भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) का काम खेती-बाड़ी के बारे में लोगों को शिक्षित करना और इससे जुड़ी रिसर्च करना है, ताकि किसान अच्छी किस्म की ज़्यादा पैदावार कर सकें और उनकी आमदनी बढ़े। ICAR खेती के साथ ही बागवानी, पशुपालन के क्षेत्र में भी नई तरीकों के बारे में बताती है ताकि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की आजीविका में सुधार हो सके। खेती में सुधार की दिशा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के किए काम की फेहरिस्त बहुत लंबी है। आइए, जानते हैं 2019-21 में उनकी कुछ उपलब्धियां।
खाद्य व पोषण सुरक्षा
सभी नागरिकों को खाद्य व पोषण सुरक्षा देने के सरकार के उद्देशय को पूरा करने की दिशा में ICAR अहम भूमिका निभा रहा है। अनाज के अधिक उत्पादन के लिए यह नई तकनीक इजाद करने के साथ ही हमेशा फसल की नई-नई किस्म विकसित करता रहता है जिससे किसानों को अधिक पैदावार करने में मदद मिलती है। 2019-21 में इसने अधिक पैदावार देने वाली फसलों की 562 किस्में विकसित की हैं।
पोषण व अधिक आय के लिए बागवानी
89 बागवानी फसलों को विकसित किया और विभिन्न कृषि जलवायु में खेती के लिए उनकी पहचान की गई। देश में बागवानी क्रांति में मदद के लिए 2019-21 के दौरान 67.44 टन ब्रीडर/ सब्जियों और मसालों के बीज, 4975.58 टन कंद फसल; 2019-21 के दौरान 30.82 लाख रूट कटिंग, 30.83 लाख गुणवत्ता रोपण सामग्री बारहमासी फसलों की और 2941 क्विंटल मशरूम स्पॉन का उत्पादन किया गया।
आनुवंशिक संसाधनों के लिए कृषि जीनोमिक्स और जीन डिस्कवरी
16 विभिन्न वस्तुओं के जीनोमिक संसाधन विकसित किए, जिनमें दो फसलों के पूरे जीनोम सिक्वेंस, दो मछलियों, एक कीट प्रजाति, दस रोगाणुओं और एक रोगजनक प्रजाति शामिल है। इसके अलावा एलील माइनिंग और जीन आधारित एसोसिएशन विश्लेषण तकनीक द्वारा छह फसलों में विशिष्ट कृषि संबंधी लक्षणों के लिए जिम्मेदार आठ जीनों की पहचान की गई थी।
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नई विशेषताओं के साथ फसलों का अनुवांशिक संसोधन
अरहर को विनाशकारी फली छेदक कीट से बचाने के लिए या इससे प्रतिरोध प्रदान करने के लिए अरहर की दो अलग-अलग बीटी जींस (Bt genes) विकसित की गई। इसी तरह कीट व बीमारियों से प्रतिरोध प्रदान करने वाली कुछ अन्य फसलों की भी किस्में विकसित की गई।
पशुपालन क्षेत्र में अधिक उत्पादकता के लिए अनुवांशिक सुधार, प्रजनन और स्वास्थ्य प्रबंधन
अधिक प्रजनन वाली मुर्गियों की 4 किस्मों की पहचान की गई। पशु-पक्षियों की 13 नई नस्लों को पंजिकृत किया गया। भारत में पहली बार कुत्तों की 3 नस्लों को रजिस्टर्ड किया गया। ये रखवाली, शिकार और चरवाहे के लिए उपयुक्त हैं।
मछली पालन- ब्लू क्रांति और मानव स्वास्थ्य के लिए तकनीकी प्रगति
ICAR के तहत आने वाले फिशर रिसर्च इंस्टीट्यूट ने 7 खाने वाली मछली और 12 सजावटी फिश के प्रजनन और बीज उत्पादन से जुड़ी तकनीक विकसित की। इससे मछली पालन में विविधीकरण के साथ ही किसानों को आमदनी बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और जलवायु के अनुकूल कृषि
2019-21 के दौरान 9 बहु-उद्यम एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मॉडल विकसित किया गया। इस मॉडल से छोटे व सीमांत किसानों की आदमनी प्रति हेक्टेयर 1.5-3.6 लाख बढ़ गई। 24 महत्वकांक्षी जिलों के लिए भूमि संसाधन सूची बनाई गई। 24 राज्यों के लिए सूखा प्रतिरोधक योजनाएं बनाई गई।
खेत और कटाई के बाद के काम का मशीनीकरण
2019-21 के दौरान कृषि मशीनों के 302 प्रोटोटाइप विकसित किए गएं, जिससे किसान कम मेहनत में अधिक दक्षता से काम कर सकते हैं। उत्तर भारत में फसल के अवशेषों को जलाने से बचाने के लिए और अवशेषों के निपटान के लिए मशीनीकरण समाधान प्रदान किया गया।
किसानों की पहुंच और लैब से ज़मीन तक
खेती में ICT तकनीक तक पहुंच और उपयोग तेज़ी से बढ़ रहा है। केवीके(Krishi Vigyan Kendra) ने 2019-21 के दौरान किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए मोबाइल पर ही 75.07 करोड़ कृषि-सलाह किसानों को दीं।
कृषि के क्षेत्र में उच्च शिक्षा को मज़बूती देना
कृषि से जुड़े शिक्षा के मानकों को ऊंचा उठाने के लिए ICAR ने कृषि विश्विद्यालों के रैंकिंग फ्रेमवर्क और उच्च कृषि शिक्षा संस्थानों को मान्यता देने के लिए दिशा-निर्देश जारी किया। 22 नए एक्पेरिमेंटल लर्निंग मॉड्यूल्स का डिज़ाइन भी तैयार किया गया। एसएयू में अब तक 485 प्रायोगिक शिक्षण इकाइयां कार्यरत हैं, जो छात्रों को कुछ कृषि उत्पादों के बड़े पैमाने पर उत्पादन और व्यवसाय के विकास के बारे में मदद कर रही हैं।
अधिक मात्रा में और गुणवत्ता पूर्ण फसल की पैदावार सुनिश्चित करके किसानों के जीवनस्तर में सुधार लाने की दिशा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद लगातार काम कर रहा है।
स्टोरी साभार: ICAR
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