Bichu Grass: बिच्छू घास से कपड़ा बनाने की तकनीक विकसित, हर मौसम में देगा शरीर को आराम

बिच्छू घास और कपास के मिश्रण से बनाया गया फैब्रिक, धुलाई के बाद सामान्य कॉटन के मुकाबले बहुत कम सिकुड़ता है। इस फैब्रिक में एयर कंडीशनर वाले ऐसे गुण भी हैं जिससे सर्दियों में शरीर को गर्मी का अहसास होता है तो गर्मियों में शीतलता का अनुभव। इस उन्नत फैब्रिक की रंगाई में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। इसका दाम 200 से 250 रुपये प्रति मीटर तक हो सकता है।

बिच्छू घास से कपड़ा बनाने की तकनीक विकसित

बिच्छू घास या बिच्छू बूटी (अर्टिका पर्वीफ्लोरा), एक ऐसी वनस्पति है जो 3,000 फ़ीट से ऊँचे पहाड़ों पर बहुतायत से पनपती है। इसकी ऊँचाई 4-5 फ़ीट तक होती है। इसकी पत्तियों और डालियों पर काँटेदार रोये या काँटे होते हैं। यदि ये काँटे शरीर से छू जाएँ तो ऐसे बिच्छू के डंक मारने जैसा अहसास होता है और त्वचा पर ख़ूब खुजली, जलन और बेचैनी होती है। जानवर भी बिच्छू घास से परहेज़ करते हुए उसे चरते नहीं हैं। इन्हीं गुणों के कारण इसे बिच्छू घास का नाम मिला।

बिच्छू घास के रासायनिक गुणों को देखते हुए अनेक दवाईयों के निर्माण में इसका उपयोग होता है। पहाड़ी इलाकों में इस वनस्पति की साग-सब्ज़ी भी खायी जाती है। लेकिन जंगली खरपतवार की तरह अपने आप उगने वाली बिच्छू घास की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि परम्परागत इस्तेमाल के बावजूद इसमें काफ़ी सम्भावनाएँ हैं। शायद, इसीलिए IIT मंडी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसे स्टार्टअप की तकनीक विकसित की जिसमें बिच्छू घास के तत्वों को कपास के साथ मिलाकर सूती धागों से उच्च गुणवत्ता वाला कपड़ा बनाया गया।

ये भी पढ़ें: Bud chip technology in sugarcane farming: गन्ने की खेती में बडचिप तकनीक से घटेगी लागत, बढ़ेगी उपज और मुनाफ़ा

बिच्छू घास और कपास के मिश्रण से बना कपड़ा

IIT मंडी के निदेशक जीत कुमार चतुर्वेदी के अनुसार, बिच्छू घास और कपास के मिश्रण से बनाया गया फैब्रिक, धुलाई के बाद सामान्य कॉटन के मुकाबले बहुत कम सिकुड़ता है। इस फैब्रिक में एयर कंडीशनर वाले ऐसे गुण भी हैं जिससे सर्दियों में शरीर को गर्मी का अहसास होता है तो गर्मियों में शीतलता का अनुभव। इस उन्नत फैब्रिक की रंगाई में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। इसका दाम 200 से 250 रुपये प्रति मीटर तक हो सकता है।

IIT मंडी में कार्यरत वनस्पति शास्त्र विभाग की सहायक प्रोफ़ेसर डॉ तारा देवी सेन के मुताबिक, बिच्छू घास पर हुए शोध से ऐसे उत्साहजनक नतीज़े मिले हैं कि अब हिमालय में मिलने वाली अन्य पौधों से भी फाइबर-फैब्रिक बनाने की तकनीक विकसित करने की कोशिश की जा रही है। ज़ाहिर है ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धियों से स्थानीय स्तर पर रोज़गार और समृद्धि के नये क्षेत्र विकसित होंगे। फ़िलहाल, एक ओर जहाँ उद्यमी नयी तकनीक से फैब्रिक उत्पादन के लिए कम्पनियाँ लगाने की सम्भावना तलाश रहे हैं वहीं कच्चे माल के रूप में बिच्छू घास को जुटाने और बेचने के लिए स्वयं सहायता समूहों और महिला मंडलों की मदद लेने की योजना भी बनायी जा रही है।

आईआईटी मंडी ने विकसित की बिच्छु घास से कपड़ा बनाने की तकनीक
तस्वीर साभार: Amar Ujala

Bichu Grass: बिच्छू घास से कपड़ा बनाने की तकनीक विकसित, हर मौसम में देगा शरीर को आराम

‘बनलगी हर्बल मंडी’ की हुई शुरुआत

हिमाचल प्रदेश के सोलन ज़िले के बनलगी कस्बे में राज्य की पहली हर्बल मंडी भी शुरू हो चुकी है। इस हर्बल मंडी में बिच्छू घास की भी खरीद-बिक्री होने लगी है। यहाँ किसानों को बिच्छू घास का दाम 15 से 40 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से मिल रहा है। हर्बल मंडी बनलगी के प्रभारी राजेश के अनुसार, बिच्छू घास के अलावा अभी करी पत्ता 8 से 20 रुपये और गिलोया 8 रुपये प्रति किलो का भाव पा रहा है। फ़िलहाल, मंडी में आसपास से ही पैदावार आ रही है। लेकिन उम्मीद है धीरे-धीरे कारोबार गति पकड़ेगा और आँवला, हरड़, बहेड़ा जैसे औषधीय उत्पादों की खरीद-बिक्री भी होने लगेगी। मंडी के कारोबारी हर्बल उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों से सीधे सम्पर्क साध रहे हैं।

बिच्छू घास के औषधीय गुण

बिच्छू घास को लोग भले ही छूने से डरते हैं। इसे अक्‍सर फ़ालतू पौधा भी समझा जाता है। लेकिन इस सदाबहार जंगली घास में अनेक औषधीय गुण भी पाये गये हैं। इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट में विटामिन ए, बी, सी, डी, आयरन, कैल्शियम, सोडियम और मैगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है। इसके पत्‍ते, जड़ और तना सभी उपयोगी हैं। इसका पौधा सीधा बढ़ता है। पत्तियाँ दिल के आकार होती हैं। इसके फूल पीले या गुलाबी होते हैं। पूरा पौधा छोटे-छोटे रोये से ढका हुआ होता है।

बिच्छू घास को बुखार, शारीरिक कमजोरी, पित्त दोष निवारक, गठिया, मोच, जकड़न और मलेरिया जैसे बीमारी के इलाज़ में उपयोगी पाया गया है। इसके बीजों का इस्तेमाल पेट साफ़ रखने वाली दवाओं में भी होता है। पर्वतीय इलाकों में इससे साग-सब्जी भी बनायी जाती है। इसकी तासीर गर्म होती है। इसका स्वाद पालक की तरह स्वादिष्ट होता है। सेहत के लिए फ़ायदेमन्द होने की वजह से बिच्छू घास से बनने वाले व्यंजन को लोग ‘हर्बल डिश’ भी कहते हैं। ये विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन और कार्बोहाइट्रेड से भरपूर तथा कोलेस्ट्रोल रहित हैं।

बिच्छू घास की चाय

उत्तराखंड में अल्मोड़ा के निकट चितई के पन्त गाँव में एक कम्पनी बिच्छू घास से चाय का उत्पादन भी करती है। फ़िलहाल, इस कम्पनी का सालाना चाय उत्पादन कुछेक क्विंटल में ही है। इस चाय के 50 ग्राम के पैकेट का दाम 125 रुपये के आसपास है। इस चाय का स्वाद खीरे के फ्लेवर की तरह है।

ये भी पढ़ें: दूध उत्पादक ज़्यादा कमाई के लिए ज़रूर करें नेपियर घास की खेती, जानिये कैसे होगा फ़ायदा?

अगर हमारे किसान साथी खेती-किसानी से जुड़ी कोई भी खबर या अपने अनुभव हमारे साथ शेयर करना चाहते हैं तो इस नंबर 9599273766 या [email protected] ईमेल आईडी पर हमें रिकॉर्ड करके या लिखकर भेज सकते हैं। हम आपकी आवाज़ बन आपकी बात किसान ऑफ़ इंडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे क्योंकि हमारा मानना है कि देश का किसान उन्नत तो देश उन्नत। 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top