दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच अब दिल्ली के किसानों ने कहा है कि उन्हें सरकारी अनुदान, ऋण और मुआवजा लेने के लिए जरूरी दस्तावेज चाहिए, जो करीब दो साल से जारी नहीं किए गए हैं।
इस साल अक्टूबर में दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के झुलझुली गांव के दीपक यादव (25) चावल की फसल काटने और गेहूं की बुवाई में काम आने वाली 2.10 लाख रुपये की हैप्पी सीडर मशीन लेना चाहते थे। सरकार की ओर से मशीन पर 50 फीसदी सब्सिडी के लिए दीपक आवेदन करना चाहते थे, लेकिन रिकॉर्ड में भूमि उनके नाम नहीं चढऩे की वजह से वह आवेदन नहीं कर पाए। सब्सिडी लेने के लिए आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और जमीन के मलिकाना हक से जुड़े दस्तावेज मांगे गए थे।
हालांकि, दीपक अभी जिस जमीन पर खेती कर रहा है, वह दिल्ली सरकार के राजस्व रिकॉर्ड में उनके दादा मंगेराम (80) के नाम पर दर्ज है। दीपक के मुताबिक पिछले साल सितंबर में दादा की मौत के बाद जमीन का मलिकाना हक लेने के लिए कई बार अनुरोध किया, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में उसका नाम दर्ज नहीं किया गया।
एक क्षेत्रीय कृषि अधिकारी के मुताबिक जिस व्यक्ति के नाम जमीन पंजीकृत है, सब्सिडी पाने के लिए वही आवेदन कर सकता है। सब्सिडी जारी होने के बाद एक ऑडिट टीम एक साल के भीतर निरीक्षण करती है। अगर उसे लगता है कि सब्सिडी ऐसे व्यक्ति को जारी की गई है, जिसके पास जमीन का स्वामित्व नहीं है तो यह हमें परेशानी में डाल देगा।
इस समस्या से जूझ रहे दीपक अकेले शख्स नहीं हैं। पिछले दो वर्षों में दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने राष्ट्रीय राजधानी के 174 गांवों को शहरी क्षेत्र घोषित किया है, तभी से सरकारी दस्तावेजों में भूमि का मलिकाना हक बदलने की प्रक्रिया रूकी पड़ी है। परिणामस्वरूप खरीदार अपनी खरीदी गई भूमि का स्वामित्व नहीं ले पा रहे हैं और किसानों को अपने पूर्वजों की भूमि विरासत में नहीं मिल पा रही है। इसका अर्थ है कि ऐसे किसान कर्ज, सब्सिडी और जनउपयोगी कनेक्शन के लिए आवेदन भी नहीं कर सकते।
इन 174 गांवों में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की लैंड पूलिंग पॉलिसी के लिए चुने गए 95 भी शामिल हैं, जिनकी जमीन आवासीय और नागरिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए डीडीए ले सकता है। अनधिकृत कॉलोनियों के निवासियों को मलिकाना हक देने के उद्देश्य से लागू की गई पीएम उदय योजना के लिए शेष 79 गांवों को नवंबर 2019 में शहरी क्षेत्र घोषित किया गया था।
इन गांवों को दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 की धारा 507 के तहत शहरी क्षेत्र घोषित कर डीडीए को सौंप दिया गया। राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि धारा 507 लागू होने के बाद दो राजस्व कानून दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम 1954 और दिल्ली भूमि राजस्व अधिनियम 1954 म्यूटेशन प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं, जो इन क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं।
राजस्व विभाग और डीडीए के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक दिल्ली के सभी शहरी गांवों में भूमि म्यूटेशन (नाम परिवर्तन) के आवेदन नहीं लिए जा रहे हैं। इस मुद्दे को हल करने के लिए एक समान कानून की आवश्यकता है। राजस्व विभाग के अधिकारी ने कहा, चूंकि ये गांव डीडीए को सौंप दिए गए हैं, ऐसे में हमारे कानून इन पर लागू नहीं होते। हम भूमि म्यूटेशन अनुरोधों को आगे नहीं बढ़ा सकते।
वहीं डीडीए के भूमि प्रबंधन विभाग के अधिकारी के मुताबिक भले ही इन गांवों को हमें सौंप दिया गया है, लेकिन भूमि रिकॉर्ड अब भी राजस्व विभाग के पास हैं। डीडीए के प्रवक्ता ने कहा है कि नगर निगम भूमि म्यूटेशन प्रक्रिया कर सकते हैं। हालांकि, दक्षिण, उत्तर और पूर्वी निगम के मूल्यांकन और संग्रह विभाग के अधिकारियों ने कहा कि म्यूटेशन में उनकी भूमिका केवल प्रॉपर्टी टैक्स तक सीमित है।
पूर्वी नगर निगम के एक अधिकारी के मुताबिक हम टैक्स उद्देश्यों के लिए संपत्ति के नाम पर ई-परिवर्तन के आवेदन ले सकते हैं, लेकिन भूमि रिकॉर्ड में बदलाव केवल भूमि के स्वामित्व वाली एजेंसी-राजस्व विभाग, डीडीए या भूमि और विकास कार्यालय ही कर सकती है।
म्यूटेशन नीति को नहीं मिली मंजूरी
राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस समस्या के समाधान के लिए 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के समय आवास एव शहरी मामलों के मंत्रालय को भूमि म्यूटेशन में बदलाव की एक मसौदा नीति भेजी गई थी, लेकिन इसे अभी तक मंजूरी नहीं दी गई है ।
अदालत जा सकते हैं किसान
राजस्व विभाग के एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम के अनुसार कृषि भूमि का उपयोग केवल कृषि या उससे जुड़े उद्देश्यों के लिए किया जाना था। दिल्ली में विकसित अनधिकृत कालोनियां इन कृषि भूमि पर आईं, जो अधिनियम का उल्लंघन है। इसलिए म्यूटेशन को रोकना कृषि भूमि को अनधिकृत विकास के लिए हस्तांतरित होने से रोकता है। अगर लोग पीडि़त हैं तो वे सिविल अदालत का रुख कर सकते हैं।