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कंगनी, रागी, ज्वार और बाजरा जितना लोकप्रिय भले न हो, लेकिन इसकी पौष्टिकता और औषधीय गुण इनसे कम भी नहीं है। अब धीरे-धीरे इस मोटे अनाज के प्रति भी लोगों में जागरुकता आ रही है और किसान इसकी खेती के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
कंगनी फसल की उन्नत खेती
कंगनी जिसे टांगुन और कौनी नाम से भी जाना जाता है, सेहत के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद होती है। साथ ही इसे हरे चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका पौधा घास की तरह होता है, जिसकी ऊंचाई 4-7 फीट होती है और इसके बीज बहुत बारीक यानी तकरीबन 2 मिलीमीटर के होते हैं। कंगनी को Foxtail Millet भी कहा जाता है।
कंगनी की खेती मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में की जाती है। बिहार में छोटे और सीमांत किसान भी अब कंगनी की स्थानीय किस्में उगा रहे हैं। बिहार के समस्तीपुर, सीतामढ़ी, जमुई, सिहोर, मुजफ्फरपुर, कैमूर जिलों में इसकी खेती हो रही है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है बिहार के किसानों को कंगनी की खेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए इसकी खेती की उन्नत तकनीक की जानकारी होना ज़रूरी है।
कंगनी फसल की उन्नत खेती के लिए मिट्टी और जलवायु
कंगनी को शुष्क और अर्धशुष्क इलाकों में आसानी से उगाया जा सकता है। इसमें सूखे को सहने करने की भी क्षमता होती है, इसलिए बंजर भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। बिहार में इसकी खेती के लिए 122 मिली मीटर वार्षिक वर्षा की ज़रूरत होती है, इसलिए ज़्यादातर इसकी खेती ऊपरी इलाकों में की जाती है। वैसे तो कंगनी को हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार अच्छी होती है। बिहार में खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 7.5 से 8.3 होना चाहिए।
कंगनी फसल की उन्नत खेती के लिए बुवाई और खेत की तैयारी
बुवाई से पहले खेत को खरपतवार मुक्त करना ज़रूरी है। फिर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें, उसके बाद देसी हल या हेरो से दो तीन बार जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाएं। फिर पाटा चलाकर खेत को समतल करके बुवाई के लिए तैयार करें। बुवाई का सबसे सही समय जून मध्य से जुलाई मध्य तक है। इसकी बुवाई पंक्तियों में की जाती है जिसके लिए प्रति हेक्टेयर 10 किलो बीज की ज़रूरत होती है। पंक्तियों के बीच 25 सेमी × 10 सेमी की दूरी होनी चाहिए और बीजों को 2-3 सेमी. की गहराई में बोना चाहिए।
कंगनी फसल की उन्नत खेती के लिए खाद और उर्वरक
कंगनी की अच्छी फसल के लिए मिट्टी की जांच के आधार पर उर्वरकों का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। बुआई से लगभग 30 दिन पहले 6 टन/हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालें। अधिक मुनाफा कमाने के लिए 40:20:20 N:P2O5:K2O किग्रा/हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। फॉस्फोरस, पोटैशियम की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय डालनी चाहिए और बचे हुए 50 फीसदी नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में, यानी 25 फीसदी कल्ले फूटने के समय और बाकी 25 फीसदी फूल आने के वक्त डालना चाहिए। नाइट्रोजन का उपयोग बारिश के बाद करना चाहिए।
कंगनी फसल की उन्नत खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण
कंगनी की फसल को आमतौर पर सिंचाई की तो ज़रूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि ये खरीफ के मौसम में होती है, लेकिन कभी बिल्कुल सूखा पड़ जाए तो एक सिंचाई कर देनी चाहिए। लेकिन हां इसकी फसल में खरपतवार नियंत्रण ज़रूरी है। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 15-20 दिन बाद और दूसरी 30-35 दिन बाद हाथ से कर देनी चाहिए।
कंगनी फसल की उन्नत खेती की अंतर-फसल प्रणाली
बिहार में कंगनी की खेती में अंतर फसल प्रणाली का इस्तेमाल फायदेमंद है। इसमें कंगनी+हरा चना, कंगनी+सोयाबीन, कंगनी+लाल चना शामिल हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।
कंगनी फसल की कटाई
जब कंगनी की बालिया हरे रंग से बदलकर पीले भूरे रंग की हो जाए तब फसल काटने के लिए तैयार हो जाती है। कंगनी के पौधे से केवल बालियां या पकने के बाद पूरा पौधा भी जमीन से काटा जा सकता है। आमतौर पर बुवाई के 80-90 दिन बाद फसल तैयार हो जाती है। सही तरीके से इसकी खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल अनाज और 40-50 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है।
कंगनी फसल की उन्नत खेती के लिए किस्में
बिहार में वैज्ञानिकों की ओर से बताई गई कंगनी की उन्नत किस्में हैं- राजेंद्र कौनी 1, सूर्यनंदी (सिया 3088), सिया 3156, सिया 3085 और पन्त सेतरिया 4 हैं।
कंगनी में पौष्टिकता
कंगनी को चावल की तरह पकाकर खाया जा सकता है या इसके आटे से रोटियां भी बनाई जा सकती हैं। इसके अलावा इससे खीर, इडली, दलिया, मिठाई बिस्किट वगैरह बनाये जाते हैं। यह बहुत ही पौष्टिक होता है इसके 100 ग्राम अनाज में 6-8 ग्राम फाइबर, 12.3 ग्राम प्रोटीन, 60.9 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.3 ग्राम वसा, 31 मिलीग्राम कैल्शियम, 2.8 मिलीग्राम आयरन और 331 कैलोरी होती है।