जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण: पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए फ़ायदेमंद

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ते हानिकारक प्रभाव को देखते हुए खेती में जैविक विधि के इस्तेमाल को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। ऐसे में अब बहुत से किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए भी प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण (Weed Control): खरपतवार वो पौधे होते हैं, जो बिना बोए ही मुख्य फसल के साथ अपने आप उग आते हैं। ये मुख्य फसल की गुणवत्ता (Main Crop Quality) के साथ ही उसके विकास को भी प्रभावित करते हैं। खरपतवार एक गंभीर समस्या है, इसलिए इसकी रोकथाम बहुत ज़रूरी है।

ऐसे में कुदरती तरीकों का इस्तेमाल करके खरपतवार नियंत्रण किए जा सकते हैं ताकि पर्यावरण को बचाने के साथ ही लोगों को भी पौष्टिक अनाज मिले। जैविक विधि में कई तरीकों से खरपतवार नियंत्रण किए जा सकते हैं, जिसमें सूक्ष्मजीवों से लेकर पौधों के अर्क तक का उपयोग शामिल है।

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सूक्ष्मजीवों का इस्तेमाल

  • मौजूदा समय में किसानों के पास कई ऐसे सूक्ष्मजीव उपलब्ध हैं जिनकी मदद से खरपतावर नियंत्रण किए जा सकते हैं, जैसे- कवक, परजीवी, मिट्टी में पाए जाने वाले कवक रोगजीवी, बैक्टीरिया, निमेटोड्स आदि।
  • रस्ट कवक जिसे पक्सीनिया केनालिक्यूटा भी कहा जाता है, ये पत्तों में रोग पैदा करता है। ये सूक्ष्मजीव पीले अखरोट (साइप्रस एसक्यूलेंट्स) नाम के खरपतवार को नियंत्रित करता है।
  • मिट्टी से पैदा होने वाला कवक ट्राइकोडर्मा वीरेंस का इस्तेमाल करके फसलों में जंगली पालक के उगने और विकास को रोकने में मददगार है।
  • अल्टरनेरिया कंजंकटा व फ्यूजेरियम ट्राइकिंकटुम का उपयोग करके अमरबेल को बढ़ने से रोका जा सकता है।

प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल

कृषि उप-उत्पाद (एग्रीकल्चर बाय-प्रॉडक्ट)

  • ड्राई डिस्टिलर्स ग्रेन (घुलनशील सूखे असवक अनाज)- ये एथेनॉल उत्पादन का बाय प्रॉडक्ट है, जिसका इस्तेमाल पशु चारे के रूप में किया जाता है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है जिससे खरपवतावर नियंत्रण में ये बहुत प्रभावी है, साथ ही इसका उपयोग बागवानी फसलों में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है।
  • ग्लूकोसाइनोलेट्स (Glucosinolates)- ब्रैसिकेपी पौधे में ग्लूकोसाइनोलेट्स एलोपैथिक मिश्रण पाया जाता है, जो मायरोरोसिनेज एंजाइम के जलीय विश्लेषण से विषैले पदार्थ बनाता है और खरपतवारों की रोकथाम में मदद करता है।

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पौधों के अर्क का उपयोग

पौधों के अलग-अलग हिस्सों जैसे- जड़, तना और बीज से प्राप्त अर्क का इस्तेमाल कुदरती रूप से खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। कुछ पौधों में फाइटो-टॉक्सिक एलोकेमिकल्स होते हैं, जिसकी मदद से खरपतवारों के अंकुरण और विकास को रोकने में मदद मिलती है।

 

पौधों के अर्क से इन खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है-

  • सलाद पत्ता (लैट्यूस सटाईबा), छोटा धतूरा (जेन्थियम ऑक्सीडेंटल) और जापानी थिस्टल (क्रिसियुम जपेनिकम) का अर्क रिजका (खरपतवार) की जड़ों के विकास को रोकने में मदद करता है।
  • महानीम (एलियानथूस अल्टीसिमा) की ताज़ी पत्तियों का जलीय अर्क रिजका की जड़ों को बढ़ने से रोकने में मदद करता है।
  • चाइनीज़ अरबी (एलाोकासिया कस्क्यूलाटा), कनेर (नेरीम ओलियंडर) कृष्ण कमल बेल (पेसिफ्लोरा इंनकारनेट) और जापानी पगोड़ा पेड़ (सोफोर जपेनिका) को मिलाकर पाउडर बना लें और प्रति हेक्टेयर 1.5 टन के हिसाब से छिड़काव करें। इससे धान की खेती में खरपतवारों को 60-70 प्रतिशत तक रोका जा सकता है।

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सुगंधित तेल/वसा के ज़रिए खरपतवार नियंत्रण

  • अजवायन, तुलसी, मरूवा (ओरिगेनम मेजोराना), नींबू और बेसिल (ऑसीमम सिट्रियोडोरम) के खुशबूदार तेल का उपयोग चौलाई (अमरन्थस स्पी.) की रोकथाम के लिेए किया जाता है।
  • लासन सरू (लासन साइप्रस), मेहंदी (रोसमेरिनस ऑफिसिनेलिस), सफेद देवदार (थूजा ओसिडेंटलिस) और नीलगिरी के खुशबूदार तेल का इस्तेमाल अम्लान कुल्फा व कनैपवीड की रोकथाम के लिए किया जाता है।
  • लाल अजवायन, ग्रीष्म जड़ी-बूटी, दालचनी (किन्नमोमुम वेरूम), लौगं से मिलने वाले एसेंशियल ऑयल का उपयोग बथुआ, रैगवीज, जांहसन घास जैसे खरपतवारों के नियंत्रण के लिेए किया जाता है।

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जैविक उत्पादों के इस्तेमाल के फ़ायदे

  • ये सिर्फ़ खरपतवारों को नुकसान पहुंचाते हैं, मुख्य फसल को नहीं।
  • ये मिट्टी में ज़्यादा समय तक नहीं रहते हैं और न ही भूमिगत जल में प्रवेश करते हैं।
  • वातावरण से जल्दी अपघटित हो जाते हैं।

ये भी पढ़ें: खरीफ़ फसलों में लगने वाले खरपतवारों की रोकथाम कैसे करें? जानिए कृषि विशेषज्ञ डॉ. संदीप कुमार सिंह से

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