आमतौर पर किसानों को भोला-भाला और कम शिक्षित या नासमझ समझा जाता है। ये धारणा है कि किसानों को खेती से जुड़ी तकनीकी या क़ानूनी बातें समझ में नहीं आएँगी। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे किसान से मिलवाएँगे जिसकी सूझ-बूझ आपको सामान्य धारणाओं को बदलने के लिए मज़बूर कर देगी। दरअसल, किसान ऑफ़ इंडिया की टीम जब ग़ाज़ियाबाद ज़िले के जलालपुर गाँव में थी, तब इसकी मुलाकात हुई किसान विनय कुमार से। करीब 45 साल के विनय कुमार का साफ़ मानना है कि खेती की तस्वीर को सरकार और सरकारी योजनाओं की बदौलत नहीं बदला जा सकता। इसके लिए किसानों को ख़ुद ही नये रास्ते अपनाने होंगे।
ये भी पढ़ें: गुड़ में कम मुनाफ़ा देख डरें नहीं, नये रास्ते ढूँढ़े
सिर्फ़ उत्पादन बढ़ाना काफ़ी नहीं
विनय कुमार का कहना है कि अब सिर्फ़ उत्पादन बढ़ाने से किसानों की आमदनी नहीं बढ़ेगी क्योंकि ज़मीन की जो अधिकतम उत्पादन क्षमता हो सकती है, किसान अब उसे हासिल कर चुके हैं और अब इससे ज़्यादा उपज सम्भव नहीं है। विनय कुमार बताते हैं कि चीनी मिलें गन्ना किसानों से 320 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ना खरीदते हैं। बाज़ार में चीनी की कीमतों को देखें तो गन्ने का इससे ज़्यादा दाम किसानों को मिल पाना सम्भव नहीं है। इसीलिए यदि किसानों की ओर से समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए और दबाव बनाया गया तो गन्ने का दाम मिलने में और देरी होने लगेगी। अभी पिछले पेराई सीज़न का दाम मिलने में एक साल लग जाता है।
गन्ने से सालाना प्रति एकड़ 40 हज़ार की कमाई
विनय कुमार ने किसान ऑफ इंडिया से गन्ना की बुआई से लेकर उपज को चीनी मिल तक पहुँचाने और भुगतान मिलने तक की पूरी प्रक्रिया बतायी। उन्होंने गन्ना की खेती में प्रति बीघे से लेकर प्रति एकड़ लागत और आमदनी का पूरा हिसाब बताया। इससे पता चलता है कि साल में एक फसल वाली गन्ने की खेती से प्रति एकड़ 40 हज़ार रुपये की अधिकतम आमदनी हो सकती है।
गेहूँ की खेती क्यों नहीं लुभाती?
विनय कुमार गन्ने के साथ गेहूँ की खेती भी करते हैं। वो बताते हैं कि गेहूँ की प्रति एकड़ पैदावार 16 क्विंटल से ज़्यादा होती है। लेकिन मुश्किल ये है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज़्यादातर किसान सिर्फ़ अपनी ज़रूरत के लिए ही गेहूँ की खेती करते हैं। दरअसल, कटाई के लिए छोटे किसानों को मशीनों की दिक्कत हो जाती है। मज़दूरों की भी कमी है। जो मज़दूर मिलते भी हैं, वो कटाई के बदले उपज का एक ख़ासा हिस्सा मज़दूरी में ले लेते हैं। इस तरह जो वास्तविक उपज किसान के घर तक पहुँचती है, वो इतनी नहीं होती कि गन्ना किसान गेहूँ का रकबा बढ़ाने को प्रोत्साहित हों।
ये भी पढ़ें: गन्ने की खोई से कैसे बनेगी बायो-क्रॉकरी?
नकदी फसलों का रुख़ करें
विनय कुमार का कहना है कि किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए गेहूँ, गन्ना, धान जैसी फसलों से मोह छोड़कर सब्ज़ियों, फूलों और फलों खेती को अपनाना चाहिए। उनका कहना है कि आवारा पशुओं की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इसके ख़िलाफ़ यदि किसान एकजुट होकर बाड़बन्दी और तारबन्दी करें तो बहुत फ़ायदा होगा। इसी तरह किसान यदि सामूहिक तौर पर खेती के उपकरणों की खरीदारी और इस्तेमाल का रास्ता सीख लें तो भी उन्हें बहुत फ़ायदा होगा।
सरकारी योजनाओं से छोटी जोत के किसानों का लाभ नहीं
विनय कुमार को खेती-बाड़ी से जुड़ी सरकारी योजनाओं और कृषि क़ानूनों की भी पूरी जानकारी है। किसान आन्दोलन को लेकर उनका कहना है कि छोटी जोत के किसानों के लिए कोई खास काम नहीं हो रहा। सरकार की योजनाओं का लाभ उन्हें मिल नहीं पाता। खेती से आमदनी इतनी होती नहीं कि किसी किसान परिवार का एक से ज़्यादा सदस्य खेती कर सके।
कृषि क़ानूनों के बारे में विनय कुमार कहते हैं कि इन क़ानूनों से होने वाले नुकसानों को किसान समझ रहे हैं, लेकिन शहरी आबादी को इसकी कोई समझ नहीं है। शहरी लोग ये समझ ही नहीं पा रहे कि ये क़ानून कैसे ख़ुद उनके लिए भी बेहद नुकसानदेह हैं। क्योंकि किसान तो हर हालत में अपनी ज़मीन से अपना घर-परिवार चला लेगा। आने वाले समय में शहरी लोगों के लिए अपना परिवार चला पाना मुश्किल होने वाला है।
विनय कुमार से परमेन्द्र मोहन की पूरी बातचीत के लिए यहाँ क्लिक करें