कोरोना काल की वजह से जहाँ सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था को चोट पहुँची वहीं भारतीय जैविक खाद्य उत्पादों या ऑर्गेनिक फूड प्रोडक्ट्स की वैश्विक माँग में सराहनीय बढ़ोत्तरी दर्ज़ हुई है। वाणिज्य मंत्रालय के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक, साल 2020-21 में भारतीय जैविक खाद्य उत्पादों का निर्यात का मूल्य बीते साल की तुलना में 51 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि वजन के लिहाज़ से देखें तो ये इज़ाफ़ा 39 फ़ीसदी का रहा है।
कोरोना काल में लॉजिस्टिक और ऑपरेशनल चुनौतियों के बावजूद भारतीय जैविक खाद्य उत्पादों और निर्यातकों की उपलब्धि और भी शानदार मानी जा रही है।
किन उत्पादों की बढ़ी माँग?
भारतीय ऑर्गेनिक फूड्स के निर्यात के आँकड़ें बताते हैं कि बीते साल के मुकाबले साल 2020-21 में ‘ऑयल केक उत्पादों’ की माँग सबसे ज्य़ादा बढ़ी है। इसके अलावा तिलहन, तिलहन की खली, फलों के गूदे और प्यूरी, अनाज, मसाले, चाय, चीनी, दाल, ड्राई फ्रूट्स, औषधीय पौधों के उत्पाद, अजवाइन, कॉफी, आवश्यक तेल (Essential Oil) और सुगन्धित तेलों के निर्यात में भी शानदार बढ़ोत्तरी दर्ज़ हुई है।
किन देशों में बढ़ी माँग?
दुनिया के हरेक महाद्वीप में भारतीय अर्गेनिक फूड माँग बढ़ी है। इसमें एशियाई देशों के अलावा अमेरिका, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, स्वीट्ज़रलैड, इज़राइल, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ के अनेक देश शामिल हैं। दुनिया के 58 देशों में भारतीय ऑर्गेनिक फूड को निर्यात के लिए कड़े वैश्विक मानकों पर खरा उतरना पड़ता है। इनका निर्यात तभी हो सकता है, जबकि नेशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेनिक प्रोडक्शन यानि NPOP की ओर से तय मापदंडों के तहत अगर ऑर्गेनिक फूड का उत्पादन, प्रसंस्करण, पैकिंग और लेवलिंग की गयी हो।
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कितना बढ़ा निर्यात?
सालाना आधार पर देखें तो साल 2020-21 में भारतीय अर्गेनिक फूड का निर्यात एक अरब डॉलर यानि 7078 करोड़ रुपये से ज़्यादा का रहा है। साल 2019-20 के मुकाबले ये रकम 51 प्रतिशत अधिक है। साल 2020-21 में कुल 8,88,179 मीट्रिक टन आर्गेनिक फूड का निर्यात हुआ, जबकि साल 2019-20 में 6,38,998 मीट्रिक टन का हुआ था। इस तरह वजन के लिहाज़ से 39 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई।
देश में जैविक खेती की जोत भी बढ़ी
भारत में जैविक प्रमाणीकरण के तहत 30 लाख हेक्टेयर से भी ज़्यादा ज़मीन पंजीकृत है। सुखद है कि रासायनिक खाद के दुष्प्रभावों और जैविक खेती में होने वाली बेहतर कमाई को देखते हुए नये किसान भी इससे जुड़ने के लिए लगातार अपना पंजीकरण कराते जा रहे हैं। साल 2021 की एक अन्तर्राष्ट्रीय सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, कुल कृषि योग्य ज़मीन में से जैविक खेती के लिए इस्तेमाल हो रही भूमि के अनुपात के लिहाज़ से भारत अभी दुनिया में पाँचवें स्थान पर है। हालाँकि, 2019 में ही जैविक खेती से जुड़े उत्पादकों की कुल संख्या के लिहाज़ से भारत किसान शीर्ष स्थान पर हैं।
आधुनिक कृषि पद्धतियों के गहरे विरोधाभासों के बावजूद भारत में अब भी पहाड़ी, जनजातीय ज़िलों के अलावा रेगिस्तान और अधिक वर्षा वाला बहुत बड़ा इलाका ऐसा है तो अभी तक रासायनिक उर्वरकों से अछूता रहा है। ऐसे क्षेत्रों को अतिरिक्त प्रोत्साहन देकर बहुत आसानी से जैविक खेती से जोड़ने की कोशिश की जानी चाहिए। इससे जहाँ एक ओर हमें जैविक खेती के प्रभाव क्षेत्र के बहुत तेज़ी से आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी, वहीं ऐसे दूरदराज़ के पिछले इलाकों के किसानों की कमाई बढ़ाकर उन्हें खुशहाल बनाने में आसानी होगी।
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जैविक खेती के लिए प्रमाणीकरण है ज़रूरी
वर्ष 2001 से ही एंग्रिकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी (APEDA) के तहत NPOP की ओर से जैविक खेती के उन्हीं मापदंडों को अपनाया जाता है, जिसे वैश्विक मान्यता हासिल है। NPOP के प्रमाणीकरण को यूरोपीय संघ और स्विटजरलैंड के कड़े मापदंडों के अनुरूप माना गया है, इसलिए वहाँ की संस्थाओं से भी इन्हें मान्यता प्राप्त है। क्योंकि NPOP के प्रमाणन के बाद ही भारतीय जैविक खाद्य उत्पादों का उन देशों में निर्यात हो सकता है।
ब्रेग्जिट के बाद और पहले भी ग्रेट ब्रिटेन भी इस प्रमाणपत्र को मान्यता देता आया है। इसके अलावा द्विपक्षीय मान्यता समझौता के लिए भारत ताइवान, कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, न्यूज़ीलैंड के साथ बातचीत प्रगति पर है। ताकि इन देशों को भी भारतीय ऑर्गेनिक फूड का सीधे निर्यात किया जा सके।