बोलचाल में ‘नैरोबी मक्खी’ कहलाने वाला कीट दरअसल, एक भृंग या beetle है। ये कीट फ़सल और किसान के मित्र की भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये फ़सल को नुकसान पहुँचाने वाले हानिकारक कीटों के शिकारी यानी प्राकृतिक कीटनाशक हैं। इसीलिए रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से इनकी तादाद भी घट जाती है। तब ‘नैरोबी मक्खियाँ’ अपने आहार की तलाश में खेतों से नज़दीकी बस्तियों का रुख़ करती हैं। इसी प्रक्रिया के दौरान ‘नैरोबी मक्खियों’ का मनुष्यों के सम्पर्क में आने का ख़तरा बढ़ जाता है।
इन्सानों के लिए ‘नैरोबी मक्खी’ से बचाव ज़रूरी है
कीट विज्ञानियों के अनुसार, ‘नैरोबी मक्खी’ ना तो इन्सान को काटती है और ना ही कोई डंक मारती है, लेकिन शरीर पर ये जहाँ भी बैठती है वहाँ ‘पेडेरिन’ नामक पदार्थ का स्राव कर देती है। इससे शरीर पर खुजली और जलन होने के अलावा घाव हो जाता है। इसीलिए इसे ‘ड्रैगन बग’ (dragon bug) भी कहा गया है। ‘नैरोबी मक्खी’ को लेकर सबसे अहम हिदायत ये है कि इसके शरीर पर बैठते तो उसे स्पर्श किये बग़ैर उड़ा देना चाहिए तथा यदि शरीर को खुजलाया हो तो उस हाथ से आँखों को छूने से सख़्त परहेज़ करना चाहिए।
दरअसल, कभी-कभार विषैला ‘पेडेरिन’ आँखों के सम्पर्क में आ जाता है। इससे नेत्र श्लेष्मला पर जख़्म हो जाता है। इसे आम बोलचाल की भाषा में ‘आँख आना’ कहते हैं। कई बार इसका सबब अस्थायी अन्धेपन के रूप में भी सामने आता है। कुछ लोगों की आँखों में ‘पेडेरिन’ की वजह से हुआ घाव इतना गहरा हो जाता है कि डॉक्टर को सर्जरी करने की ज़रूरत पड़ती है। ‘पेडेरिन’ एक अम्लीय स्राव है और इसका उत्पादन ‘नैरोबी मक्खी’ के शरीर में पाये जाने वाले सहजीवी बैक्टीरिया करते हैं।
‘पेडेरिन’ का दुष्प्रभाव
‘पेडेरिन’ की वजह से इन्सान की त्वचा पर असामान्य जलन और सूजन आ जाती है। इससे खुजली होती है और त्वचा पर घाव हो जाता है। इसके लक्षणों की गम्भीरता का नाता ‘पेडेरिन’ की मात्रा और ‘नैरोबी मक्खी’ से सम्पर्क की अवधि पर निर्भर करता है। कम गम्भीर मामलों में त्वचा पर हल्की लालिमा नज़र आती है। मध्यम स्तर की गम्भीरता वाले मामलों में खुजली का लक्षण क़रीब 24 घंटों के बाद शुरू होता है और लगभग 48 घंटों में छाले विकसित हो जाते हैं।
छाले, आमतौर पर कुछ दिनों में सूख जाते हैं और त्वचा पर कोई निशान नहीं छोड़ते। लेकिन ‘पेडेरिन’ व्यापक रूप से शरीर में फैल गया हो, तब मामला ज़्यादा गम्भीर हो जाता है। ऐसी दशा में बुखार, तंत्रिका और जोड़ों में दर्द या उल्टी आदि के लक्षण प्रकट होते हैं। तब इसके इलाज़ के लिए अस्पताल जाना ज़रूरी हो जाता है। यदि आँखों पर ‘पेडेरिन’ का प्रकोप ज़्यादा हो जाए तो आँखों की रोशनी जाने का भी ख़तरा पैदा हो जाता है।
‘पेडेरिन’ के प्रकोप से बचाव के उपाय
- मक्खियों को स्पर्श किये बग़ैर उड़ा देना चाहिए।
- त्वचा पर जहाँ ‘नैरोबी मक्खी’ बैठी हो, उसे यथाशीघ्र साबुन और पानी से अच्छी तरह से धोना चाहिए।
- सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करना चाहिए।
- ऐसे कपड़े पहनें जो शरीर को ज़्यादा से ज़्यादा ढककर रखें।
- चश्मा पहनें और आँख को छूने से बचें।
- रात में रोशनी से बचें। हालाँकि, प्रकाश स्रोत के माध्यम से ‘नैरोबी मक्खी’ को जमा करके उन्हें कीटनाशक से नष्ट कर सकते हैं।
- नैरोबी मक्खी के प्रजनन स्थलों पर इमिडाक्लोप्रिड, फिप्रोनिल और डेल्टामेथ्रिन जैसे कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं।
- शरीर पर उभरे चकत्ते यदि गम्भीर लगें तो डॉक्टर से सलाह लें।
‘नैरोबी मक्खी’ की पहचान
‘नैरोबी मक्खी’ की लम्बाई क़रीब एक सेंटीमीटर की होती है। इसका सिर, पेट का पिछला भाग और एलीट्रा काले रंग का होता है तथा गर्दन और पेट का रंग नारंगी होता है। यह नमी वाले स्थान जैसे- धान के खेतों में आसानी से पाये जाते हैं। मादा ‘नैरोबी मक्खी’ नमी वाले स्थान में एक-एक करके अंडे देती है। भारी बारिश के बाद ‘नैरोबी मक्खी’ की संख्या में तेज़ वृद्धि होती है और इसका प्रकोप बढ़ जाता है। रात में ‘नैरोबी मक्खी’ प्रकाश की ओर आकर्षित होती है।
‘नैरोबी मक्खी’ का जैविक परिचय
‘नैरोबी मक्खी’ का मूल स्थान अफ्रीकी देश केन्या को माना गया है। इसीलिए, इसे ‘केन्या मक्खी’ या केन्या की राजधानी नैरोबी के नाम से ‘नैरोबी मक्खी’ का नाम मिला। नामकरण से पहले केन्या में इसका भयंकर प्रकोप देखा गया था। लेकिन अब ‘नैरोबी मक्खी’ की मौजूदगी केन्या तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये कीट अब विश्व के उष्णकटिबन्धीय और समशीतोष्ण इलाकों में आसानी से पायी जाती है।
कीट विज्ञान (Entomology) में ‘पेडेरस’ वंश Paederus: पैडरस की दो प्रजातियों पी. एक्जिमियस और पी. सबियस (Species: P. Eximius and P. Sabaeus) को ‘नैरोबी मक्खी’ कहा जाता है। ये भृंग (beetle), कोलियोप्टेरा गण (Order: Coleoptera) के स्टेफिलिनिडे कुटुम्ब (Family: Staphylinidae) से सम्बन्धित हैं, जो ‘रोव बीटल’ (rove beetle) भी कहलाते हैं। स्टेफिलिनिडे की पहचान मुख्य रूप से छोटे एलीट्रा (आगे के पंख) से होती है। ये आमतौर पर कीट के पेट के आधे से अधिक खंडों को उजागर करते हैं।
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