Chilli Disease: मिर्च उत्पादन को कम कर सकते हैं मिर्च में लगने वाले ये रोग, समय रहते करें ये प्रबंध

वैश्विक मिर्च उत्पादन में भारत की 36 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ मसाला उत्पादक का प्रमुख देश है, भारत के कुल मिर्च उत्पादन में 57 प्रतिशत मिर्च उत्पादन आंध्र प्रदेश में होता है

मिर्च की खेती

जब किसान सब्जी वाली फसलों का उत्पादन करते हैं तो सबसे बड़ी चुनौति फसल को रोगों से बचाना होता है मिर्च की खेती में रोगों का प्रकोप अधिक होता है जो हमारे फसल के उत्पादन को कम कर सकता है। किसानों को समय रहते रोगों का उचित उपचार करना चाहिए। आइए आज बताते हैं मिर्च में लगने वाले प्रमुख रोगों, उनके लक्षण और उनके उचित उपचार के बारे में जो आप के उत्पादन को बढ़ाने में सहायता प्रदान करेंगे।

एन्थ्रेकनोज (डाइबैक) एवं फल सड़न रोग- यह रोग कोलेटोट्राइकम केप्सिकी एवं फाइटोफ्थोरा नामक कवक से होता है । इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों और फलों पर अनियमित आकार के काले धब्बे दिखाई दिखाई देते हैं । यह हमारे फल की गुणवक्ता को कम कर देते हैं, पौध ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगाता है इसीलिए इसे डाइबैक कहते हैं। जिससे बाजार में सही दाम नही मिल पाता है इस रोग के रोगाणु बीज व मृदा में जीवित रहते हैं।

Chilli Disease
मिर्च उत्पादन (तस्वीर साभार: TNAU)

रोकथाम – किसान साथियों को प्रतिरोधी किस्म जैसे – जयन्त, अर्का लोहित. एक्स – 235 किस्म की बुआई करना चाहिए। फसल पर रोग के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्य् पी 0.05 प्रतिशत या डाईफेकोनाजोल आधा मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिला कर किसान साथियों को फसल पर छिड़काव करना चाहिए।   हैक्साकोनालौज 25 ई.सी. या डाईफनोकोनाजोल 25 ई.सी. 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिला कर फसल पर छिड़काव करना जाहिए।

लीफ कर्ल या माथा बंधना – यह विषाणु जनित रोग है जो जैमिनि वायरस के समूह (चीली लीफ कर्ल  वायरस) से होता है सफेद मक्खी व थ्रिप्स इस रोग को एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर फैलाते हैं इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियां अनियमित आकार की  सिकुडकर मुडं जाती है यह रोग नाइट्रोजन की अधिक मात्रा या नमी की अधिकता एवं अधिक समय तक तेज तापमान के कारण भी होता है।

Chilli Disease - मिर्च उत्पादन
मिर्च उत्पादन (तस्वीर साभार: TNAU)

रोकथाम- एक-दो पौधों पर रोग के लक्षण दिखाई देने पर रोग ग्रसित पौधों को नष्ट कर दें, रोग फैलाने वाले कीट जैसे – सफेद मक्खी आदि को रोकने के लिए मिर्च की फसल वाले खेत के चारो तरफ बाजरा, गेहूँ जैसी नॉन होस्ट क्रॉप लगा सकते हैं। रासायनिक दवा डाइमिथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी. एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। रोग नियंत्रण के लिए 25 ग्राम डायफेन्युरान 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने  से रोग को नियंत्रित किया जा करता है।

मोजैक रोग – यह रोग टोबैको मोजैक वायरस (TMV Virus) या पोटेटो वायरस वाई से होता है इस रोग के कारण रोगग्रस्त पौधों की पत्तियों में पीलापन लिए हुए धब्बे बन जाते है पौधा छोटा दिखाई देता है।

TMV Virus Disease Chilli
मिर्च उत्पादन (तस्वीर साभार: TNAU)
Kisan of India Facebook
Kisan of India Facebook

रोकथाम– जिन क्षेत्रों में यह रोग लगता है उन क्षेत्रों के किसान साथियों को रोग प्रतिरोधी किस्म जैसे – पंजाब लाल, बंगाल ग्रीन-1, गोहाटी ब्लेक किस्म की बुआई करना चाहिए। यह रोग कीटों ध्दारा फैलता है जिनको रोकने के लिए फसल के चारों ओर मक्के की फसल बेरियर क्रॉप के रूप में लगाना लाभकारी साबित हुआ है।

जीवाणु पत्ती धब्बा रोग – यह रोग बीज एवं भूमि जनित रोग है जो जेन्थोमोनास बैसिक्टोरिया द्धारा उत्पन्न होता है। इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे जलीय धब्बे बन जाते हैं जो गहरे भूरे रंग के हाथ से छूने पर खुरदरे प्रतीत होते है, पत्तियां पीली पड़कर गिर जाती हैं। लाल पके हुए फल पर इस रोग का प्रकोप नही होता है या न  के बराबर होता है।

Chilli Disease मिर्च उत्पादन
मिर्च उत्पादन (तस्वीर साभार: TNAU)

रोकथाम– किसान साथियों को मध्यम प्रतिरोधी किस्में जैसे- पंत सी-1, जे-218, जी-2, के.सी.एस.-1 किस्म की बुआई करना चाहिए। फसल चक्र अपनाना चाहिए रासायनिक दवा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 200 मिलीग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिला कर  छिड़काव करना चाहिए आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल में पुन छिड़काव करना चाहिए। किसान साथियों को ध्यान देना चाहिए कि फल बनते समय स्ट्रेप्टोसाइक्लिन दवा का छिड़काव न करें ।

शीर्ष फूल गलन – यह रोग मिर्च में फिजिकल डिसऑर्डर के कारण होता है जो कैल्शियम की कमी, पान की कम मात्रा, नाइट्रोजन और पोटाश की अधिक मात्रा या भूमि का अधिक पी.एच. होने के कारण उत्पन्न होता है इसमें फलो के किनारे काले धब्बे बन जाते हैं।

रोकथाम – किसान साथियों को मिर्च के पौध रोपण से पहले खेत के मिट्टी की जाँच करा लेनी चाहिए। समय – समय पर सिचांई करना चाहिए साथ ही पौधे पर लक्षण दिखाई देने पर फसल में कैल्शियम का स्प्रे करना चाहिए।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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