किसान तीन नए कृषि कानूनों (Agriculture Laws) के खिलाफ 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान तीनों कानूनों को अपने खिलाफ बताकर उन्हें वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। विरोध दर्ज कराने के लिए वे 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड निकालने के लिए तैयार हैं।
किसान आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने करीब 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बुधवार को 10वें दौर की वार्ता की। इस दौरान सरकार ने कृषि कानूनों के अमल को डेढ़ वर्षों तक टालने का प्रस्ताव रखा। इससे कुछ किसान प्रतिनिधियों में एक उम्मीद जगी।
उनका मानना है कि सरकार अगर दो से ढाई साल भी कानून के अमल पर रोक लगाने को तैयार हो तो सरकार की बात मानी जा सकती है। ऐसा इसलिए कि अगर इतनी अवधि तक रोक लग जाती है तो फिर ये कानून ठंडे बस्ते में चले जाएंगे, क्योंकि इसके बाद 2024 के आम चुनाव (General Election) के कारण सरकार स्वयं कानून को लागू करने से बचेगी।
किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसल खरीद की गारंटी चाहते हैं। सरकार ने इसके समाधान के लिए किसान संगठनों व सरकारी प्रतिनिधियों की एक संयुक्त समिति बनाने की बात कही, जिसे मानने के लिए किसान तैयार नहीं हुए।
किसानों को आयोगों और समितियों पर भरोसा नहीं
किसान नेताओं का कहना है कि आजादी के बाद से अब तक छह आयोग बने हैं। आखिरी आयोग स्वामीनाथन आयोग था, लेकिन एक भी आयोग की सिफारिशें अब तक लागू नहीं हो पाईं। ऐसे में एक और कमेटी बनाकर क्या होगा।
पंजाब के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के जनरल सेक्रेटरी हरिंदर सिंह के मुताबिक सरकार के साथ अगली बैठक 22 जनवरी को है। कुछ लोगों का विचार है कि सरकार के समक्ष कानून के अमल पर दो साल से भी अधिक अवधि तक रोक लगाने की मांग रखी जाए।
हालांकि एक अन्य किसान नेता का कहना है कि कानून को निरस्त करने की मांग पर सभी किसान व किसान संगठनों की एक राय है, लेकिन कानून के अमल पर रोक लगाने पर सबकी सम्मति नहीं है।
सर्व हिंद राष्ट्रीय किसान महासंघ के शिव कुमार कक्काजी के मुताबिक किसानों का फैसला बहुमत से नहीं, बल्कि सर्वसम्मति से होता है।