खीरे की खेती (Cucumber Farming) में है प्रति एकड़ 50 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा, जानिए कैसे करें?

खीरा एक ऐसी सब्ज़ी है, जिसे मौसमी फल का सम्मान भी हासिल है। ये अन्य फलों जैसा महँगा नहीं होता, क्योंकि खीरे की खेती व्यापक पैमाने पर होती है। स्वाद और पौष्टिकता में नायाब खीरा, अपने उत्पादक किसानों को बढ़िया कमाई का विकल्प देता है, क्योंकि बाज़ार में खीरा की माँग हमेशा बनी रहती है।

खीरे की खेती (Cucumber Farming)

खीरा एक ऐसी सब्ज़ी है, जिसे मौसमी फल का सम्मान भी हासिल है। ये अन्य फलों जैसा महँगा भी नहीं होता, क्योंकि खीरे की खेती व्यापक पैमाने पर होती है। भारत में इसके कई नाम हैं। इसे मराठी में काकाडी, बंगाल में कक्डी, पंजाब में तार, मलयालम में ककरिकारी, तेलुगु में डोकाकाया कहते हैं।

इसका वानस्पतिक नाम क्यूक्यूमिस सैटिवस (Cucumis Sativius) है। वैसे इसका नाम चाहे जो हो, इसे चाहे जहाँ उगाया जाए लेकिन खीरा है तो ‘गुणों का पिटारा’ ही। तभी तो इसका सलाद, रायता, सैंडविच, जूस और सूप में बहुतायत इस्तेमाल होता है। इसके अलावा, खीरे को एक शानदार सौन्दर्य प्रसाधन भी माना जाता है, क्योंकि इसे अनेक त्वचा सम्बन्धी विकारों को दूर करने में उपयोगी माना गया है।

खीरे की खेती (Cucumber Farming)
खीरा (Cucumber) तस्वीर साभार: trees

खीरे की खेती से कैसे करें कमाई?

खीरे को कम लागत में ज़्यादा कमाई देने वाली उपज माना जाता है। औसतन 50 हज़ार रुपये प्रति एकड़ की लागत में करीब 70 क्विंटल खीरे की पैदावार होती है। मंडियों में इसका दाम 1000 से लेकर 2000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहता है। इसलिए यदि 1500 रुपये प्रति क्विंटल का औसत भाव भी मानें तो प्रति एकड़ 1 लाख रुपये से ऊपर की फसल बिकती है। ज़ाहिर है, 50 हज़ार रुपये प्रति एकड़ की आमदनी ही साधारण किसानों को खीरे की खेती की ओर आकर्षित करती है। 

खीरे की खेती के लिए मौसम

खुले खेतों की तुलना में यदि पॉलीहाउस में खीरे की खेती की जाए तो मुनाफ़ा दोगुना हो जाता है, क्योंकि पॉलीहाउस में खीरे की खेती पूरे साल की जा सकती है। जबकि खुले खेतों में खीरे की खेती के लिए 15-30 डिग्री सेल्सियम वाले तापमान का मौसम बहुत मुफ़ीद होता है। देश के ज़्यादातर इलाकों में ये तापमान मार्च-अप्रैल में होता है। इसीलिए यही महीने खीरे की बुआई के लिए सबसे उम्दा है। उपजाऊ मिट्टी में खीरे की लागत कम होती है, जबकि कम उपजाऊ मिट्टी में अच्छी उपज के लिए खाद वग़ैरह का खर्चा बढ़ जाता है।

खीरे की खेती (Cucumber Farming)
खीरे की खेती (Cucumber Farming) तस्वीर साभार: agrifarming

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महीनों तक नियमित कमाई

खीरे के बीज जल्दी ही अंकुरित हो जाते हैं और लता या बेल की तरह बढ़ते हैं। इसीलिए बेल को सम्भालने के लिए किसानों को अतिरिक्त उपाय करने पड़ते हैं। खीरे के पौधों में फूल आने में दो से तीन हफ़्ते लगते हैं। फिर इतना ही वक़्त खीरों के परिपक्व होने में लगता है। कुल मिलाकर, बुआई के करीब दो महीने बाद से खीरे की फसल मिलने लगती है। खीरे के फूल महीनों तक खिलते और फल में बदलते रहते हैं, इसीलिए इसकी हफ़्ते-हफ़्ते में तोड़ाई करके किसानों को लगातार आमदनी मिलती रहती है।

खीरे की खेती में कैसे करें सिंचाई?

खीरे को नियमित रूप से हल्की सिंचाई बहुत पसन्द है। बुआई के बाद जैसे-जैसे मौसम गर्म होता जाता है, वैसे-वैसे खीरे की फसल को ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। नियमित सिंचाई का इन्तज़ाम हो तो किसानों को सितम्बर तक खीरे से कमाई होती रहती है। सिंचाई की लागत को घटाने में ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल ख़ासा मददगार होता है। सर्दियों में खीरे की फसल की खुले खेतों में देखरेख मुश्किल होने लगती है क्योंकि सर्दी वाली नमी के बढ़ने या कोहरे वाले मौसम में खीरे पर काले धब्बे पड़ने लगते हैं। इससे उपज का बढ़िया दाम नहीं मिल पाता।

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सेहत के लिए कैसे फ़ायदेमंद है खीरा?

फाइबर, फोलिक एसिड, विटामिन ए और विटामिन सी का खीरा बेहतरीन स्रोत है। इसलिए इसे भोजन में नियमित रूप से शामिल किया जाता है। खीरा में 95 फ़ीसदी तक पानी होता है। इसीलिए इसे डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए बेहद मुफ़ीद माना जाता है। गर्मियों में खीरे की माँग और ख़पत बढ़ने की यही सबसे बड़ी वजह है। खीरे में पाया जाने वाला विटामिन ‘ए’ जहाँ आँखों के लिए बहुत फ़ायदेमन्द है, वहीं विटामिन ‘सी’ की वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है।

खीरे में पाये जाने वाले कैल्शियम से हड्डियों को ज़रूरी पोषण मिलता है। फाइबर और फोलिक एसिड शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालने में मददगार होते हैं। खीरे में एरैपसिन एंजाइम होता है, जो प्रोटीन के पाचन में बहुत उपयोगी है। खीरे को मधुमेह या डायबिटीज के मरीज़ों के लिए भी बहुत अच्छा माना गया है क्योंकि ये ख़ून में शर्करा (शूगर) की मात्रा को नियंत्रित करने में मददगार है। इसी तरह उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ों के लिए भी खीरा बहुत उपयुक्त आहार है।

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कैंसर-रोधी खीरा

खीरे में पाये जाने वाले कड़वे तत्व को ‘क्यूकरबिटासिन्स’ कहते हैं। वैसे तो ये तत्व पूरे खीरे में सामान्य मात्रा में बिखरा होता है, लेकिन कुछेक खीरों में इसकी अधिकता होती है। ऐसे खीरों को खाना मुश्किल होता है, इसीलिए इसके कड़वे स्वाद को घटाने और मिटाने के लिए खीरे के ऊपरी सिरे (मुख) को काटकर उसमें ज़रा सा नमक लगाकर परस्पर थोड़ी देर तक रगड़ने पर ‘क्यूकरबिटासिन्स’ की फ़ालतू मात्रा झाग बनकर इक्कठा हो जाती है। झाग के इस अंश को हटाने के बाद इसका जितना अंश खीरे में बिखरा होता है, वो कैंसर रोधी का काम करता है। ये तत्व अवांछित ट्यूमर के विकास को रोकते हैं और शरीर की कैंसर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।

खीरे की खेती (Cucumber Farming)
खीरे की खेती (Cucumber Farming) – तस्वीर साभार: trees

खीरे की भोजन के अलावा हर्बल और फ़ार्मा क्षेत्र में भी खूब माँग और ख़पत है। घरेलू नुस्खों के रूप में भी खीरे के रस के इस्तेमाल से कई सौन्दर्य प्रसाधन बनाये जाते हैं। खीरे की स्लाइस काटकर पुतलियों के ऊपर रखने से आँखों के नीचे बने काले धब्बों धीरे-धीरे मिटने लगते हैं। मुँहासों और घाव के निशान को कम करने में भी खीरे का रस बहुत उपयोगी माना गया है। चेहरे की नमी बनाए रखने और त्वचा में निखार लाने के लिए खीरे का खूब इस्तेमाल करने की सलाह डॉक्टरों की ओर से खूब दी जाती है। 

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