हरियाणा सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने ‘स्ट्रा बेलर’ (Straw Baler) मशीन के ज़रिये पराली की गाँठ या बेल बनाने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि देने का फ़ैसला किया है। ये प्रोत्साहन 1,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से दिया जाएगा। इस योजना का लाभ उठाने के लिए किसानों को अपनी पराली को निर्धारित सूक्ष्म, लघु, या मध्यम दर्ज़े के ऐसी औद्योगिक इकाईयों को बेचना होगा जो इनसे अन्य तरह के उत्पाद बनाने में कच्चे माल की तरह इस्तेमाल करते हैं।
हरियाणा की कृषि सचिव डॉ सुमिता मिश्रा ने बताया कि पराली की चुनौती से निपटने के लिए सरकार ने अभी धान की रोपाई शुरू होने के वक़्त ही किसानों को सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूक करने का अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत किसानों को बताया जा रहा है कि यदि धान की कटाई के बाद किसान वैज्ञानिक तरीके से पराली से निपटने के लिए आगे आएँगे तो उन्हें पराली की कीमत के अलावा सरकार की ओर से 1,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी।
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स्ट्रा बेलर पर सब्सिडी
पराली की चुनौती को देखते हुए नवम्बर 2019 में हरियाणा सरकार ने करीब 5 लाख रुपये की कीमत में मिलने वाले स्ट्रा बेलर की खरीद पर 50 फ़ीसदी सब्सिडी देने का योजना का एलान किया था। सब्सिडी योजना के एलान के बाद सघन कृषि ज़िला जींद में 12 किसान ही इस मशीन को खरीदने के लिए आगे आये और सब्सिडी की प्रक्रिया पूरी होते-होते एक महीना निकल गया। इसी वक़्त धान की फसल कटकर खेतों में पड़ी थी। इसका नतीज़ा ये निकला कि किसान सब्सिडी पर भी स्ट्रा बेलर मशीन खरीदने से पीछे हट गये। क्योंकि इस मशीन का इस्तेमाल तो धान के सीज़न में ही होता है। बाक़ी वक़्त तो ये फ़ालतू पड़ी रहती है।
अनुभव से सीख
बीते अनुभवों से सीख लेकर इस बार कृषि विभाग अभी से ही सक्रिय हो गया है। हमारा पूरा फसल का सीज़न शुरू होने से पहले या सीज़न शुरू होते ही सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में मुस्तैदी दिखाने पर है। क्योंकि यदि धान की रोपाई के वक़्त से ही किसानों को पराली से निपटने के फ़ायदेमन्द उपायों के बारे में पता होगा तो वो ज़्यादा सक्रियता दिखाएँगे और उसी हिसाब से अपनी तैयारी भी करेंगे।
हरियाणा में बड़े काश्तकारों की संख्या काफ़ी है। इसे देखते हुए डॉ मिश्रा को उम्मीद है कि किसान पराली जलाने से बाज आने और पराली से भी कमाई करने की प्रोत्साहन योजनाओं को हाथों-हाथ लेंगे। वैसे पराली की चुनौती से निपटने के लिए दिल्ली स्थित पूसा कृषि अनुसन्धान संस्थान से ऐसा कैप्सूल भी विकसित किया है, जिससे बेहद कम लागत में धान की पराली को खेत की उर्वरता बढ़ाने वाले खाद में बदला जा सकता है।
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क्या है पूसा का डीकम्पोजर कैप्सूल?
पराली जलाने की समस्या से छुटकारा दिलाने में डीकम्पोजर कैप्सूल लाजबाब हैं। इसके एक पाउच में 4 कैप्सूल आते हैं। इसकी कीमत 20 रुपये रखी गयी है। एक पाउच से 25 लीटर का घोल तैयार करके इसका 1 हैक्टेयर (2.5 एकड़) छिड़काव कर सकते हैं। लाल और हरे रंग के ये डीकम्पोजर कैप्सूल बहुत तेज़ी से पराली को गला देते हैं। इससे पराली खाद बनकर खेत की ताक़त बढ़ाती है। डीकम्पोजर कैप्सूल से धान की पराली को सड़ने यानी डीकम्पोज होने में बहुत कम समय लगता है। इसके इस्तेमाल से मिट्टी की गुणवत्ता पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता और वो पहले की तरह उपजाऊ बनी रहेगी।
कितनी भयंकर है पराली की समस्या?
पराली की समस्या जाड़े के मौसम में उत्तर-भारतीय राज्यों, ख़ासकर दिल्ली में वायु प्रदूषण की बेहद ख़तरनाक दशा को पैदा कर देती है। जिस मौसम में किसान पराली से छुटकारा पाने के लिए उसे खेतों में जलाते हैं, उस वक़्त हवा का बहाव न्यूनतम होता है। इसीलिए पराली का धुँए को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी बार-बार दिल्ली, हरियाणा और पंजाब सरकार से ठोस और टिकाऊ कदम उठाने को कहा है। दिल्ली सरकार का अनुमान है कि पिछले साल पंजाब में करीब 90 लाख टन और हरियाणा में करीब 70 लाख टन पराली जलायी गयी।