देश भर में खेती-किसानी की तस्वीर बदल रही है। जैविक खेती (Organic Farming) की ओर किसानों का रुझान बढ़ा है और आय बढ़ाने के लिए किसान ज़्यादा से ज़्यादा कृषि तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। पारंपरिक फसलों से अलग हटकर बागवानी और नगदी फसलों का रुख कर रहे हैं। ऐसे में देश के कृषि उत्पादक राज्यों में से एक बिहार में खेती-किसानी की मौज़ूदा तस्वीर क्या है, किसान ऑफ़ इंडिया की टीम इसकी ग्राउंड रिपोर्ट जानने के लिए बिहार के दौरे पर निकली।
2 फरवरी की शाम राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली से निकली किसान ऑफ़ इंडिया की टीम 3 फरवरी की सुबह सूर्योदय होने से पहले जब पटना के राजेंद्र नगर रेलवे टर्मिनल पर उतरी तो मौसम का मिजाज़ बेहद सर्द था। कुहासा छाया हुआ था और कंपकंपाने वाली ठंड थी। मुझे अंदाज़ा था कि हाजीपुर पहुंचने के लिए हमें जिस महात्मा गांधी सेतु को पार करना है, वहां कुहासा और घना होगा तो जितनी ज़ल्दी हो, निकलना बेहतर होगा। पटना से बोलेरो में पूरी टीम सवार हुई और हम फौरन निकल ही पड़े, ये तय करते हुए कि सुबह की चाय पुल पार करने के बाद ही पी जाएगी।
संयोग अच्छा था, महात्मा गांधी सेतु पर जाम नहीं मिला, स्लो ट्रैफिक था और कोहरा भी ज़्यादा नहीं था। पुल पार करते ही वहां बनीं कुछ दुकानों में से एक पर हमारी गाड़ी रुकी और हमने कम चीनी और तेज़ पत्ती वाली चाय पिलाने का दुकानदार से आग्रह किया। उसने मस्त चाय पिलाने का दावा किया और पहली चुस्की से ही ये सामने आ गया कि उसके दावे का आधार था चाय पत्ती के साथ मिली कॉफी। खैर..सर्द मौसम में सुबह-सुबह ये भी काफ़ी काम की थी तो हम वहां से फ्रेश होकर हाजीपुर शहर की ओर बढ़ चले, जहां चकवारा के इनोवेटिव किसान संजीव कुमार से हमने मिलने का वक्त मांग रखा था।
फूलगोभी की नई किस्म उगाने वाले हाजीपुर के किसान से मुलाकात
हाजीपुर शहर के भीतर ही है चकवारा गांव, जहां पहुंचते ही जो पहली जानकारी हमें मिली, उसने हमें चकरा दिया। संजीव कुमार ने हमें बताया कि उनके पास खुद की ज़मीन सिर्फ आधा एकड़ है और ज़मीन के इस छोटे से टुकड़े पर उन्होंने जो प्रयोग किए, उसके नतीजों ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दी। गोभी चकवारा के किसानों के लिए पीढ़ियों से उगाई जा रही सब्ज़ी है, लेकिन संजीव कुमार ने ये पाया कि पहले की तुलना में इसका उत्पादन घटता जा रहा था। इसके बाद उन्होंने इसकी नई किस्म उगाने की पहल की, धीरे-धीरे प्रयोग सफल होता दिखा और अंतिम नतीजा निकला संजीव सेलेक्शन वैरायटी के रूप में। इस वैरायटी को लेकर उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। संजीव कुमार जी से बात पूरी करने और रिकॉर्डिंग के बाद हम अगले पड़ाव के लिए निकल पड़े।
मोतिहारी में धनौटी नदी के पुनरोद्धार ने किसानों में लाई मुस्कान
हाजीपुर से मुज़फ्फरपुर के रास्ते मोतिहारी के लिए हमारी टीम जब बढ़ रही थी उस वक्त दोपहर ढ़लने लगी थी, हमने एक लाइन होटल जिसे बाकी जगहों पर ढ़ाबा भी कहा जाता है, गाड़ी रोकी और खाने पर टूट पड़े। आलू-गोभी की सब्ज़ी, दाल, चावल जिसे वहां भात कहते हैं, आलू का भुजिया, अचार, सलाद और दही। कहते हैं कि सफर में हल्का खाना अच्छा होता है, लेकिन जब भूख तेज़ लगी हो तो हल्का भारी का फ़र्क ही नहीं रहता। मोतिहारी पहुंचते-पहुंचते शाम ढ़ल चुकी थी, इसलिए हमने अगले दिन गांवों की ओर निकलने का तय किया और वहीं रात्रि विश्राम तय हुआ। रात में गरज़ के साथ बारिश शुरू हुई और 4 फरवरी की सुबह थमने की बजाय बारिश और तेज़ हो गई, जो दोपहर में ओले गिरने के साथ ही दिन बर्बाद करती दिखी।
किस्मत ने एक बार फिर हमारा साथ दिया और हम गांवों की ओर निकल पड़े। धनौती नदी यहां बहती है, जिसका बहाव काफी कम है, कमाल की बात ये है कि ये नदी विलुप्तप्राय थी, जिसे स्थानीय ज़िला प्रशासन ने अपने प्रयासों से पुनर्जीवित कर दिया है। इसका असर ये है कि नदी के किनारे के खेतों की खेती की तस्वीर बदल रही है। भूजल स्तर ऊपर उठा है, सिंचाई की सुविधा बढ़ी है और हमने देखा कि पूरे बेल्ट में खेतों में हरियाली छाई हुई थी। आलू, करेला, गन्ना, सरसों मुख्य रूप से ये चार फसलें हमने देखी।
साथ ही नदी के आसपास गांव में बने तालाबों में पानी की कमी दूर होने से मछली पालन को भी बढ़ावा मिल रहा है। बारिश और ओले ने हालांकि खेती को नुकसान पहुंचाया है, आलू की फसल बर्बाद भी हुई है, लेकिन किसानों ने बातचीत में हमसे कहा कि वो तो हमेशा से ही आपदाओं का सामना करते रहे हैं तो ये भी झेल जाएंगे।
लीची के गढ़ मुज़फ्फरपुर में लीची उत्पादक परेशान!
मोतिहारी से वापस लौटते वक्त मुज़फ्फरपुर में हमने लीची का हाल जानना चाहा। इन दिनों लीची के मंजर आ रहे हैं और मुज़फ्फरपुर न सिर्फ बिहार बल्कि देश का प्रमुख लीची उत्पादक ज़िला है। यहां रोहुआ पंचायत के मुखिया और लीची उत्पादक अभय कुमार से हमने बात की। उन्होंने शाही और चाइना दोनों किस्मों के बारे में बताया।
अभय कुमार ने बताया कि लीची अनुसंधान केंद्र होने के बावजूद लीची उत्पादकों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके साथ ही बागवानी फसलों का बीमा न होने से जोखिम बना रहता है। हमारे सहयोगी अर्पित दुबे ने तब तक उसी गांव के गेहूं उत्पादक किसानों से बात की और उनकी मुश्किलों, उनकी खेती के तौर-तरीकों के बारे में जाना। शाम ढ़लने लगी थी और अब हमें पटना निकलना था तो हमारी टीम अगले पड़ाव की ओर रवाना हुई।
जहानाबाद के लाट पशु हाट में पहुंची किसान ऑफ इंडिया की टीम
ये पशु मेला न तो हमारे दौरे के कार्यक्रम में शामिल था और न ही हमें इसकी जानकारी थी, लेकिन जहानाबाद से गुज़रते समय जैसे ही हमने देखा कि मवेशियों के झुंड के साथ बड़ी संख्या में लोग खड़े हैं तो हमने वहीं गाड़ी रोक दी। 1997 से यहां पर हर मंगलवार को मवेशी मेला लगता आ रहा है, जो कोरोना की वजह से दो साल से बंद था, जिस दिन हम पहुंचे, उसी दिन फिर से मेला लगा था।
इस वीडियो लिंक पर देखें लाट का पशु मेला
बिहार की मशरुम लेडी अनीता देवी से किसान ऑफ इंडिया की ख़ास मुलाकात
नालंदा के अनंतपुर गांव में माधोपुर सहकारी कृषि संस्था है, जहां के बारे में हमारे सहयोगी अर्पित दुबे ने पूरी जानकारी जुटा रखी थी। हमारी टीम जब यहां पहुंची तो अनीता देवी से मिलकर लगा कि जितना लोग उनके बारे में जानते हैं, उससे कहीं ज़्यादा हैं उनकी उपलब्धियां। बिहार जैसे राज्य की महिला किसान आज से दशक-डेढ़ दशक पहले के दौर में देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर मशरूम से जुड़े प्रशिक्षण में शामिल होकर उसे ज़मीन पर उतारे तो अपने आप में ये बड़ी उपलब्धि है।
किसान ऑफ इंडिया पर बिहार से जुड़ी खेती-किसानी की ये सभी ग्राउंड रिपोर्ट के वीडियो आप जल्दी ही देख सकेंगे।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।