DBT योजना का उद्देश्य छोटी भूमि वाले किसानों, जिन्हें मौजूदा सरकार में कम लाभ होता है, उन्हें सब्सिडी का लाभ पहुंचाने, बड़े किसानों द्वारा खाद के अनियंत्रित उपयोग को कम करने और गलत तरीके से सब्सिडी का लाभ उठाने वाले लोगों को रोकना है।
अप्रैल 2010 में फॉस्फेट/ पोटाश उर्वरकों के लिए सब्सिडी प्रभावी हुई थी। परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2011 में इन उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी 41,500 करोड़ रुपये से घटकर वर्ष 2020 में 26,369 करोड़ रुपये रह गई।
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हालांकि, इस अवधि में यूरिया सब्सिडी 24,337 करोड़ से बढ़कर 54,755 करोड़ रुपये हो गई। जब गैस आधारित यूरिया की उत्पादन लागत 900/45 किलोग्राम होती है। तब यह किसानों को करीब 70 प्रतिशत छूट पर 242 रुपये में मिलती है।
इससे पहले भी उर्वरक मंत्रालय एक ऐसी प्रणाली शुरू करने पर विचार कर रहा था, जिसके तहत किसान उर्वरक के बाजार मूल्य का भुगतान करता और इसके बाद आधार से जुड़े उसके बैंक खाते में सब्सिडी की राशि जमा कराई जाती। हालांकि इसके साथ ही उन चिंताओं को भी बल मिला कि छोटी जोत वाले किसान उर्वरक के लिए इतना अग्रिम भुगतान कैसे करेंगे।
वर्तमान में, सरकार प्वाइंट ऑफ सेल (PoS) के माध्यम से हुई बिक्री पर उर्वरक कंपनियों को समय-समय पर सब्सिडी की राशि मुहैया कराती है। इसकी शुरुआत डीबीटी के प्र्रथम चरण में 1 अप्रैल 2018 से हुई थी।
उर्वरक की कमी नहीं होने देगी सरकार
12 नवंबर को केंद्र ने वित्त वर्ष 21 के लिए उर्वरक सब्सिडी के लिए 65,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया था, जो कि बजट में 71,309 करोड़ रुपये से अलग है। इससे उर्वरक कंपनियों का बकाया चुकाया जाएगा।
कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे किसान आंदोलन के बीच यह सरकार का एक अभूतपूर्व कदम है, क्योंकि किसी भी वर्ष सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा बाद के वर्ष में जारी किया जाता था।
ऐसी स्थिति में उर्वरक उद्योग को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परिणामस्वरूप देश के कई हिस्सों में उर्वरक की कमी हो जाती है। किसानों को उर्वरक की कमी न झेलनी पड़ी, इसके लिए सरकार पूरी तरह तैयार दिख रही है।