विश्व वन दिवस 2023 (World Forest Day 2022) की थीम है, ‘वन और स्वास्थ्य’ (Forests and Health)। वन संरक्षण और संवर्धन को लेकर दुनिया भर में जागरुकता लाने के लिए करीब 10 साल पहले 28 नवंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 21 मार्च को विश्व वन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। संयुक्त राष्ट्र की ही रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में वनों का क्षेत्रफल घट रहा है यानी जंगल कम हो रहे हैं। दूसरी ओर, कोरोना के दौरान दुनिया ने ये भी महसूस किया कि जंगलों यानी ग्रीन एरिया ने वैश्विक महामारी की भयावहता को कम किया। ये महज़ इत्तेफाक़ नहीं है कि जहां पेड़-पौधे ज़्यादा हैं, जो वनीय क्षेत्र है, वहां अपेक्षाकृत कम चिकित्सा साधनों के बावजूद कम लोग कोविड 19 की चपेट में आए, जबकि शहरी क्षेत्रों में इस बीमारी ने ज़्यादा तबाही मचाई।
भारत में क़रीब एक चौथाई भू-भाग वन क्षेत्र, दो साल में 2261 वर्ग किमी वन क्षेत्र बढ़ा
भारत में वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 के मुताबिक, कुल 80.9 मिलियन हेक्टेयर भूमि वन और वृक्षों से भरा है। ये देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 फीसदी है। साल 2019 से लेकर 2021 के बीच के 2 वर्षों में भारतीय वन क्षेत्र में 2261 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है। इनमें वन क्षेत्र 1540 वर्ग किमी है, जबकि वृक्षारोपण से 721 वर्ग किमी क्षेत्र बढ़ा है।
अगर इस बढ़ोतरी को राज्यों के संदर्भ में देखा जाए तो आंध्र प्रदेश में 647 वर्ग किमी, तेलंगाना में 632 वर्ग किमी और ओडिशा में 537 वर्ग किमी है। राष्ट्रीय स्तर पर तो क़रीब एक चौथाई भूमि वन क्षेत्र है, लेकिन वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 के आंकड़ों के मुताबिक 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एक तिहाई भूमि वन क्षेत्र है। देश के कई राज्यों की एक बड़ी आबादी की निर्भरता वनों पर है। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कुल क्षेत्रफल के 75 फीसदी से भी ज़्यादा वनक्षेत्र है। इसी तरह देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 33 फीसदी से 75 फीसदी के बीच वन क्षेत्र है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मुताबिक क्षेत्रफल के हिसाब से मध्य प्रदेश देश में सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला राज्य है।
वन संसाधनों का जीडीपी में योगदान
सरकार का लक्ष्य वन क्षेत्रों का सिर्फ विस्तार नहीं है, बल्कि गुणात्मक रूप से समृद्ध करना भी है। यही बात विश्व वन दिवस 2022 की थीम से भी उभर कर आती है, जो वनों से सतत उत्पादन और खपत पर केंद्रित है। वनीय संसाधनों में खनिज, इमारती लकड़ी, ईंधन, वनोपज, औषधियां, पशु चारा के साथ-साथ कार्बन संग्रहण, हवा और पानी भी शामिल हैं।
भारतीय वन प्रबंध संस्थान (आईआईएफएम) जंगलों का आर्थिक मूल्यांकन भी करेगा, जिससे ये पता लगाया जा सकेगा कि वनों का किसी प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में कितना योगदान है। माइनिंग सेक्टर का योगदान तो इसी से समझ में आ जाता है कि कोयला की कथित किल्लत को लेकर हाल ही में देश में चिंता की लहर कई दिनों तक दौड़ती दिख रही थी। कार्बन सिंक में वनों की भूमिका महत्वपूर्ण है, कार्बन उत्सर्जन को सोखने में वनीय क्षेत्र मदद करते हैं।
वनों पर निर्भर हैं वनवासी, बस्तर में वनवासियों की 52 फीसदी आजीविका वनों पर निर्भर
जीवन के लिए वन की ज़रूरत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन राज्यों में वनवासी आबादी ज़्यादा है, वहां वनों के संरक्षण और संवर्धन पर ही उनकी आजीविका काफी हद तक निर्भर है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य के कुल भू-भाग में 44 फीसदी वन क्षेत्र है। इस राज्य के बस्तर क्षेत्र में वनवासियों की 52 फीसदी आजीविका वनों पर निर्भर है। वनवासियों का जीवन और संस्कृति वनों पर आधारित है, यही वजह है कि वनवासी समुदाय पेड़ों को काटे जाने और वन क्षेत्रों के अतिक्रमण के ख़िलाफ़ होते हैं। वनवासी वनों से सिर्फ अपने जीविकोपार्जन के लायक लेते हैं जो वनोपजों के रूप में होता है। महुआ, इमली, चिरौंजी, लाख जैसे लघु वनोपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य छत्तीसगढ़ सरकार ने बढ़ाया था, जिससे कोरोना के दौरान वनवासियों को काफी मदद मिली।
समृद्ध वन और वनीय संसाधन से बढ़ रही है आय, बढ़ रहे हैं रोज़गार
लघु वनोपजों के संग्रहण, प्रसंस्करण यानी प्रोसेसिंग और विपणन में वनवासियों, स्व सहायता समूहों और सरकारी संस्थाओं के मिल कर काम करने के अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं। कोरोनाकाल ने पूरी दुनिया की जीवनशैली में जो परिवर्तन लाया है, उसके तहत वन औषधियों की मांग बढ़ी है। वनोपज प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से वनोत्पाद की गुणवत्ता बेहतर हुई है और उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होने के साथ-साथ मार्केट भी बड़ा होता जा रहा है।
पहले जहां स्थानीय स्तर पर ही वनोपजों की खरीद-बिक्री हो पाती थी, वहीं अब ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म्स पर भी उत्पादक, विक्रेता और खरीदार जुड़ पाते हैं। जंगलों से आय बढ़ाने में इस तरह के कदम असरदार हो सकते हैं और इन कदमों से रोज़गार के अवसर भी बढ़ रहे हैं।
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