कृषि उपज मंडियों में रबी की फसलों की सरकारी खरीद चालू हो चुकी है। मंडी के तीन स्तम्भ हैं – किसान, व्यापारी और मंडी प्रशासन। मंडी का मुख्य मकसद किसानों को उनकी उपज का ऐसा पारदर्शी बाज़ार देने है जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी हो। वैसे तो मंडियों से वास्ता रखने वाले इसकी कार्यप्रणाली जानते हैं, लेकिन बाक़ी लोगों के लिए भी मंडी की प्रक्रिया कोई कम दिलचस्प नहीं है।
- · क्या भोपाल की कृषि उपज मंडी की प्रक्रिया?
- · मंडी में कैसे मिलता है किसान को दाम?
- · क्या हैं सफ़ेद, हरी और लाल पर्चियाँ?
- · मंडी ने कितनी रकम नकद मिलती है?
ऐसे रोचक सवालों के जबाब के लिए किसान ऑफ़ इंडिया ने भोपाल की कृषि उपज मंडी समिति के कामकाज़ का जायज़ा लिया। इसके कामकाज़ को मंडी की तीन रंगों की पर्ची के ज़रिये आसानी से समझा जा सकता है।
सफ़ेद पर्ची
पहली पर्ची के काग़ज़ का रंग सफ़ेद होता है। इसे मंडी प्रशासन की ओर से मंडी के प्रवेश द्वार यानी इंट्री गेट पर उस वक़्त काटा जाता है, जब एक किसान अपनी तैयार फसल के साथ वहाँ पहुँचता है। सफ़ेद पर्ची काटने का काम सुबह 6 बजे शुरू होता है। इस पर्ची में किसान का नाम, पता, उसके आगमन की वजह अथवा उसकी उपज का नाम और उसका अनुमानित वजन वग़ैरह लिखा जाता है। इस पर्ची को कटवाते वक़्त किसान को 5 रुपये का शुल्क भरना पड़ता है। सफ़ेद पर्ची के ज़रिये ही ये रिकॉर्ड रखा जाता है कि मंडी में कितने किसान आये? भोपाल मंडी में रोज़ाना औसतन 200 किसानों की आवक होती है।
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हरी और लाल पर्ची
सफ़ेद पर्ची लेने के बाद किसान अपनी उपज के साथ मंडी के अन्दर निर्धारित ‘नीलामी प्लेटफॉर्म’ पर पहुँचते हैं। यहाँ सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक किसान की उपज की नीलामी होती है। मंडी के व्यापारी या आढ़तिये उपज को परखते हैं और उसकी गुणवत्ता के हिसाब से बोलियाँ लगाते हैं। नीलामी का संचालन मंडी समिति के कर्मचारियों की देखरेख में होता है। नीलामी की रकम फसल के लिए निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम नहीं हो सकती। नीलामी के वक़्त सरकारी खरीद एजेंसी, जैसी भारतीय खाद्य निगम (FCI) वग़ैरह के अधिकारी भी मौजूद रहते हैं। जिस उपज को खरीदने में व्यापारी उत्साह नहीं दिखाते, उसकी खरीदारी भी इन अधिकारियों को सुनिश्चित करनी होती है।
नीलामी के बाद मंडी प्रशासन की ओर से किसान को एक ‘हरी पर्ची’ तथा सम्बन्धित व्यापारी को लाल पर्ची दी जाती है। इन दोनों पर्चियों में किसान का नाम, उसकी फसल का नाम, उपज का अनुमानित वजन और नीलामी में जीतने वाले व्यापारी का नाम-पता लिखा जाता है। ‘हरी पर्ची’ पाकर किसान को अपनी उपज को तौलवाने के लिए धर्मकाँटा पर जाना पड़ता है। यहाँ उपज का वाहन समेत वजन होता है।
धर्मकाँटा की पर्चियाँ
धर्मकाँटा की पर्ची लेकर किसान को व्यापारी के ठिकाने पर पहुँचकर उपज उसके हवाले करनी होती है। फिर उसे खाली वाहन के साथ वापस धर्मकाँटा पर पहुँचना होता है। अबकी बार यहाँ से मिली पर्ची को लेकर किसान वापस व्यापारी के पास जाता है और भरे हुए तथा खाली वाहन के वजन की पर्चियों के अन्तर से उसकी उपज का मात्रा तय होती है। धर्मकाँटा की तौलाई के लिए किसान को 3 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खर्च करना पड़ता है।
वैसे उपज की कम मात्रा की तौलाई व्यापारियों के ठिकानों पर भी हो जाती है। मंडी में उपज को तौलवाने के लिए पल्लेदारों को 3 रुपये क्विंटल के हिसाब से किसानों से 5 रुपये क्विंटल के हिसाब से मंडी समिति से भुगतान मिलता है। फिर कुल मूल्य का हिसाब लगाकर व्यापारी की ओर से किसान को भुगतान कर दिया जाता है। भोपाल कृषि उपज मंडी में किसानों को दो लाख रुपये तक का भुगतान नगद में मिल सकता है। इससे ज़्यादा रकम को सीधे किसान बैंक खाते में भी डाला जा सकता है या फिर उसे चेक भी दिया जा सकता है। बहरहाल, उपज की रकम पाकर किसान मंडी से विदा हो जाते हैं।
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आढ़तियों की भूमिका
भोपाल कृषि उपज मंडी में दलाल नहीं हैं। यहाँ आढ़तिये ही सीधे किसान से उपज खरीदते हैं। खरीद के बाद उपज की सार-सम्भाल करने, उसे सरकारी या निजी गोदामों तक पहुँचाने और फिर थोक व्यापारियों को बेचने का काम आढ़तिये करते हैं। भारतीय खाद्य निगम (FCI) के लिए खरीदारी करने वाले आढ़तियों को सरकार से खरीद मूल्य के ऊपर पैकिंग और परिवहन वग़ैरह के बदले पूर्व निर्धारित दर से कमीशन मिलता है। किस व्यापारी ने, किस किसान से, किस रेट में उपज ख़रीदी, इसका ब्यौरा भी मंडी समिति ही रखती है। गेहूँ-धान, दलहन-तिलहन आदि को यदि किसान बोरियों में भरकर नहीं लाते तो उन्हें प्रति बोरी 3 रुपये भरने पड़ते हैं।
कृषि उपज मंडी की प्रक्रिया हर जगह एक जैसी नहीं भी हो सकती है। कई मंडियों का संचालन पूरी तरह से प्रदेश सरकार करती है। खरीद-बिक्री के लिए वक़्त भी तय होता है। मंडी समिति को सुनिश्चित करना होता है कि किसानों को सही तौल मिले। उनका किसी भी तरह से शोषण नहीं हो। किसानों को कोई बरगला नहीं सकें, इसके लिए मंडी समिति को उपज की गुणवत्ता और उसे मिले दाम पर नज़र रखनी चाहिए।
किसान की शिकायत
मंडी की पूरी प्रक्रिया को लेकर यदि किसान की कोई शिकायत या दिक़्क़त होती है तो उसे फ़ौरन मंडी निरीक्षक से सम्पर्क करना चाहिए क्योंकि इनकी ज़िम्मेदारी है कि किसानों की शिकायतों का सन्तोषजनक समाधान करें। मंडी का संचालन राज्य सरकार का कृषि विभाग इसके निर्वाचित अध्यक्ष के ज़रिये करती है।
मंडी में किसानों की सबसे ज़्यादा शिकायतें घटतौली यानी कम तौलने को लेकर होती हैं। किसानों के लिए यही अनाज चोरी है। इसने बचने के लिए किसानों को खूब चौकन्ना रहना चाहिए। अधिक सावधानी के लिए किसानों को मंडी पहुँचने से पहले भी अपनी उपज की मोटा-मोटी तौल ज़रूर करवा लेनी चाहिए, ताकि यदि मंडी में उसके साथ कोई धोखाधड़ी हो तो उसे फ़ौरन इसकी भनक लग जाए।
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भोपाल कृषि मंडी की सुविधाएँ
भोपाल की कृषि उपज मंडी में मुफ़्त पेयजल और शौचालय वग़ैरह की सुविधा भी है। यहाँ एक कैंटीन भी है, जिसमें पाँच रुपये वाली सफ़ेद पर्ची को दिखाने पर दो किसानों को वो थाली मुफ़्त मिलती है, जिसका अन्य लोगों के लिए दाम 15 रुपये हैं। किसी भी वजह से नीलामी हो जाने के बाद मंडी पहुँचने वाले किसानों को अगले दिन तक वहीं अपना नम्बर लगाकर इन्तज़ार करना पड़ता है। मंडी में रात गुज़ारने के लिए कोई रैन बसेरा नहीं है। रविवार और सरकारी अवकाश के दिन मंडी बन्द रहती है।