भारत में मछली पालन से जुड़ी ‘केज कल्चर’ (Cage culture) को बढ़ावा देने के लिए 50 प्रतिशत तक अनुदान मिलता है। इस तकनीक के तहत तालाबों में छोटे-छोटे पिंजरे बनाकर उसमें मछलियों का पाला जाता है। इसमें खुले तालाबों की तुलना में मछलियाँ ख़ासी तेज़ी से बड़ी होती हैं।
केज कल्चर में रखी जाने वाली मछलियाँ का वजन जहाँ 120 दिनों में 400 ग्राम तक हो जाता है। वहीं इसी अवधि में खुले तालाबों की मछलियों का वजन 200 से 300 ग्राम तक ही हो पाता है। ज़्यादा वजन वाली मछलियों के उत्पादन से इसके किसानों की आमदनी बढ़ जाती है।
अनुदान नीति
मछली पालन की उन्नत तकनीक को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र और राज्यों की सरकारें पिंजरा बनाने के लिए अनुदान देती हैं। अगर आप केज कल्चर को अपनाने के लिए सरकारी अनुदान का लाभ लेना चाहते हैं तो इसके लिए इस्तेमाल होने वाले तालाब का मालिक लाभार्थी को ही होना चाहिए।
केज कल्चर से मछली पालन के लिए जलाशय में 6×4×4 घन फ़ीट के चार पिंजरा बनाना पड़ता है। हरेक पिंजरे से 4 से 5 टन पंगेशियस मछली का उत्पादन होना आवश्यक है। केज कल्चर वाले पोखरों में गर्मी के दिनों में जल स्तर कम से कम 20 फिट होना चाहिए। आम तौर पर पिंजरा निर्माण की लागत लगभग 3 लाख रुपये बैठती है। मछली पालकों को इसमें 50 प्रतिशत अनुदान सरकार देती है।
प्रशिक्षण
केज कल्चर से मछली पालन के इच्छुक किसानों को अनुदान देते समय 5 दिन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसमें उन्हें तकनीक के हरेक पहलू की जानकारी दी जाती है।