केन्द्र सरकार ने महज 17 दिनों में ही दालों के स्टॉक सीमा पर लगायी उस रोक को वापस ले लिया, जिसकी मियाद 31 अक्टूबर तक थी। माना जा रहा है कि सरकार के इस फ़ैसले से दलहन के किसानों को फ़ायदा होगा। हालाँकि, स्टॉक लिमिट हटने की वजह से आम उपभोक्ताओं के लिए दालों के दाम बढ़ने का ख़तरा पैदा हो गया है। वैसे नये सरकारी आदेश के बावजूद दाल मिल मालिकों, दालों के थोक विक्रेताओं और दालों के आयातकों को केन्द्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग की निर्धारित वेबसाइट पर अपने स्टॉक की जानकारियाँ पहले की तरह ही देनी पड़ेगी।
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2 जुलाई बनाम 19 जुलाई
पिछले साल की इसी अवधि के मुक़ाबले जब दालों के दाम तेज़ी से बढ़ते हुए 22-23 प्रतिशत बढ़ गये तो केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 2 जुलाई को दालों पर स्टॉक लिमिट लगाने का आदेश जारी कर दिया। इस असर ये हुआ कि दालों के दाम में उछाल का सिलसिला न सिर्फ़ थम गया बल्कि दालों की कीमतों में कुछ नरमी भी दिखायी दी। इसी नरमी को देखते हुए सरकार ने महज 17 दिनों बाद यानी 19 जुलाई को स्टॉक होल्डिंग लिमिट के फ़रमान को वापस ले लिया।
आवश्यक वस्तु क़ानून का इस्तेमाल
इस सिलसिले में दिलचस्प बाद ये भी है कि 2 जुलाई के आदेश के लिए सरकार ने स्टॉक लिमिट लागू करने के लिए उस पुराने ‘आवश्यक वस्तु क़ानून’ का इस्तेमाल किया जिसे 17 मई 2017 को निलम्बित कर दिया गया था और जिसकी जगह ‘आवश्यक वस्तु क़ानून, 2020’ को बनाकर 27 सितम्बर 2020 से लागू कर दिया गया। हालाँकि, किसान आन्दोलन को देखते हुए इस नये क़ानून को सुप्रीम कोर्ट ने अपने 12 जनवरी 2021 के आदेश के ज़रिये निलम्बित कर रखा है। इसीलिए सरकार ने पुराने क़ानून का सहारा लेकर स्टॉक लिमिट के लिए क़दम उठाये।
दरअसल, पुराने आवश्यक वस्तु क़ानून के तहत ‘स्टॉक होल्डिंग सीमा’ लागू करने का आदेश जारी करने का अधिकार सरकार के विवेकाधीन था। यानी, सरकार को जब भी ये लगे कि बाज़ार में ‘असाधारण मूल्य वृद्धि’ की वजह से किसी आवश्यक वस्तु का दाम बहुत बढ़ रहा है, तो वो जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी पर नकेल कसने के लिए ‘स्टॉक होल्डिंग सीमा’ लागू करने का आदेश जारी कर सकती है। जबकि नये ‘आवश्यक वस्तु क़ानून, 2020’ के प्रावधानों के अनुसार जब तक दालों का खुदरा बाज़ार भाव से साल भर पहले की तुलना में 50 प्रतिशत से ज़्यादा ऊपर नहीं चला जाता, तब तक सरकार ‘असाधारण मूल्य वृद्धि’ के नाम पर व्यापारियों पर स्टॉक सीमा नहीं थोप सकती है।
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दालों की स्टॉक लिमिट
दालों के थोक विक्रेता के लिए अब 200 टन की जगह कुल 500 टन तक स्टॉक रखने की अनुमति है। अब वो किसी एक किस्म जैसे अरहर, उड़द, मसूर वग़ैरह का स्टॉक 200 टन से ज़्यादा नहीं रख सकेंगे। 2 जुलाई के आदेश में इस लिमिट को 100 टन रखा गया था। दाल मिल मालिकों के लिए स्टॉक की लिमिट उनके बीते 6 महीनों के कुल उत्पादन या सालाना उत्पादन क्षमता के 50% में से जो ज़्यादा हो, उतनी ही होगी। जबकि स्टॉक लिमिट लागू करने के वक़्त ये सीमा उत्पादन क्षमता की 25% तक थी। इसी तरह, दालों के आयातकों को अब स्टॉक लिमिट से पूरी छूट मिल गयी है। जबकि 2 जुलाई के आदेश में इसे 200 टन रखा गया था।
क्या महँगी होंगी दालें?
दालों की स्टॉक लिमिट के ख़त्म होने के बारे में कमोडिटी बाज़ार के जानकारों को लगता है कि ये क़दम किसानों के लिए फ़ायदेमन्द साबित हो सकता है। इसकी वजह से आने वाले दिनों में दालों की खुदरा कीमतों में 5 से लेकर 10% की तेज़ी देखी जा सकती है। यानी, आम आदमी पर महँगाई की मार बढ़ेगी, क्योंकि कोरोना काल में दालें पहले ही काफ़ी महँगी हो चुकी हैं। ज़्यादातर दालों का भाव 100 रुपये प्रति किलोग्राम से ऊपर जा चुका है।
15 जुलाई की सफ़ाई
दालों के स्टॉक के सिलसिले में एक और दिलचस्प घटना का ज़िक्र ज़रूरी है। 15 जुलाई को भारत सरकार की ओर से कहा गया कि सोशल नेटवर्किंग एप WhatsApp के ज़रिये ये अफ़वाह फैलायी जा रही है कि 2 जुलाई से लागू दालों पर स्टॉक की सीमा को हटा लिया गया है। इसकी भनक लगते ही केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने साफ़ किया है कि दालों पर लागू स्टॉक सीमा न सिर्फ़ बाक़ायदा क़ायम है, बल्कि राज्यों सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वो इसे पूरी सख़्ती और मुस्तैदी से लागू करें।
केन्द्र सरकार की ओर से उन राज्यों को सतर्क भी किया गया है जहाँ दालों के स्टॉकिस्ट और आयातकों की ओर से घोषित स्टॉक और बैंकों से लिये गये कर्ज़ में दर्शायी गयी मात्रा में अन्तर है। उपभोक्ता मामलों के विभाग की ओर से विकसित विशेष पोर्टल के ज़रिये दालों के स्टॉक के ब्यौरे पर नियमित रूप से नज़र रखी जाती है। यहाँ दर्शायी जाने वाली जानकारी यदि बेमेल होती है तो राज्यों को फ़ौरन कार्रवाई के लिए हिदायत भी दी जाती है। बहरहाल, स्टॉकिस्ट और आयातकों के लिए अब भी अपने स्टॉक का ब्यौरा सरकारी पोर्टल https://fcainfoweb.nic.in/ पर अपलोड करना ज़रूरी बना हुआ है।