अपने शरीर की कमियों का पता लगाने के लिए हम ब्लड रिपोर्ट से लेकर अन्य जांच करवाते हैं। किसी तरह की कमी होने पर डॉक्टर विटामिन और प्रोटीन सप्लीमेंट्स लेने की सलाह देते हैं। वैसे ही मिट्टी के स्वास्थ्य का पता लगाने के लिए भी मिट्टी की जांच ज़रूरी है। इसकी जांच के बाद ही विशेषज्ञ किसानों को सलाह देते हैं कि मिट्टी में किन पोषक तत्वों की कमी है और इसे दूर करने के लिए किस तरह की खाद देना ज़रूरी है।
आजकल रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के इस्तेमाल से मिट्टी अधिक प्रदूषित हो रही है। उसकी उपज क्षमता कम होती जा रही है। ऐसे में हर 3 साल में मिट्टी की जांच ज़रूरी है। मिट्टी की जांच किस तरह से की जाती है, यह जानने के लिए किसान ऑफ़ इंडिया की टीम जम्मू कृषि विभाग की मिट्टी जांच प्रयोगशाला (Soil Testing Laboratory) पहुंची।
सही तरीके से मिट्टी का सैंपल लेना बहुत ज़रूरी है
पहले खेत से घास, पत्ते, कंकड़ आदि हटा दें। इसके बाद 6 इंच का V आकार का गड्ढा बनाएं। इसके बाद गड्ढे के ऊपरी हिस्से से खुपरी को ऊपर से नीचे की ओर ले जाएंगे। इस गड्ढे में गिरने वाली मिट्टी को नमूने के तौर पर लें लेंगे। ये प्रक्रिया चार से पाँच बार खेत की अलग-अलग जगह पर दोहराएं। यानी कि खेत से 4 से 5 जगह से मिट्टी लें। अलग-अलग जगह से करीब आधा किलो मिट्टी इकट्ठा कर लें।
200 या 250 ग्राम मिट्टी को सैंपल बैग में भर लें
इकट्ठा की गई मिट्टी को मिला लें और चार हिस्सों में बांट दें। दो हिस्सा मिट्टी का फेंक दें और बाकी दो हिस्से को फिर से एक बार मिलाएं। ऐसा तीन से चार बार करने के बाद जब 200 या 250 ग्राम मिट्टी बच जाए तो इसे सैंपल बैग में भर लें। एक पर्ची में अपना नाम, खेती की जानकारी आदि लिखकर नज़दीकी मिट्टी परिक्षण केंद्र में भेज दें। ध्यान रखें कि नमूना उसी जगह से लें जहां मिट्टी में नमी कम हो, वरना टेस्टिंग करने में देरी होती है।
कैसे होती है मिट्टी की जांच?
जम्मू कृषि विभाग के असिस्टेंट सॉयल केमिस्ट डॉ. नीरज रजवाल ने बताया कि मिट्टी के सैंपल को पहले ग्राइंडिंग और प्रोसेसिंग के ज़रिए पाउडर बनाया जाता है। फिर 12 पैरामीटर पर अलग-अलग मशीनरी से इसकी जांच की जाती है। मिट्टी का ऑर्गेनिक कार्बन टेस्ट किया जाता है। हर जांच में अलग-अलग केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, फिर इसे फिल्टर किया जाता है।
मशीनरी में सैंपल लिक्विड रूप में जाना चाहिए, इसलिए फिल्टर ज़रूरी है। स्पेक्ट्रोफोटोमीटर से सल्फर, फॉस्फोरस के स्तर की जांच की जाती है। पीएच मीटर से मिट्टी के पीएच स्तर को मापा जाता है। इससे मिट्टी के अम्लीय (Acidic) या क्षारीय (Alkaline) होने के बारे में पता चलता है।
फ्लेम फोटोमीटर मशीन से पोटैशियम की मात्रा का विश्लेषण किया जाता है। इसके आधार पर वैज्ञानिक किसानों को सलाह देते हैं कि खेतों में कितना पोटाश डालने की ज़रूरत है। इसके अलावा, मिट्टी में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की उपलब्धता की जांच की जाती है। ज़िंक, आयरन, कॉपर, मैगनीज़ आदि की जांच की जाती है।
मिट्टी का हेल्थ कार्ड
सभी पैरामीटर पर मिट्टी की जांच के बाद सरकारी सॉयल हेल्थ कार्ड पोर्टल पर इसकी जांच रिपोर्ट अपलोड की जाती है। फिर किसान को मिट्टी का हेल्थ रिपोर्ट कार्ड प्रदान किया जाता है, जिसके आधार पर उन्हें यह पता चलता है कि मिट्टी में किन चीज़ों की कमी है और उसे स्वस्थ बनाने के लिए किस तरह के खाद की ज़रूरत है।
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