कर्नाटक के चिक्कनायकनहल्ली गाँव की रहने वाली निंगम्मा एक किसान परिवार से आती हैं। पति की मृत्यु के बाद परिवार की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। उन्होंने खेती को ही अपनी कर्मभूमि चुनने का फैसला किया। उन्होंने खेती के एकीकृत कृषि मॉडल (Integrated Farming System) को अपनाया हुआ है। आज वो अपने किसान साथियों के लिए एक सफल और आदर्श किसान बन चुकी हैं।
बदलते वक़्त के साथ खेती-किसानी का तौर-तरीका भी आधुनिक हो रहा है। आमदानी बढ़ाने के लिए पारम्परिक खेती के हटकर किसान अब नयी तकनीक के प्रति भी ख़ूब रुझान दिखा रहे हैं। ऐसी ही एक तकनीक है ‘इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग’, जो किसानों के लिए मुनाफ़े की तरकीब बनकर उभर रही है।
आठ एकड़ क्षेत्र में कई फसलों की खेती
उनके पास कुल आठ एकड़ की ज़मीन है। चार एकड़ में उन्होंने सुपारी के करीबन 2500 पेड़ लगाए हुए हैं। कॉफी के 3500 पेड़ भी लगाए हुए हैं। दो एकड़ में नारियल के करीब 600 पेड़ और बाकी बचे दो एकड़ में रागी, मक्का, ज्वार और दलहन जैसी कई फसलों की खेती करती हैं। उन्होंने पूरी तरह से जैविक खेती अपनाई हुई है। गोबर और गौमूत्र का उपयोग बतौर खाद वो करती हैं। निंगम्मा खेती से जुड़े कार्यक्रमों और प्रशिक्षणों में भाग लेती हैं। कृषि वैज्ञानिकों के परामर्श पर खेती की उन्नत तकनीकें अपनाती हैं।
गौपालन के साथ साथ जल सरंक्षण पर भी किया काम
20 हॉल्स्टीन फ़्रिसियन नस्ल की गायें भी उनके पास हैं। इससे उन्हें रोज़ाना का 200 लीटर दूध का उत्पादन होता है। उन्होंने अपने आठ एकड़ के फ़ार्म में एग्रो-फॉरेस्ट मॉडल भी अपना रखा है। इन सब कार्यों से उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हुई है। सूखे की स्थिति से बचाव के लिए उन्होंने मनरेगा योजना (MGNREGA Scheme) के तहत एक फ़ार्म पॉन्ड का निर्माण भी करवाया है।
सालाना पांच लाख से ऊपर की कमाई
कॉफी का सालाना 125 क्विंटल का उत्पादन होता है। इससे करीब तीन लाख रुपये की आमदनी होती है। सुपारी के चार क्विंटल उत्पादन से करीब 64 हज़ार रुपये की आय होती है। काली मिर्च की 8 क्विंटल उपज से करीबन एक लाख 26 हज़ार रुपये की कमाई है। इलायची की आधे क्विंटल उपज से 38 हज़ार रुपये की कमाई होती है।
निंगम्मा को उनकी उपलब्धियों के लिए कई अवॉर्डस से भी सम्मानित किया जा चुका है। निंगम्मा मानती हैं कि बुनियादी सुख-सुविधाओं से समझौता किए बिना खेती से गाँव में खुशहाल जीवन व्यतीत किया जा सकता है। निंगम्मा अपने क्षेत्र के किसानों को खेती के उन्नत तरीकों के बारे में जागरूक भी करती हैं ताकि खेती से सभी अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमा सकें।
क्या है एकीकृत कृषि मॉडल?
एकीकृत कृषि प्रणाली में खेती के अलावा पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, बाग़वानी और खेती से जुड़ी अनेक गतिविधियाँ एक साथ की जाती हैं। इसका मुख्य उद्देश्य किसान की ज़मीन और अन्य संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल करना है, ताकि मुनाफ़ा भी अच्छा मिल सके।
कृषि जनगणना 2015-16 के मुताबिक, भारत में लघु और सीमान्त किसानों की संख्या क़रीब 12.563 करोड़ है। इनके पास औसतन 1.1 हेक्टेयर से कम की खेती है। इन किसानों को अपने कृषि उत्पादों को लेकर अनेक ऐसी चुनौतियाँ झेलनी पड़ती हैं, जिससे उबरने में एकीकृत खेती प्रणाली बेजोड़ साबित होती है।
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