आज भारतीय सेना दिवस है। इस दिन उन सभी बहादुर जवानों को सलामी दी जाती है, जिन्होंने देश की सलामती के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। ऐसे में अगर हम पश्चिमी आंध्र प्रदेश में स्थित छोटे से गांव माधवरम (Madhavaram) का जिक्र नहीं करेंगे तो यह वहां की शानदार सैन्य परंपरा का अपमान होगा। देश का सबसे देशभक्त यह गांव (Most Patriotic Village) गोदावरी जिले की गोद में बसा है। इस गांव के सैनिक स्वतंत्र भारत के हर युद्ध का हिस्सा रहे हैं। आज भी यहां के 250 सैनिक सीमाओं पर देश की रक्षा कर रहे हैं।
माधवरम के लगभग हर घर से कम से कम एक सदस्य भारतीय सेना में नौकरी कर रहा है। कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिनके चार सदस्य भारतीय सेना में शामिल रह चुके हैं।
यहां के निवासियों का सैन्य प्रेम तो ऐसा है कि लोग अपने बच्चों के नाम मेजर, कर्नल और कैप्टन समेत सैन्य पदों के नाम पर रखना पसंद करते हैं। स्थानीय युवतियां भी एक सैनिक से शादी करने में गर्व महसूस करती हैं। गांव में सेना से सेवानिवृत्त जवान खुद को अपने नाम के बजाय सेना में अपने पद के नाम के बुलाया जाना पसंद करते हैं।
गांव के अधिकांश घरों में लोगों ने बड़े ही गर्व के साथ अपने संबंधियों द्वारा युद्ध में जीते गए पदको को सहेज कर रखा है। माधवरम के लोगों ने यहां के सैनिकों के बलिदान और सेवा की स्मृति में अमर जवान ज्योति की तर्ज पर एक शहीद स्मारक का निर्माण कराया है।
ब्रिटिशों ने भी लोहा माना
औपनिवेशिक शासन के दौरान इस गांव के 90 सैनिकों ने ब्रिटिश साम्राज्य की तरफ से युद्ध लड़ा था। द्वितीय विश्वयुद्ध में तो यह आंकड़ा 1110 तक पहुंच गया था। यहां के सूबेदार वेमपल्ली वेंकटाचलम को रायबहादुर, पालकी सूबेदार, घोड़ा सूबेदार जैसी उपाधियों से नवाजा गया। यहां तक कि उन्हें विक्टोरिया क्रॉस मेडल सम्मान भी मिल चुका है।
वेंकटाचलम के बेटे मार्कंडेयुलु ने 1962 में सिंध-भारत युद्ध, 1965 में भारत-पाक युद्ध और 1971 में बांग्लादेश मुक्तिसंग्राम का हिस्सा बनकर पुरस्कृत हो चुके हैं। उनके पोते सुब्बाराव नायडू भारतीय सेना से हवलदार के पद पर सेनानिवृत्त हो चुके हैं और उनके प्रपौत्र मानस का भी चयन सेना में हो चुका है।
गांव की बेटियां भी पीछे नहीं
जब से भारतीय वायुसेना और थलसेना के द्वार महिलाओं के लिए खोले गए हैं, तब से गांव की युवतियों के सपनों को तो जैसे पंख लग गए हो। उन्होंने सेना में भर्ती के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया है। वे अपने पूर्वजों और परिजनों से प्रेरित होकर देश सेवा करना चाहती हैं।