खेती-किसानी में बागवानी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें किसान सीमित ज़मीन से भी अधिक लाभ कमा सकते हैं। बागवानी से ज़्यादा मुनाफ़ा मिले इसके लिए किसानों को संघन बागवानी यानी कि हाई डेंसिटी बागवानी को अपनाना चाहिए। बागवानी की हाई डेंसिटी तकनीक क्या है? कैसे ये काम करती है? किसानों को कैसे ये फ़ायदा पहुंचा सकती है? ऐसे ही कई सवालों के जवाब किसान ऑफ़ इंडिया ने जानें उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र बहराइच के प्रमुख और सब्जी और बागवानी विशेषज्ञ डॉ. बी.पी. शाही से।
क्या है बागवानी की हाई डेंसिटी तकनीक?
बागवानी में हाई डेंसिटी सिस्टम एक ऐसी तकनीक है, जिसमें प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक फलदार पौधों का रोपण कर उससे लगातार कई सालों तक क्वालिटी वाले फलों की उपज ली जा सकती है।
कृषि विशेषज्ञ डॉ बी.पी. शाही ने बताया कि हाई डेंसिटी बागवानी में बौनी किस्में लगाई जाती हैं ताकि प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक से अधिक पौधे लगाए जा सकें। इससे सामान्य बागवानी की तुलना में उतने ही क्षेत्र से आम-अमरूद की बागवानी कर तीन से चार गुना तक ज़्यादा उत्पादन ले सकते हैं।
हाई डेंसिटी तकनीक के लिए किन किस्मों का चुन्नाव करें?
डॉ. शाही ने बताया कि हाई डेंसिटी बागवानी में किस्मों का चुनाव सबसे ज़रूरी पहलू होता है। हाई डेंसिटी तकनीक में बौनी किस्मों का ही चुनाव किया जाता है। आम की हाई डेंसिटी बागवानी के लिए अरूणिका, आम्रपाली जैसी क़िस्में सबसे अच्छी मानी जाती हैं। वहीं अमरूद की हाई डेंसिटी बागवानी के लिए ललित, इलाहाबाद सफेदा, लखनऊ-49 जैसी क़िस्मों का चयन कर सकते हैं।
आम-अमरूद की हाई डेंसिटी बागवानी
बागवानी विशेषज्ञ के अनुसार आम की साधारण बागवानी में पौधे से पौधे की दूरी 10 मीटर के करीब रखी जाती है, जिसमें प्रति हेक्टेयर तकरीबन 100 पौधे लगते हैं। वहीं आम्रपाली आम की हाई डेंसिटी बागवानी करते समय पौधे से पौधे की बीच की दूरी ढ़ाई से 3 मीटर रखते हैं। इस तरह एक हेक्टेयर में करीबन 1,333 पौधे लग सकते हैं। आम्रपाली के अलावा, अन्य किस्म के पौधे 5 बाय 5 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं। इस तरीके से एक हेक्टेयर में लगभग 400 पौधे लगते हैं।
वही उन्होंने बताया कि अगर किसान अमरूद की हाई डेंसिटी बागवानी करना चाहते हैं तो अमरूद के पौधों को 3 बाय 3 मीटर की दूरी पर लगाएं। इस तरह से पौधों का रोपण करने पर एक हेक्टेयर में तकरीबन 1111 पौधे लगेंगे।
आम-अमरूद के हाइ डेंसिटी बागों का प्रबंधन
डॉ. बी.पी. शाही ने बताया कि अमरूद की पौध रोपाई के कुछ समय बाद 70 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काट दें। उसके बाद दो-तीन महीने में पौध से चार-छह मजबूत डालियां विकसित होती हैं। अमरूद के पौधे में निकलने वाले नए कल्लों में फल लगते हैं। इसलिए पौध में नए कल्लों का विकास करना ज़रूरी होता है। इसके लिए अमरूद के पौधों की साल में तीन बार कटाई-छंटाई की जाती है।
पहली कटाई बाग लगाने के चार-पांच महीने बाद अक्टूबर में की जाती है। इसमें तीन-चार टहनियों को चुनकर उसे 50 फीसदी तक काट दिया जाता है। टहनियों के कटे भाग पर बोर्डो पेस्ट जरूर लगाना चाहिए। दूसरी कटाई फरवरी में और तीसरी कटाई मई-जून में करनी चाहिए। दो वर्षों तक कटाई-छंटाई कर पौधों की संरचना का विकास किया जाता है। इसके बाद तीसरे वर्ष से पौधे फल देना शुरू कर देते हैं।
आगे डॉ. शाही ने बताया कि आम की हाई डेंसिटी बागवानी में पौधे की ज़मीन से 60-70 सेंटीमीटर ऊंचाई से कटिंग अक्टूबर-दिसम्बर के महीने में कर देनी चाहिए। कटिंग के बाद मार्च-अप्रैल में तने निकलते हैं। मई के महीने में चार तनों को चारों दिशाओं में रखकर बाक़ी सभी को काटकर हटा दें। फिर इन चार तनों की अक्टूबर-नवंबर में दोबारा से कटाई-छंटाई की जाती है। इस तरह कटाई-छंटाई करके पेड़ के चारों तरफ 3-4 शाखाओं को लगातार बढ़ने देते हैं।
कटाई और छटाई ज़रूरी
बामवानी विशेषज्ञ डॉ शाही ने बताया कि हर साल हाई डेंसिटी बागवानी के लिए पौधे का आकार छोटा रखने की ज़रूरत होती है। इसके लिए समय-समय पर कटाई और छंटाई करते रहना ज़रूरी है ताकि पौधे में नई शाखाएं न उगें और वह ज़्यादा से ज़्यादा फल दे सकें। इस विधि में 2 क्यारियों के बीच की खाली ज़मीन पर सूरन और पत्ता गोभी लगाकर किसान अतिरिक्त लाभ भी कमा सकते हैं।
मिलने लगती है दोगुनी उपज
अमरूद एक ऐसा पौधा है, जिससे साल में तीन बार बरसात, सर्दी और बसंत में फलों का उत्पादन लिया जा सकता है। इसमें बरसात वाले फल की क्वालिटी कम होती है। अमरूद की परंपरागत बागवानी में भी हाई डेंसिटी की तरह ही 3 साल में फल लगने लगते हैं। हालांकि, हाई डेंसिटी में तीसरे साल से ही परंपरागत बागवानी की तुलना में दोगुनी उपज मिलने लगती है।
परंपरागत तरीके से अमरूद की बागवानी करने पर प्रति हेक्टेयर जहां 15 से 20 टन उपज मिलती है। वहीं सघन बागवानी यानी High Density Planting System में अमरूद का उत्पादन 30-50 टन प्रति हेक्टेयर तक हो जाता है। वहीं आम की सामान्य बागवानी में प्रति हेक्टेयर 7 से 8 टन तक उत्पादन मिलता है तो हाई डेंसिटी बागवानी में ये उत्पादन बढ़कर 15 से 18 टन तक हो जाता है।
मई-जून में करें बागवानी के लिए गड्ढे की खुदाई-भराई का काम
डॉ. बी.पी. शाही कहते हैं कि अगर किसान समय के साथ नई तकनीक और बेहतर विधियों को अपनाकर आम-अमरूद की हाई डेंसिटी प्लांटिंग करेंगे, तो प्रति ईकाई क्षेत्रफल से अधिक उपज मिल जाती है। सही स्थान का चुनाव कर निश्चित दूरी पर गढ्ढे की खुदाई और भराई का काम 15 जून के पहले पूरा कर लेना चाहिए। इसके बाद अच्छी नर्सरी या उद्यान विभाग से आम-अमरूद की सही किस्मों का चयन कर जुलाई और अगस्त माह में पौधे रोपण का कार्य पूरा कर लेना चाहिए।
हाई डेंसिटी अमरूद की बागवानी से मिल रही बंपर उपज
सहारनपुर ज़िले के गांव चौरा खुर्द के रहने वाले महक सिंह अपनी 2 हेक्टेयर ज़मीन पर हाई डेंसिटी तकनीक से अमरूद की बागवानी कर रहे हैं। उन्होंने अमरूद की किस्में ललित और लखनऊ -49 लगाई हुई हैं। वो कहते हैं कि हाई डेसिंटी अमरूद की बागवानी में पहले साल से ही उन्हें अमरूद के पौधे से फल मिलने लगे थे। 4 से 5 साल बाद एक हेक्टेयर के बाग से उन्हें 30 से 40 टन की अमरूद की उपज मिल जाती। महक सिंह ने कहा कि हाइ डेंसिटी तकनीक में उन्हें अमरूद के पौधों की समय-समय पर कटाई-छटाई करनी पड़ती है, जिससे नये कल्ले निकलते हैं। उन्हीं कल्लों से अच्छी फलत मिलती है। दूसरी कटाई-छटाई करने से सूरज की रोशनी पौधों के नीचे तक जाती है, जिससे कीट और रोग का प्रकोप कम होता है।
डॉ. बी.पी. शाही ने कहा कि बढ़ती आबादी और घटती ज़मीन के बीच हाइ डेंसिटी बागवानी प्रणाली अपनाकर किसान कम ज़मीन में अच्छी पैदावार ले सकते हैं। यह किसानों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है। इस तकनीक की मदद से किसान आम, अमरुद और सेब समेत कई फलों की बागवानी कर सकते हैं।
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