किसान आन्दोलन (Farmers Protest): कृषि क़ानूनों की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनायी गयी विशेषज्ञ समिति ने अपनी सीलबन्द रिपोर्ट अदालत को सौंप दी है। पता चला है कि समिति ने तीनों विवादित क़ानून की तो पैरवी की है, लेकिन इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कुछ ज़रूरी सुझाव भी दिये हैं।
गेंद अब एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट के पाले में जा पहुँची है, जिसने अभी सुनवाई का वक़्त तय नहीं किया है। बहरहाल, अब एक बार फिर से सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी होंगी क्योंकि तीनों कृषि क़ानूनों को पूरी तरह से वापस लेने की माँग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आन्दोलन चार महीने से जारी है।
तीनों कृषि क़ानूनों को लेकर जब किसानों और सरकार के बीच हुई बातचीत के अनेक दौर के बावजूद समाधान नहीं निकला तो 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने क़ानूनों के अमल पर अस्थायी रोक लगाकर एक विशेषज्ञ समिति गठित बना दी। कोर्ट ने समिति से कहा था कि वो सभी पक्षों की राय जानकर अपनी समीक्षात्मक रिपोर्ट देकर अदालत की मदद करे।
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रिपोर्ट के बारे में कयास है कि इसमें तीनों कृषि क़ानूनों को सही बताया गया है, लेकिन किसानों समेत हरेक तबके के हितों का ख़्याल रखते हुए कुछ संशोधन भी सुझाये गये हैं। इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर भी पुख़्ता राय का होना लाज़िमी है। साथ ही तरह-तरह की आशंकाओं का जबाब भी होगा।
जैसे समिति की राय हो सकती है कि बिचौलियों के बग़ैर कोई भी व्यापार या मार्केटिंग गतिविधि नहीं हो सकती। लिहाज़ा, व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि बिचौलिये शोषण का ज़रिया नहीं बनें। संकेत ऐसे भी हैं कि समिति ने लाइसेंस राज खत्म करके किसानों को संरक्षण देने की व्यवस्था बनाने का सुझाव भी दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को कृषि अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी और अशोक गुलाटी, शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवत और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भुपिन्दर सिंह मान वाली कमेटी बनायी थी। लेकिन मान ने अगले दिन ही ख़ुद को कमेटी से अलग कर लिया। तब बाक़ी तीन सदस्यों ने काम को आगे बढ़ाया।