Millets ‘मिलेट्स’ जिसे कदन्न भी कहा जाता है, कई मोटे अनाजों को कहा जाता है। इसमें ज्वार (Sorghum), बाजरा (पर्ल मिलेट), रागी (Finger millet), कंगनी (Foxtail Millet), कुटकी (Little Millet), चीना (Proso Millet), कोदो (Kodo Millet), सांवां (Echinochloa esculenta / Barnyard Millet) और भूराशीर्ष (Browntop Millet) जैसी फसलें शामिल हैं।
पौष्टिक अनाज कदन्न को आमतौर पर दो भागों में बांटा जाता है। बड़े कदन्न और छोटे कदन्न। बड़े कदन्न में ज्वार और बाजरा आते हैं, जबकि छोटे कदन्न में रागी, कोदो, कुटकी, सांवा, कंगनी, कुटकी आदि हैं। कदन्न या मिलेट्स, जिसे मोटे अनाज के नाम से भी जाना जाता है, न सिर्फ़ सेहत के लिए फ़ायदेमंद है, बल्कि ये किसानों के लिए भी बहुत उपयोगी है। इनकी खेती में ज़्यादा लागत नहीं आती और कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी इनकी खेती आसानी से की जा सकती है।
पिछले कुछ सालों में मिलेट्स की मांग बढ़ी है और बाज़ार में ज्वार, बाजरा, रागी जैसे मिलेट्स से बने कई उत्पाद बिक रहे हैं, जिसे लोग पसंद भी कर रहे हैं। ऐसे में किसानों के लिए इसकी खेती फ़ायदे का सौदा साबित होगी।
ज्वार- इसे ग्रेट मिलेट भी कहा जाता है। ये फ़ाइबर से भरपूर होते हैं। इसलिए वज़न कम करने में मदद करने के साथ ही ये कब्ज़ की समस्या से भी निजात दिलाने का दम रखते हैं। इसमें कैल्शियम होता है, जो हड्डियों को मज़बूत बनाने में मदद करता है, जबकि कॉपर और आयरन शरीर में रेड ब्लड सेल्स की संख्या बढ़ाने और एनीमिया को दूर करने में मददगार है। पोषक तत्वों से भरपूर ज्वारा का इस्तेमाल आज भी ग्रामीण इलाकों में रोटी बनाने के लिए किया जाता है। धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब ये शहरी लोगों के भोजन का भी हिस्सा बनने लगा है।
बाजरा- बाजरे की तासीर गर्म होती है। इसलिए आमतौर पर सर्दियों के मौसम में इसके लड्डू या रोटी बनाकर खाई जाती है। इसमें प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में होता है। हड्डियों को मज़बूत बनाने के साथ ही बाजरा पाचन को भी दुरुस्त रखता है। वज़न भी नियंत्रित रहता है। भारत में राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में मुख्य अनाज के रूप में इसकी खेती की जाती है।
बाजरे में एंटी ऑक्सिडेंट्स भी भरपूर होता है। नींद लाने और पीरियड्स के दर्द को कम करने में मदद करता है। बाजरे की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि इसके सेवन से कैंसर वाले टॉक्सिन नहीं बनते हैं।
रागी- ये अनाज भी बहुत पौष्टिक होता है। इसमें दूसरे अनाजों की तुलना में कैल्शियम ज़्यादा होता है। प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। कैल्शियम हमारी हड्डियों को मजबूत और मांसपेशियों को ताकतवर बनाने में मददगार है। इसमें आयरन भी खूब होता है। रागी के आटे से आप रोटी, चिल्ला, इडली आदि बना सकते हैं। रागी की लप्सी छोटे बच्चों को भी खिलाई जाती है। डायबिटीज़ के मरीज जो गेहूं की रोटी नहीं खा सकते, उनके लिए रागी फ़ायदेमंद है।
कोदो- कोदो बहुत ही पुराना अनाज है, जिसे नए ज़माने में नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। ये पौष्टिकता से भरपूर होते हैं। इसमें थोड़ा फैट और प्रोटीन होता है। इसका ‘ग्लाइसेमिक इंडेक्स’ कम होने की वजह से डायबिटीज़ के मरीजों को सफेद चावल की जगह कोदो खाने की सलाह दी जाती है। इसकी खेती मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ में होती है। वहां के आदिवासियों का ये मुख्य भोजन है।
कंगनी- ये भी एक प्राचीन अनाज है, जिसकी खेती दक्षिण भारत में मुख्य रूप से की जाती है। इसके ऊपर भूसे की पतली परत होती है, जिसे इस्तेमाल से पहले हटा देना चाहिए। इसे चावल की तरह पकाकर या रोटी बनाकर भी खाया जा सकता है। इसके अलावा, इसे दूसरे आटे के साथ मिलाकर ब्रेड, पुडिंग, नूडल्स आदि भी बनाया जा सकता है। सामान्य चावल की तुलना में इसमें प्रोटीन अधिक होता है, साथ ही ये फाइबर से भी भरपूर होता है। इसका ‘ग्लाइसेमिक इंडेक्स’ कम होने की वजह से डायबिटीज़ के मरीजों और हृदय रोगियों के लिए ये लाभदायक है।
कुटकी- इसकी खेती मुख्य रूप से तमिलनाडू, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, बिहार और झारखंड में की जाती है। कुटकी का चावल की तरह इस्तेमाल किया जाता है, इससे इडली, डोसा भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा, बेकरी उत्पाद बनाने में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है।
इसमें थोड़ा फैट, प्रोटीन, आयरन, मैग्नीशियम और ज़िंक होता है। इससे ये डायबिटीज़ और हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है, साथ ही कब्ज़ की समस्या से परेशान लोगों को भी इसके सेवन से लाभ मिलता है।