फालसा की खेती (Falsa Farming): कैसे आपदा में आसरा की फसल है फालसा?

फालसा की जड़ें मिट्टी के कटाव को भी रोकने में मददगार साबित होती हैं। यदि सही तरीक़े से फालसा की व्यावसायिक खेती की जाए तो इसकी लागत कम और कमाई बहुत बढ़िया है। इस लेख में हम आपको फालसा की खेती से जुड़ी ख़ास बातें बता रहे हैं।

फालसा की खेती (Falsa Farming)

फालसा को शरबत बेरी या छरबेरी भी कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम Grewia asiatica है। फालसा को भारतीय नस्ल का पेड़ ही माना गया है। इसे भारत, पाकिस्तान, नेपाल, लाओस, थाइलैंड और कम्बोडिया में भी उगाते हैं। ऑस्ट्रेलिया और फिलिपींस में इसे खरपतवार मानते हैं। फालसा तिलासिया परिवार का एक झाड़ीनुमा पेड़ है। तिलासिया परिवार में क़रीब 150 प्रजातियाँ हैं। लेकिन फल सिर्फ़ फालसा का ही खाया जाता है। फालसा की खेती बहुत शुष्क या सूखापीड़ित या अनुपजाऊ क्षेत्रों के लिए बेहद उपयोगी है, क्योंकि इसके फल खासे महँगे बिकते हैं।

इन शहरों में होती है फालसा की व्यावसायिक खेती

फालसा का फल पेड़ पर ही पकता है। इसके कच्चे फलों को भी कृत्रिम तरीक़े से नहीं पकाया जा सकता। कोल्ड स्टोरेज में भी इसे ज़्यादा दिनों के लिए रख नहीं सकते। इसीलिए फालसा की खेती बहुत लोकप्रिय नहीं है। इसकी खेती बहुत कम जगहों पर, वह भी बड़े शहरों के आसपास ही होती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात में कई किसान फालसा की व्यावसायिक खेती भी करते हैं। फालसा हिमालयी क्षेत्रों में भी उगता है। 

असिंचिंत क्षेत्र के वरदान है फालसा

असिंचित क्षेत्रों के किसानों के लिए ये फालसा वरदान बन सकता है, क्योंकि इसके पौधे अनुपजाऊ, खराब, घटिया, पथरीली या बंजर मिट्टी में भी पनप सकते हैं। फालसा सूखा रोधी होते हैं। इन पर प्रतिकूल मौसम का बहुत कम असर पड़ता है। ये 44-45 डिग्री सेल्सियस का तापमान भी आसानी से बर्दाश्त कर लेते हैं। इसीलिए इसे आपदा में आसरा की तरह भी देखा जाना चाहिए। फालसा की जड़ें मिट्टी के कटाव को भी रोकने में मददगार साबित होती हैं। यदि सही तरीक़े से फालसा की व्यावसायिक खेती की जाए तो इसकी लागत बहुत कम है और कमाई बहुत बढ़िया।

फालसा की खेती (Falsa Farming)
तस्वीर साभार: theindianvegan

फालसा की खेती (Falsa Farming): कैसे आपदा में आसरा की फसल है फालसा?फालसा की व्यावसायिक खेती

फालसा की व्यावसायिक खेती के लिए इसके पौधों को कटिंग और ग्राफ़्टिंग विधि से तैयार करते हैं। जनवरी-फ़रवरी में इसकी रोपाई करते हैं। रोपाई के वक़्त गोबर की खाद का इस्तेमाल पौधों को शुरुआती पोषण देने में मददगार साबित होता है। फालसा की फसल को आम, अमरूद के बाग़ में सह फसल के तौर पर या अन्य फसलों के साथ भी उगा सकते हैं। इसे बेल के बाग़ों में खाली जगहों को भरने के लिए भी उगाते हैं। 

फालसा के पौधों की रोपाई से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह ज़रूरी लेनी चाहिए। फालसा के खेतों को ज़्यादा देख-रेख की ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन पेड़ की गुणवत्ता के लिए उसकी सालाना कटाई-छँटाई ज़रूरी करनी चाहिए। पौधों की रोपाई के क़रीब सवा साल बाद, यानी अगले साल मई-जून के बाद से सालाना उपज मिलने लगती है। फालसा के झाड़ीदार पेड़ों की ऊँचाई 4-5 फ़ीट तक रखने से उपज बेहतर मिलती है।

एक एकड़ में इसके 1200-1500 पौधे लगाए जा सकते हैं। इससे 50-60 क्विंटल फालसा की पैदावार होती है। फालसा का दाम अन्य फलों से बेहतर मिलता है, इसीलिए ये बढ़िया मुनाफ़े की खेती है। वैसे तो फालसा को सीधे बाज़ार में बेचना भी लाभदायक है, लेकिन यदि फालसा से जुड़े उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों के साथ तालमेल बिठाकर इसकी खेती की जाए तो पिछड़े इलाकों में रहने वाले किसानों की किस्मत चमक सकती है।

फालसा की खेती (Falsa Farming)
तस्वीर साभार: indiamart

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फालसा की किस्में और रोग

फालसा में औषधीय गुण भले हों लेकिन इस जंगली झाड़ीनुमा पेड़ की देश में कोई ख़ास और मान्यता प्राप्त किस्में नहीं हैं। अलबत्ता, फालसा को दो किस्में – देसी और शरबती मशहूर हैं। इनमें से शरबती किस्म पर ज़्यादा फल लगते हैं और इसमें रस भी अधिक होता है। फालसा के पेड़ में ज्यादा रोग भी नहीं लगते। लेकिन तना छेदक कीड़े की इल्ली से फालसा के तना और शाखाओं खोखली हो जाती हैं। ये कीड़े पेड़ में मौजूद ‘कैंबियम’ को खाते हैं। इस रोग से पीड़ित होने पर कीटों के प्रभाव वाले छेद में केरोसिन या पेट्रोल डालना चाहिए और फ़ौरन कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए।

इस सीरीज़ के अगले भाग में हम आपको फालसा के फ़ायदे और इसके बाज़ार के बारे में जानकारी देंगे।

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