केंद्र और राज्य सरकारें देश के किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के साथ काम कर रही हैं। इस लक्ष्य को पूरा करने में प्राकृतिक खेती एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। हवा और पानी के साथ-साथ अब मिट्टी भी प्रदूषित होने लगी है। इस लिहाज से प्राकृतिक रूप से खेती के तरीके को हमेशा से बेहतर माना गया है। सरकार की तरफ से भी प्राकृतिक खेती यानी नैचुरल फार्मिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्राकृतिक खेती प्रणाली को शून्य बजट खेती (Zero Budget Farming) भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस खेती में रसायनिक उर्वरक और खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इनकी जगह प्राकृतिक रूप से तैयार खादों को उपयोग में लाया जाता है। ऐसे में खेती पर होने वाला खर्च कम हो जाता है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय मंच से केमिकल युक्त खेती छोड़, प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील भी की थी। इसी अपील पर संज्ञान लेते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ICAR ने एक अहम कदम उठाया है।
अब छात्रों को सीखाएं जाएंगे प्राकृतिक खेती के गुर
ICAR ने ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के पाठ्यक्रम में प्राकृतिक खेती को शामिल करने का फैसला किया है। यानी अब कॉलेज में छात्रों को प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के बारे में पढ़ाया जाएगा। ICAR परिषद में इस मामले पर चर्चा की गई और सबकी हामी के बाद ये निर्णय लिया गया।
ICAR का शिक्षा विभाग कृषि विश्वविद्यालयों और प्राकृतिक कृषि विशेषज्ञों के परामर्श से प्राकृतिक खेती का पाठ्यक्रम तैयार करेगा। ICAR के सहायक महानिदेशक एसपी किमोथी ने आईसीएआर संस्थान के निदेशकों और कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को एक पत्र लिखकर ये जानकारी दी।
किसानों को किया जाएगा जागरूक
साथ ही प्राकृतिक खेती पर संस्थान की तरफ से अलग से शोध भी चलता रहेगा। प्राकृतिक खेती पर रिसर्च और ट्रेनिंग संबंधित आईसीएआर संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा की जाएगी। प्राकृतिक खेती प्रणाली से खेती करने के तरीकों पर किसानों को जागरूक किया जाएगा।
पत्र में प्रधानमंत्री मोदी के उस भाषण का भी ज़िक्र किया गया, जिसमें उन्होंने नैचुरल फार्मिंग अपनाने पर ज़ोर दिया था। बीते 16 दिसंबर को पीएम मोदी ने देश के लघु और सीमान्त यानी छोटे किसानों से ज़्यादा से ज़्यादा तेज़ी से प्राकृतिक खेती का रुख़ करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि ‘नैचुरल फार्मिंग’ से 80 प्रतिशत ऐसे छोटे किसानों को फ़ायदा होगा जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा था कि खेती-बाड़ी के काम में किसानों का केमिकल फर्टिलाइज़र पर काफ़ी ख़र्च होता है। इसीलिए अगर वो प्राकृतिक खेती या ‘ज़ीरो बजट खेती’ को तेज़ी से अपनाएँगे तो उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। प्रधानमंत्री, गुजरात के आणंद में कृषि और खाद्य प्रसंस्करण पर केन्द्रीय राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र को वीडियो कांफ्रेंसिंग से सम्बोधित कर रहे थे।
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