अब तक हम आपको कृषि से जुड़ी खास बातें बताते रहे हैं। चाहे वो वैज्ञानिक तरीके से खेती करना हो या उत्पादन को बढ़ाना। लेकिन आज हम आपको कृषि सिंचाई को बेहतर तरीके से करने की एक विधि के बारे में बता रहे हैं। वो है ड्रिप फर्टिगेशन की पद्धति। इस पद्धति से सिंचाई करने पर पैसे और पानी दोनों की बचत होती है।
तो आइए जानते हैं ड्रिप फर्टिगेशन के बारे में-
कैसे करें ड्रिप फर्टिगेशन विधि का उपयोग
इस विधि में कम लागत में फसलों की पैदावार को बढ़ाया जाता है। इसमें पानी में उर्वरकों को मिलाने के बाद सिंचाई के जरिये पौधों तक पहुंचाया जाता है। ड्रिप फर्टिगेशन में 200 लीटर के बैरल या कंटेनर को पानी से भरें। इसके बाद इस पानी में घुलनशील पाउडर या तरल खाद को अच्छी तरह मिला दें। यदि आप घुलनशील पाउडर का उपयोग करना चाहते हैं, तो पहले इसका घोल तैयार करें और कपड़े से छानकर ही बैरल में डालें। पाउडर को सीधे बैरल में नहीं डालना चाहिए।
जब बैरल या कंटेनर में घोल तैयार हो जाए तो उसे वेन्चुरी से जोड़ दें। आपको बता दें वेन्चुरी के नीचे की ओर एक वॉल्व होता है जिसे खोलने के बाद तैयार घोल खेतों में जा रही ड्रिप पाइप लाइन में जाने लगता है और पूरी तरह खेतों में फैल जाता है। जब भरपूर मात्रा में खाद वाला पानी खेतों में लग जाए, उसके बाद वॉल्व को बंद कर दें। खेतों में जा रही पाइप लाइन को कुछ देर तक चालू रखें ताकि खाद वाला पानी पाइप लाइन से बाहर आ जाए और पाइप लाइन पूरी तरह साफ हो जाए।
वर्तमान समय में भारत में मौजूद ताजे पानी के कुल हिस्से में से लगभग 80 प्रतिशत पानी का उपयोग कृषि से जुड़े कामों में होता है। इसलिए पानी को बचाना बेहद आवश्यक है। वेन्चुरी में लगे वॉल्व से पानी को बचाना आसान हो जाता है। इसलिए सिंचाई के लिए वेन्चुरी का उपयोग अवश्य करें। इतना ही नहीं ड्रिप फर्टिगेशन विधि से भी करीब 70 प्रतिशत पानी की बचत होती है और उर्वरक में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है।
ड्रिप फर्टिगेशन के बाद अब हम आपको आधुनिक सिंचाई प्रणालियों के बारे में बताएंगे। इस तरह की प्रणालियां एक तय किये गए शेड्यूल के अनुसार ही चलती हैं। खेत में जितने पानी की आवश्यकता है उसी अनुसार यह चालू और बंद हो जाती हैं। इन आधुनिक प्रणालियों में मौसम के बदलाव, मिट्टी की स्थिति, वाष्पीकरण और पौधों में पानी की जरूरत पर पूरी तरह निगरानी रखी जाती है।
इस तरह पानी देने के समय वे खुद चालू और बंद हो जाती हैं जिससे पानी की काफी बचत होती है। जरूरी है कि देश के किसान इन दोनों पद्धतियों का उपयोग जरूर करके देखें इससे पानी की बचत तो होगी ही साथ ही उत्पादन भी अच्छा होगा।