गेहूं, धान, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि की खेती के बारे में तो आप सभी जानते हैं। शायद ये सभी अनाज आपने खाए भी होंगे। लेकिन क्या आपने कभी जॉब्स टीयर्स ( Job’s Tears Cultivation) के बारे में सुना है। उत्तर-पूर्वी राज्यों को छोड़कर अन्य जगहों के लोगों के लिए ये नाम बिल्कुल नया हो सकता है। इसकी खेती खासतौर पर उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में ही की जाती है। जॉब्स टीयर्स ज्वार या मक्का की तरह ही एक खाद्यान फसल है। इसके दानों का इस्तेमाल इंसानों के खाने के लिए और पत्तियों का इस्तेमाल चारे के रूप में किया जाता है। ये फसल भले ही बहुत लोकप्रिय नहीं है, लेकिन पौष्टिकता के मामले में गेहूं, मक्का से कहीं आगे है। इसमें प्रोटीन और कैल्शियम की मात्रा गेहूं और मक्का से भी ज़्यादा होती है। जॉब्स टीयर्स की कई प्रजातिया हैं। इनमें से कुछ जंगली भी है। नरम बीज वाले जॉब्स टीयर्स की खेती आमतौर पर उत्तर-पूर्वी राज्यों में की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति भारत और चीन दोनों जगहों पर हुई है। भारत, चीन के अलावा फिलिपींस, म्यांमार, श्रीलंका, जापान, थाइलैंड आदि देशों में भी जॉब्स टीयर्स की खेती की जाती है।
जॉब्स टीयर्स की खेती
इसकी खेती अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, असम, सिक्किम में की जाती है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर के कुछ हिस्सों में इसे एकल फसल या मिश्रित फसल के रूप में उगाया जाता है। इसके लिए झूम या सीढ़ीनुमा दोनों ही खेती पद्धति उपयुक्त है। अरुणाचल के सियांग जिले में इसे बड़े पैमाने पर उगाया जाता है, इसलिए यहां इसकी कई स्थानीय किस्में उपलब्ध हैं। उत्तर-पूर्वी राज्यों की जलवायु जॉब्स टीयर्स की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त है।
खेती का तरीका, जलवायु और मिट्टी
इसकी खेती खरीफ मौसम में एकल या मिश्रित फसल के रूप में की जा सकती है। इसकी अच्छी फसल के लिए तापमान 9.6 से 27.6 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। मिट्टी का pH मान 4.5 से 8 के बीच होना चाहिए। ढलान वाले इलाकों में जहां बारिश ज़्यादा होती है, वहां भी इसकी खेती की जा सकती है। ये फसल 4-5 महीने में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल फसल होती है और इसे किसान 50-60 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं।
जॉब्स टीयर्स के उपयोग
ये फसल पौष्टिकता से भरपूर है। इसके बीजों का सूप बनाकर पीया जाता है। बीज से आटा पीसकर रोटी बनाई जाती है। इसे चावल की तरह पकाकर या दाल के साथ खिचड़ी बनाकर भी खाया जा सकता है। साथ ही इसके दानों को भूनकर भी खाया जा सकता है। खाद्यान के अलावा इसके अन्य इस्तेमाल भी है। इसकी पत्तियां मुलायम होती है, जो पशुओं के लिए अच्छा चारा है। इसका पौधा बहुत मज़बूत होता है, इसलिए इससे चटाई बनाई जाती है। इसका इस्तेमाल बीयर बनाने और बेकरी उद्योग में भी होता है। इसके मुलायम बीज को मुर्गियों को खिलाया जाता है और कठोर दाने से सजावटी सामान बनाया जा सकता है। यानी ये एक फसल बहु-उपयोगी है, जिससे किसानों को अच्छी आमदनी हो सकती है।
इसकी अन्य किस्में विकसित किए जाने की ज़रूरत है जिससे कि देश के अन्य हिस्सों में इसकी खेती हो सके और लोगों को पौष्टिक अनाज मिले। इससे किसान और आम लोगों दोनों का फायदा होगा।
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