रबी ऋतु की फसलों की बुवाई चल रही है। किसान जौ, गेहूं, चना, मटर, सरसों, मसूर जैसी कई रबी फसलों की बुवाई कर रहे हैं। अगर हम रबी फसलों की बात करें तो हमारे देश में रबी फसल के रूप में सबसे ज़्यादा गेहूं की बुवाई की जाती है। किसान गेहूं की इन उन्नत किस्मों (Wheat Varieties) की बुवाई करके अच्छा उत्पादन ले सकते हैं।
ज़्यादा उत्पादन देने वाली गेहूं की किस्में (High Yielding Wheat Varieties)
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अलग-अलग संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय, अपने क्षेत्रों और जलवायु के अनुसार फसलों की नई-नई किस्में तैयार करते हैं। इसी तरह, नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और करनाल का भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने गेहूं की कुछ किस्में विकसित की हैं, जो अपने उच्च उत्पादन के कारण देशभर में लोकप्रिय हो रही हैं।
करण वैदेही (DBW 3709)
किसान इस किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में सिंचाई उपलब्ध होने पर इसकी अगेती बुवाई कर सकते हैं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के किसान इसकी बुवाई कर सकते हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 86.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, और किसानों और अनुसंधान खेतों में इसकी औसत उपज 74.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है।
HD3385
इस किस्म को आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विकसित किया है। किसान इसकी बुवाई 5 से 10 नवंबर के आसपास कर सकते हैं। लेट बुवाई भी 5 दिसंबर के आसपास की जा सकती है, लेकिन अगर बुवाई 15 दिसंबर के करीब की जाती है तो पैदावार कम हो सकती है। ये किस्म पुरानी गेहूं की उन्नत किस्मों HD2967 और DBW187 की तुलना में बेहतर उत्पादन दे रही है।
ये गेहूं की किस्म तीनों रस्ट रोगों- ब्लैक रस्ट, ब्राउन रस्ट और येलो रस्ट के प्रति प्रतिरोधी है। इसका मतलब है कि इन किस्मों को लगाने पर फसल में इन रोगों का असर नहीं होगा और अगर ये रोग फैलते भी हैं तो फसल को कम से कम नुकसान होगा। ये किस्म उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के किसानों के लिए उपयुक्त बताई गई है।
करण वृंदा(DBW371)
इस किस्म को हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के निचले क्षेत्रों के किसान भी बुवाई कर सकते हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 87.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि औसत उपज 75.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है।
करण वरुणा(DBW372)
ये किस्म उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा के साथ अगेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीज़न को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ ज़िले और हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों के किसान इसकी बुवाई कर सकते हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 84.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि औसत उपज 75.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है।
HD3386
उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के किसान इस किस्म की बुवाई कर सकते हैं। ये किस्म येलो रस्ट और ब्राउन रस्ट रोगों के साथ-साथ पत्ती झुलसा, चूर्णी फफूंदी, करनाल बंट और फ्लैग स्मट के प्रति मध्यम रूप से प्रतिरोधी है। इसका औसत उत्पादन 62.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज किया गया है।
HD3390
दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों, जैसे पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान इस किस्म की बुवाई कर सकते हैं, जहां इसका अच्छा उत्पादन होता है। ये किस्म तीनों रस्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधी है और इसमें लगभग 12 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। इसका उत्पादन लगभग 62.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज किया गया है।
किसान गेहूं की अन्य उन्नत किस्में (Wheat Varieties) HD3271, HD3298, HD3406, HD3226, HD3369, HD3059, करण शिवानी, करण वैश्नवी, करण वंदना जैसी किस्मों का चुनाव कर सकते हैं और अच्छा उत्पादन ले सकते हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े?
भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल की माने तो दुनिया भर में 220.7 मिलियन हेक्टेयर में उगाए जाने वाले अनाज में सबसे आगे गेहूं है, जिसका उत्पादन लगभग 785 मीट्रिक टन है। अगर हम बात भारत की करें तो लगभग 31.23 मिलियन हेक्टेयर में गेहूं की खेती होती है, जिसका कुल उत्पादन लगभग 112.92 मीट्रिक टन और उत्पादकता 36.15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
लक्षण, उत्पादन और उपयुक्त क्षेत्रों के आधार पर
गेहूं की किस्मों की तालिका
गेहूं की किस्म | विकसित संस्थान | उपयुक्त क्षेत्र | उत्पादन क्षमता | औसत उपज | प्रमुख विशेषताएं |
करण वैदेही (DBW 3709) | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) | उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर) | 86.9 क्विंटल/हेक्टेयर | 74.9 क्विंटल/हेक्टेयर | जल्दी बुवाई के लिए उपयुक्त, उच्च उपज, सिंचाई वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त। |
HD3385 | ICAR – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) | उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश (UP, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश) | 73.4 क्विंटल/हेक्टेयर | 59.7 क्विंटल/हेक्टेयर | तीनों रस्ट रोगों (ब्लैक रस्ट, ब्राउन रस्ट, येलो रस्ट) के प्रति प्रतिरोधी, पुरानी किस्मों से अधिक उत्पादन। |
करण वृंदा (DBW 371) | – | हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड | 87.1 क्विंटल/हेक्टेयर | 75.9 क्विंटल/हेक्टेयर | उच्च उत्पादन, कई राज्यों में उपयुक्त, प्रमुख रोगों के प्रति प्रतिरोधी। |
करण वरुणा (DBW 372) | – | उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड) | 84.9 क्विंटल/हेक्टेयर | 75.3 क्विंटल/हेक्टेयर | जल्दी बुवाई के लिए उपयुक्त, कई रोगों के प्रति प्रतिरोधी। |
HD3386 | ICAR – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) | उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र) | 75-77 क्विंटल/हेक्टेयर | 62.5 क्विंटल/हेक्टेयर | येलो रस्ट और ब्राउन रस्ट के प्रति प्रतिरोधी, अन्य रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोध। |
HD3390 | ICAR – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) | दिल्ली, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश (दिल्ली, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश) | 73-76 क्विंटल/हेक्टेयर | 62.4 क्विंटल/हेक्टेयर | तीनों रस्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधी, 12% प्रोटीन सामग्री। |
अन्य किस्में | – | विभिन्न क्षेत्र (देशभर में, विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए उपयुक्त) | – | – | किस्में: HD3271, HD3298, HD3406, HD3226, HD3369, HD3059, करण शिवानी, करण वैश्नवी, करण वंदना। |
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