योंकि इसमें उत्पादन ज़्यादा होता है। कासनी की अच्छी फसल के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था होना ज़रूरी है और भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए। चिकोरी की खेती ठंडी जलवायु में अच्छी तरह से की जा सकती है।
चिकोरी के पौधे अधिक गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते, इसलिए ज़्यादा तापमान में इनका विकास अच्छी तरह नहीं होता है। जबकि ठंड में इनका अच्छा विकास होता है, यहां तक कि ये पाले को भी सहन कर सकते हैं। चिकोरी की खेती के लिए ज़्यादा बारिश की भी ज़रूरत नहीं होती। पौधों को अंकुरण के लिए 25 डिग्री तापमान और अच्छे विकास के लिए 10 डिग्री तापमान की ज़रूरत होती है।
चिकोरी की प्रजातियां
आमतौर पर चिकोरी (कासनी) की दो प्रजातियां उगाई जाती हैं। एक जंगली और दूसरी व्यापारिक। जंगली प्रजाति आमतौर पर चारे के लिए उगाई जाती है। इसकी पत्तियां थोड़ी कड़वी होती है और कंद भी ज़्यादा मोटा नहीं होता। जबकि व्यापारिक प्रजाति में के1 और के13 किस्म को उगाया जाता है, इनकी जड़ें स्वाद में मीठी होती हैं।
कैसे करें बुवाई?
चिकोरी की खेती के लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई ज़रूरी है क्योंकि इसकी खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए। अच्छी फसल के लिए खेत तैयार करते समय गोबर की खाद ज़रूर मिलाएं। जहां तक रोपाई का सवाल है तो बीज की रोपाई छिड़काव विधि से ही की जाती है। सघन रोपाई में बीजों को जहां सीधा खेत में छिड़क दिया जाता है, वहीं व्यापारिक तौर पर इसकी खेती करने के लिए बीजों को मिट्टी में मिलाकर छिड़कना होता है।
चिकोरी के दानों को खेत में छिड़कने के बाद उन्हें हल्के हाथों से मिट्टी में कुछ गहराई तक दबा दिया जाता है। बीज आसानी से अंकुरित हो सके इसके लिए खेत में उचित दूरी पर मेड़ तैयार की जा सकती है। बीज लगाने का सही समय अगस्त है। वैसे जुलाई में भी इसकी बुवाई की जा सकती है।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
इसको ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती। शुरुआत में अंकुरण के लिए नमी की ज़रूरत होती है। इसलिए बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। अंकुरण तक खेत में नमी बनाए रखें। उसके बाद अगर आप चारे के रूप में फसल उगा रहे हैं, तो 5 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं। अगर व्यापारिक रूप से इसकी खेती कर रहे हैं, तो पौधों के विकास के दौरान 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं। निराई-गुड़ाई भी ज़रूरी है। पहली निराई-गुड़ाई बीज लगाने के 25 दिन बाद करें उसके 20 दिन बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करें।
कब करें कटाई?
फसल की कटाई इस बात पर निर्भर करती है कि आप चारे के लिए इसकी खेती कर रहे हैं, या कंद के लिए। अगर हरे चारे के रूप में इसे उगा रहे हैं, तो कटाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद करें। आप एक बार लगाई फसल से 10-12 कटाई कर सकते हैं। पहली कटाई के बाद 12-15 दिन में पौधें दूसरी कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
अगर आप कंद के लिए फसल उगा रहे हैं, तो इसकी खुदाई बुवाई के 120 दिनों बाद करें। कंद से बीज प्राप्त करने के लिए खुदाई की गई जड़ों से मशीन की मदद से बीजों को अलग किया जाता है। प्रति हेक्टेयर चिकोरी की खेती से 20 टन तक कंद, 5 क्विंटल बीज प्राप्त हो जाता है। कंद बाज़ार में 400 रुपए प्रति किलो और बीज 8 हज़ार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकते हैं। इस तरह से अगर आप कंद के लिए खेती कर रहे हैं तो 80 हज़ार रुपए और बीज के रूप में खेती करने पर 40 हज़ार तक का मुनाफा कमा सकते हैं।
सस्ता चारा
चिकोरी की खेती जुगाली करने वाले पशुओं के लिए चारे के रूप में की जाती है। इससे पशुओं का स्वास्थ्य ठीक रहता है और दूध की गुणवत्ता भी अच्छी होती है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज और फाइटोबायोएक्टिव जैसे तत्व होते हैं, जो पशुओं के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। साथ ही किसानों की चारे की लागत कम आती है जिससे उनका मुनाफ़ा बढ़ता है।
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