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ग्वार की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है। लेकिन इसका सबसे ज़्यादा उत्पादन राजस्थान में होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा ग्वार उत्पादक देश है। ग्वार की उन्नत खेती शुष्क और अर्धशुष्क इलाकों में अच्छी होती है। ये गर्म मौसम की फसल है, जिसे आमतौर पर बाजरे के साथ मिलाकर बोया जाता है।
इसकी फलियों को हरी सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, कुछ जगहों पर इसका इस्तेमाल चारे के रूप में किया जाता हैं। साथ ही ग्वार से गोंद भी निकाला जाता है यानी इसकी व्यवसायिक मांग भी है। ग्वार का बाज़ार में अच्छा दाम मिलता है, जिससे किसानों को अच्छी कमाई होती है।
ग्वार के फ़ायदे
– पशुओं को ग्वार खिलाने से वो ताकतवर बनते हैं।
– दूधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ती है।
– ग्वार से गोंद भी बनाई जाती है। ‘ग्वार गम’ का इस्तेमाल कई उत्पादों में किया जाता है।
– इसकी फलियों से स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। इससे दाल और सूप भी बनाया जाता है, गांव की ये पसंदीदा फसल है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
ग्वार की खेती वैसे तो किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में इसकी खेती करें। खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 7.5 से 8.5 होना चाहिए। लवणीय और हल्की क्षारीय मिट्टी में भी ग्वार की उन्नत खेती की जा सकती है। ग्वार की उन्नत खेती के लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई करें। खेत की गहरी जुताई करके उसमे पानी लगा दें।
पानी सूख जाने के बाद दो से तीन तिरछी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा करें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल करें और पंक्तियों में बीज लगाएं। बुवाई के समय खेत में नमी होनी चाहिए, ताकि बीजों का अंकुरण ठीक तरह से हो सके। बीजों की बुवाई फरवरी से मार्च के बीच और जून से जुलाई के बीच की जाती है।
ज़रूरी है बीजोपचार
अगर आप ग्वार की उन्नत खेती इसके दाने और हरी फलियों के लिए करना चाहते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 15-18 किलो बीज की ज़रूरत होगी। अगर हरी खाद के लिए फसल उगारहे हैं तो प्रति हेक्टेयर 30-35 किलो बीज की आवश्यकता होगी, जबकि हरे चारे के लिए फसल उगाना चाहते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 35 से 40 किलो बीज की बुवाई करें। बुवाई से पहले बीजों को कैप्टान या बाविस्टिन से उपचारित कर लें। इससे पौधों में फफूंद जैसे रोग नहीं लगेंगे।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
ग्वार की फसल में ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती है। खरीफ के मौसम में लगाई गी फसल सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती है, लेकिन बारिश यदि समय पर नहीं होती, तो ज़्यादा से ज़्यादा 3 सिंचाई ही करनी होती है। गर्मियों के मौसम में 6-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। ग्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण की ज़्यादा ज़रूरत होती है। इसलिए समय-समय पर निराई–गुड़ाई ज़रूरी है, ताकि पौधों की जड़ों का विकास ठीक तरह से हो सके। रासायनिक तरीके से खरपतवार रोकने के लिए प्रति हेक्टेयर एक किलो बेसालिन का छिड़काव करें।
फसल की कटाई
अगर आप हरी सब्जी के रूप में फसल लेना चाहते हैं, तो आपको 55 से 70 दिनों में मुलायम फलियों तुड़ाई करनी चाहिए। इन फलियों को 5 दिन के अंतराल में तोड़ते रहना चाहिए। अगर आप चारे के रूप में फसल लेना चाहते है, तो 60 से 80 दिनों में पौधों पर फूल आने के दौरान कटाई करें। अगर दानों के लिए फसल प्राप्त करनी हो तो फसल के पक जाने पर ही तुड़ाई करें।
पैदावार और कीमत
ग्वार की उन्नत किस्मों से प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है। जबकि 70 से 120 क्विंटल तक हरी फलिया और 12 से 18 क्विंटल दाना मिलता है। किस्म के अनुसार ग्वार की कीमत से 5000-6000 हज़ार रूपए प्रति क्विंटल तक मिल जाती है।
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