हींग (Asafoetida) एक बहुवर्षीय पेड़ है जो डेढ़ से ढाई मीटर ऊँचा होता है। इसके कोमल तने में अनेक डालियाँ होती हैं। इसके क़रीब पाँच साल पुराने पेड़ के तने और जड़ में चीरा लगाकर राल या गोंद (resin) के रूप में प्राप्त होने वाले द्रव को हींग कहते है। यही शुद्ध या कच्ची हींग भी कहलाती है, जो सूखकर ख़ासी सख़्त हो जाती है। इसीलिए इसे पीसने के बाद डिब्बा-बन्द करके बाज़ार में बेचा जाता है। हींग एक महँगा मसाला है, जो न सिर्फ़ व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाता है, बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर है और सेहत के लिए बेहद गुणकारी है।
ये भी पढ़ें: सर्दियों वाले गुलदाउदी के दिलकश फूलों को गर्मियों में उगाने की तकनीक विकसित
दुनिया में पैदा होने वाली हींग की आधी ख़पत भारत में
भारतीय मसालों में हींग का अहम स्थान है। लेकिन देश में हींग पैदा नहीं होती। इसे अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ब्लूचिस्तान जैसे देशों से आयात करते हैं। हींग का पौधा ईरान के रेगिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के पहाड़ों का मूल निवासी है। वहाँ इसकी बाक़ायदा खेती होती है। मध्यकाल में इन्हीं देशों के आक्रान्ताओं के ज़रिये हींग भारत में आयी और कालान्तर में अपने औषधीय गुणों की वजह से हींग ने भारतीय व्यंजनों और मसालों में अपना शानदार मुक़ाम बना लिया। यही वजह है कि दुनिया में पैदा होने वाली कुल हींग की 50 फ़ीसदी ख़पत भारत में होती है। देश की कुल खपत में से 90 फ़ीसदी हींग का आयात अफ़ग़ानिस्तान से होता है।
भारत में हींग की खेती नहीं हो सकी क्योंकि इसके पौधों को बेहद ठंडी और पर्याप्त धूप वाली शुष्क जलवायु पसन्द है। इसके अलावा हींग के ज़्यादातर बीजों में ऐसी क़ुदरती निष्क्रियता होती है जिसकी वजह से उसका सौ में से कोई एक-दो बीज ही अंकुरित होता है। आबादी बढ़ने के साथ देश में हींग का आयात भी बढ़ता गया। साल 2019 में भारत ने करीब 600 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च करके 1,200 टन हींग का आयात किया। आयातित हींग का दाम भले ही 5,000 रुपये प्रति किलोग्राम बैठता हो, लेकिन बाज़ार में शुद्ध हींग का दाम इसका कई गुणा होता है। बेहद महँगा होने की वजह से हींग में मिलावट भी ख़ूब होती है।
ये भी पढ़ें: खेती-बाड़ी में कमाई बढ़ाने के लिए अपनाएँ केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट), जानिए उत्पादन तकनीक और विधि
मोदी सरकार ने उठाया देश में हींग का खेती का बीड़ा
हींग की भारी ख़पत और विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ने वाले बोझ को देखते हुए साल 2017 में नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश में ही हींग की खेती की सम्भावनाएँ विकसित करने की ज़िम्मेदारी भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) को दी। हींग की खेती को लेकर कृषि वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि देश में कहीं भी हींग का बीज मौजूद नहीं था। हींग उत्पादक देश भी इसके बीजों की तस्करी की रोकथाम के प्रति ख़ासे मुस्तैद रहे हैं। हींग के बीज का देश में कभी आयात नहीं हुआ। लेकिन साल 2018 में ईरान से हींग के बीज आयात हुए और इन्हें राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो यानी National Bureau of Plant Genetic Resources (NBPGR) देखरेख में रखा गया, जिसकी मुख्य भूमिका पादप जगत के आनुवंशिक विकास के लिए ज़रूरी खोज, सर्वेक्षण और संग्रहण करना है।
लाहौल घाटी है हींग की खेती के लिए उपयुक्त
2018 में केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने हींग की खेती की तकनीक विकसित करने का ज़िम्मेदारी भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद यानी Council of Scientific and Industrial Research से जुड़े हिमालयी जैवसम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान यानी Institute of Himalayan Bioresource Technology (CSIR-IHBT), पालमपुर को सौंपी जिसे हींग की गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की उपलब्धता, इसकी खेती के लिए उपयुक्त स्थान तथा जलवायु वग़ैरह की पहचान करनी थी। इसके वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश के ‘ठंडे रेगिस्तान’ यानी लाहौल-स्पीति ज़िले की जलवायु और बंजर भूमि को हींग की खेती के लिए उपयुक्त पाया।
CSIR-IHBT के वैज्ञानिकों ने 2018 में ही हींग के बीजों में मौजूद निष्क्रियता को ख़त्म करके नर्सरी में इसका अंकुरण करवाने में कामयाबी हासिल की। इन्हीं वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश के सेंटर फॉर हाई एल्टीट्यूड बायोलॉजी (CeHAB), रिबलिंग, लाहौल-स्पीति के सहयोग से हींग की खेती की पूरी प्रक्रिया का मानकीकरण भी किया। इस तरह अक्टूबर-2020 तक लाहौल घाटी के सात किसानों को प्रायोगिक तौर पर पौधे उपलब्ध करवाकर देश में हींग की खेती की शुरुआत की गयी। लेकिन स्वदेशी हींग की पहल उपज मिलने में अभी और वक़्त लगेगा। बहरहाल, वैज्ञानिकों की कोशिश से उत्साहित होकर हिमाचल प्रदेश सरकार के कृषि विभाग ने जून-2020 में CSIR-IHBT से एक समझौता किया।
भारत में अक्टूबर-2020 में शुरू हुई हींग की खेती
समझौते के तहत वैज्ञानिकों ने अक्टूबर-2020 में लाहौल घाटी के क्वारिंग गाँव में हींग की खेती के लिए किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करके वहाँ हींग के बीजों अंकुरित करने वाले विशेष प्रदर्शन स्थल विकसित किये। फिर यही प्रक्रिया लाहौल घाटी के ही मडग्रान, बीलिंग और केलांग गाँव में भी दोहरायी गयी। इस तरह लाहौल घाटी में किसानों को CSIR-IHBT के उन वैज्ञानिकों से भरपूर सहयोग और प्रशिक्षण मिला जिन्होंने देश में पहली बार ‘हींग’ की पैदावार के लिए कृषि तकनीक विकसित कीं। इससे उत्साहित होकर हिमाचल प्रदेश सरकार के कृषि विभाग ने आगामी पाँच वर्षों में लाहौल-स्पीती के 302 हेक्टेयर ज़मीन को हींग की खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।
अगर हमारे किसान साथी खेती-किसानी से जुड़ी कोई भी खबर या अपने अनुभव हमारे साथ शेयर करना चाहते हैं तो इस नंबर 9599273766 या [email protected] ईमेल आईडी पर हमें रिकॉर्ड करके या लिखकर भेज सकते हैं। हम आपकी आवाज़ बन आपकी बात किसान ऑफ़ इंडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे क्योंकि हमारा मानना है कि देश का किसान उन्नत तो देश उन्नत।