देश में हरित क्रांति के बाद ज़्यादातर धान, गेहूं और मक्का की फसलों से अधिक उपज देने वाली किस्मों पर काम किया गया। देश के किसानों को इन फसलों से अधिक उपज और अधिक लाभ मिलना शुरू हो गया। इस मिलने वाले लाभ के चलते खेतों में दूसरी फसलों जैसे दलहनी, तिलहनी और पोषक तत्वों से भरपूर मोटे अनाज वाली फसलों का रकबा घटने लगा। इसके चलते फसलों के विविधीकरण (Crops Diversification) में भी कमी आई। अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में पोषक तत्वों की कमी देखी जाने लगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के एक शोध में पाया गया है कि चावल और गेहूं में जिंक और आयरन की कमी होती जा रही है। अगर ये कमी ऐसे ही जारी रही तो लोगों को भोजन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए भोजन के अन्य विकल्प तलाशने पड़ेंगे। Kisan of India ने इससे जुड़े कई पहलुओं पर ICAR-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों से बात की।
कम हो रही है गेहूं-चावल में जिंक और आयरन की मात्रा
एक रिसर्च के अनुसार, 1960 के दशक में हुई एक जांच में प्रति किलो चावल में आयरन की सांद्रता 27.1 मिलीग्राम, लोहे की मात्रा 59.8 मिलीग्राम पाई गई। 2000 में ये मात्रा गिरकर प्रति किलोग्राम चावल में 20.6 मिलीग्राम और लोहे की मात्रा 43.1 मिलीग्राम हो गई।
वही गेहूं की किस्मों में प्रति किलोग्राम जिंक सांद्रता 33.3 मिलीग्राम और लोहे की सांद्रता 57.6 मिलीग्राम थी, 2010 में ये गिरकर प्रति किलोग्राम 23.5 मिलीग्राम (जिंक) और 46.4 मिलीग्राम (लोहा) हो गई। आयरन तत्व शरीर के लिए बहुत ज़रूरी है। ये हीमोग्लोबिन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है।
पोषक तत्वों की कमी से बढ़ रही लोगों की परेशानी
आयरन की कमी से मनुष्य में थकान, सांस लेने में तकलीफ, नाड़ी की गति, सिर दर्द आदि समस्याएं होती हैं। हार्मोन के उचित संचालन के लिए शरीर को आयरन की ज़रूरत होती है। जिंक की कमी से कमजोरी महसूस होना, बार-बार दस्त होना, भूख न लगना, वजन घटना और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। जिंक एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है। ये तनाव को कम करने, हड्डियों को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिंक कई तरह की न्यूरोल़ॉजिकल समस्याओं को कम करने और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद करता है। भोजन से जिंक और आयरन की कमी ही नहीं, बल्कि विटामिन, विटामिन ई, विटामिन ए, और फोलिक एसिड की कमी भी होती जा रही है।
देश में अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन फिर भी कुपोषित हैं लोग
अपना देश खाद्यान्न उत्पादन में 30 करोड़ टन से ज़्यादा खाद्यान्न उत्पादन कर आनाज के मामले आत्मनिर्भऱ होकर बाहर के देशों को निर्यात कर रहा है। पर एक सच्चाई ये भी है कि उपजाई गई इन फसलों से गिरते पोषक तत्वों के चलते आज भी 14 फ़ीसदी आबादी देश में कुपोषित है। देश में हर चार में से एक व्यक्ति विटामिन और अन्य पोषक तत्वों की कमी से पीड़ित है। हम सभी जानते हैं कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक विभिन्न पोषक तत्व फलों, सब्जियों और अनाज के आहार से शरीर में जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 43 मिलियन लोग कुपोषण के कारण अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
बायोफोर्टिफाइड फसलों (Biofortified Crops) से निकलेगा समाधान
अब सवाल उठता है कि लोगों को आवश्यक पोषक तत्व केसे मिले? लोग बाज़ार में आर्टिफिशियल रूप से तैयार पोषक तत्वों का इस्तेमाल करते हैं। मल्टीग्रेन आटा, पाउडर और टेबलेट जैसी चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, इनकी ज़्यादा लागत होने के कारण ये सभी को उपलब्ध होना मुश्किल हैं।
कृषि वैज्ञानिकों ने बायोफोर्टिफाइड फसलों की किस्में (Biofortified Crops Varieties) विकसित की हैं, ताकि लोगों को उनके आहार में सभी पोषक तत्व मिल सकें। बायोफोर्टिफाइड फसलें, सूक्ष्म पोषक तत्व वाली फसल की किस्मों और उच्च उपज देने वाली फसल किस्मों को क्रास कराके उगाई जाती हैं। इसे जैव-संवर्धित यानी Biofortified Varieties कहा जाता है।
ICAR-Indian Agricultural Research Institute पूसा के प्लान्टस जेनेटिक्स डिवीजन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. फ़िरोज़ हसन ने किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत में बताया कि इस तकनीक में आयरन, प्रोटीन, जिंक, विटामिन ए और विटामिन सी जैसे पोषक तत्वों की कमी वाली फसलों में प्लांटब्रीडिग तकनीक से सूक्ष्म पोषक तत्वों को जोड़ा जाता है। इन किस्मों को बायोफोर्टिफाइड किस्में कहते हैं।
Biofortification तकनीक को पोषक तत्वों की कमी को दूर करने में एक नई क्रांति के रूप में देखा जा रहा है। डॉ. फ़िरोज़ का कहना है कि देश में इस समय 16 फसलों की 85 किस्में विकसित की गई हैं। इसमें शकरकंद, अलसी और गाजर की किस्में शामिल हैं। इन किस्मों में 15 सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाए गए हैं। ये किस्में प्रोटीन, जिंक, आयरन और कैल्शियम युक्त हैं।विटामिन ए, विटामिन सी, अमोनिया, लाइसिन और ट्रिप्टोफैन जैसे माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जोड़े गए हैं।
पिछले साल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 फसलों की 17 बायोफोर्टिफाइड किस्मों (Biofortified Crops Varieties) को राष्ट्र को समर्पित किया था। सीआर धान 315 में हाइब्रिडाइजेशन तकनीक से बीटा कैरोटीन जीन डाला गया। ये किस्म जिंक, विटामिन ए, फोलिक एसिड, हाई आयरन से युक्त है। गेहूं की किस्म HI 1633 प्रोटीन, आयरन और जिंक से भरपूर है। क्यूपियम मक्का-हाइब्रिड की किस्में 1, 2 और 3 लाइसिन और ट्रिप्टोफैन से भरपूर हैं। इसमें प्रति 100 ग्राम में 3.3 से 4 ग्राम लाइसिन प्रोटीन होता है, जो सामान्य मक्का से दोगुना है। मधुबन गाजर में उच्च मात्रा में कैरोटीन और आयरन होता है।
मिल्लेटस वाली फसलों में बायोफोर्टिफाइड किस्में विकसित की गई
IARI जेनेटिक्स विभाग के प्रधान वैज्ञानिक एसपी सिंह का कहना है कि बाजरा, रागी, सावा जैसे मोटे अनाज से आयरन, जिंक और कैल्शियम की मात्रा बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि बाजरे की धनशक्ति, एएचबी1200, एएचबी1269, फूले महाशक्ति, आरएचबी 233, 234 और एएचबी 311 किस्में विकसित की गई है। इन किस्मों में आयरन 73 पीपीएम से लेकर 90 पीपीएम पाया जाता है और जिंक 40 पीपीएम से लेकर 50 पीपीएम तक मिलता है। वही ज्वार की परभणी क्रांति किस्म में आयरन 45 पीपीएम और जिंक 32 पीपीएम पाया जाता है। डॉ. सिंह के अनुसार, बायोफोर्टिफाइड रागी किस्में वेगावथी, इन्द्रावती, और सीएमएफी-2, जिनमें आयरन 40 पीपीएम, जिंक 25 पीपीएम और 454 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है और बायोफोर्टिफाइड किस्म कुटकी में आयरन 50 पीपीएम और जिंक 35 पीपीएम पाया जाता है।
बायोफोर्टिफाइड किस्मों को बढावा देने के लिए NARI कार्यक्रम शुरू किया गया
डॉ. सिंह ने बताया कि इसे बढ़ावा देने के लिए, आईसीएआर ने नूट्री-सेंसिटिव एग्रीकल्चरल रिसोर्सेज एंड इनोवेशंस (NARI) कार्यक्रम शुरू किया है, जो पोषण सुरक्षा को बढ़ाने के लिए पोषण-स्मार्ट गांवों और स्थानीय रूप से उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं और विविध सेवाओं को एक-दूसरे से जोड़ती हैं। डॉ. सिंह के अनुसार, बायोफोर्टिफाइड फसल किस्मों का उत्पादन बढ़ाया जाएगा और उन्हें सरकारी कार्यक्रमों जैसे मिडडे मील, आंगनवाड़ी आदि से जोड़ा जाना चाहिए ताकि कुपोषण की समस्या को कम किया जा सके।
डॉ. सिंह के अनुसार, वर्तमान में देश में लगभग एक लाख हेक्टेयर में बायोफोर्टिफाइड किस्मों की खेती की जा रही है। अब सरकार को बायोफोर्टिफाइड फसलों का रकबा बढ़ाने की रणनीति बनानी चाहिए ताकि किसान इन किस्मों की ज़्यादा से ज़्यादा खेती कर सकें। सरकार को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देना चाहिए। किसानों में जागरूकता के लिए खेत दिवस और सेमिनार आयोजित करें और इसके माध्यम से इसके महत्व को फैलाएं। किसानों को सामान्य उपज की तुलना में बायोफोर्टिफाइड फसलों से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहिए, ताकि किसान इसकी खेती में अधिक रुचि दिखा सकें।
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