किसान ऑफ इंडिया की हमारी सहयोगी दीपिका जोशी ने हाल ही में केंचुआ खाद यानी वर्मी कंपोस्ट पर एक स्टोरी लिखी थी, जिसे लेकर कुछ किसान ऑफ इंडिया के कुछ पाठकों ने और डिटेल्स का आग्रह किया था। ऐसे में हम सभी ने तय किया कि शनिवार को ही हरियाणा के गुरुग्राम ज़िला स्थित पटौदी चला जाए, जहां के प्रगतिशील किसान कृष्ण कुमार केंचुआ खाद यानी वर्मी कंपोस्ट बड़े पैमाने पर बना रहे हैं। एग्रो बिज़नेस में तेज़ी से अलग पहचान बना रहे कृष्ण कुमार ने हमें सुबह 11 बजे मिलने का वक्त दिया था, गूगल मैप ने दिल्ली से उनके ठिकाने तक पहुंचने में ढाई घंटे की दूरी बताई तो हमने 8 बजते-बजते दिल्ली छोड़ दिया।
पटौदी के गोरियावास में युवा कृष्ण कुमार का एग्रो वर्मी कंपोस्ट यूनिट
पटौदी बाज़ार पार करने के बाद मुश्किल से 15 मिनट का सफर है गोरियावास का और सड़क की बाईं ओर लगा बोर्ड कृष्ण कुमार के वर्मी कंपोस्ट यूनिट का पता बता देता है। सड़क के दूसरी ओर थोड़ा अंदर जाने पर इनका पैतृक आवास है, लेकिन कृष्ण कुमार घर पर कम अपने यूनिट पर ही ज़्यादा रहते हैं। हमने यूनिट को पहले घूम-घूम कर देखा और रिकॉर्डिंग शुरू करने ही वाले थे, तब तक उनके घर से हमारे लिए चाय-नाश्ता आ गया। भारत के गांवों खासकर किसान परिवारों की ये परंपरा आज भी हमें हर जगह देखने को मिलती है कि बाहर से कोई भी आए, उसे बिना खिलाए-पिलाए जाने नहीं देते।
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कृष्ण कुमार ने अपने एग्रो बिज़नेस के सफर के बारे में बताया कि वो परंपरागत खेती से कुछ अलग करना चाहते थे क्योंकि ये देख रहे थे कि उनके पिता और परिवार के बाक़ी सदस्य पूरी मेहनत के बावजूद सीमित आय ही कर पाते हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने गौपालन से की, लेकिन एक साल होते-होते उन्हें लगा कि यहां भी तरक्की की रफ्तार उनकी सोच की रफ्तार के मुताबिक नहीं है। इसके बाद उन्होंने अपने घर के बाहर ही दस-बारह बेड्स लगाकर वर्मी कंपोस्ट बनाना शुरू किया। उनसे बातचीत में एक और शुद्ध भारतीय मिजाज सामने आया कि जिससे शुरुआत होती है, उससे हमेशा लगाव बना रहता है।
ये बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कृष्ण कुमार अब चार वर्मी कंपोस्ट यूनिट चला रहे हैं, लखनऊ और जयपुर में भी उनकी यूनिट है, लेकिन अपने घर के सामने बनाए 10-12 बेड्स को आज भी उन्होंने नहीं हटाया है और न ही ऐसा कोई इरादा है। कृष्ण कुमार ने किसान ऑफ इंडिया से बातचीत में पूरे विस्तार से वर्मी कंपोस्ट बनाने का तरीका बताया, अपने बिज़नेस के बारे में बताया और वहां हमने गोबर लाए जाने से लेकर तैयार वर्मी कंपोस्ट की पैकिंग तक की पूरी प्रक्रिया अपने कैमरे में कैद की।
कृष्ण कुमार ने बताया कि जिस तरह से रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल खेती में बढ़ा, उसके नुकसान तेज़ी से सामने आने लगे हैं, बीमारियां बढ़ रही हैं और खादों की किल्लत भी हो रही है। इसे देखते हुए आने वाले वक्त में जैविक खेती की ओर बहुत तेज़ी से लोगों की दिलचस्पी बढ़ने वाली है। उन्होंने कहा कि अभी भी वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल इतना ज़्यादा किया जा रहा है कि उत्पादन कम पड़ रहा है, ऐसे में इस क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं।
बहुत जल्दी ये वीडियो हम आपसे भी साझा करेंगे, जिससे दूसरे किसानों को और वर्मी कंपोस्ट के क्षेत्र में करियर बनाने के इच्छुक लोगों को पूरी जानकारी मिल सकेगी।
सरसों की खेती पर मौसम की मार
हरियाणा के पटौदी इलाके में हमने देखा कि ज़्यादातर खेतों में सरसों की फसल लगी हुई है। यही तस्वीर हमने बिहार के दौरे पर भी देखी थी। पिछले साल सरसों तेल की कीमत मार्केट में प्रति किलो दो सौ रुपये के पार पहुंच गई थी। इसे देखते हुए मंडियों, व्यापारियों ने सरसों की अच्छी कीमतों पर खरीदारी की और किसानों को सरसों की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी ज़्यादा मिली। उसी का असर इस बार ज़्यादा रकबे में सरसों की खेती के रूप में देखा जा रहा है।
पूर्व फौज़ी और मौज़ूदा किसान ने बताया सरसों का हाल
हरियाणा में ज़्यादातर परिवारों के सदस्य या तो सेना, अर्धसैनिक बलों में हैं या फिर किसान हैं और हमारी मुलाकात संयोग से एक ऐसे किसान से हुई, जो पहले सेना में थे। गोरियावास के किसान सतबीर सिंह ने हमारी सहयोगी दीपिका जोशी को बताया कि वो पहले भारतीय सेना में थे, वहां से रिटायर होने के बाद अब पैतृक ज़मीन में खेती करते हैं। सतबीर सिंह ने जानकारी दी कि इस बार गेहूं की खेती किसानों ने सिर्फ अपने परिवार के खाने लायक ही की है, जबकि सरसों की फसल आय बढ़ने की उम्मीद से ज़्यादा खेत में लगाई है।
दीपिका ने उनसे सरसों और गेहूं, दोनों का हाल पूछा तो सतबीर सिंह ने बताया कि गेहूं तो हाल में हुई बारिश की मार झेल गया, लेकिन सरसों की फसल को पचास-साठ फीसदी तक नुकसान पहुंचा है। सतबीर सिंह ने कहा कि पूरे इलाके में सरसों की फसल पर मौसम की मार पड़ी है और ज़्यादातर किसानों ने फसल बीमा भी नहीं कराया हुआ है, ऐसे में दिक्कतें बढ़ने वाली हैं। सतबीर सिंह ने किसानों के डिज़िटल अड्डा किसान ऑफ इंडिया के जरिये केंद्र और हरियाणा सरकार से मांग की कि सरसों की खेती कर रहे किसानों के नुकसान का आकलन कराए और उचित फसल आपदा मुआवज़ा दे।
प्रतिकूल हालात का सामना तो हर किसी को करना होता है, लेकिन किसानों को शायद सबसे ज़्यादा करना पड़ता है। अच्छी फसल के लिए मौसम का पूरा साथ चाहिए होता है, अगर ये मिल भी गया और उत्पादन ज़्यादा हुआ तो कीमत घट जाती है और अगर उत्पादन कम हुआ तो लागत निकलना भी मुश्किल। इस तरह की चुनौतीपूर्ण स्थिति में सदियों से खेती करते आ रहे हैं हमारे देश के किसान और ऐसे ही हालातों ने उन्हें बनाया है संघर्षशील।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।