आजकल मौसम में काफ़ी बदलाव देखने को मिल रहा रहा है। ऐसे बदलते मौसम में रबी फसलों और पेड़-पौधों को नुकसान होने की संभावना अधिक रहती है। जिस दिन ठंड ज़्यादा हो, शाम को हवा न चले, रात में आसमान साफ़ हो और आर्द्रता प्रतिशत ज़्यादा हो तो उस रात पाला पड़ने की संभावना सबसे ज़्यादा होती है। रात में जब वातावरण का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या उससे नीचे चला जाता है तो हवा का प्रवाह रुक जाता है, जिससे पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर पानी जमा हो जाता है और ठोस बर्फ की एक पतली परत बन जाती है। इसे ही पाला कहते हैं। पाला पड़ने से किसानों को फसलों के भारी नुकसान से दो-चार होना पड़ता है। इस समस्या और इसके समाधान को लेकर Kisan of India ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज पश्चिम चंपारण के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ एवं हेड डॉ आर.पी. सिंह से ख़ास बातचीत की।
डॉ. आर.पी. सिंह बताते हैं कि पाला, पौधे की कोशिका की दीवारों को नुकसान पहुंचाता है और कोशिका छिद्र (Stomata) को नष्ट कर देता है। पाला कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और वाष्प के आदान-प्रदान को भी बाधित करता है। इसकी वजह से पौधे की पत्तियां और फूल मुरझा जाते हैं। झुलस कर बदरंग हो जाते हैं, दाने छोटे बनते हैं और फूल झड़ने लग जाते हैं। नतीजतन फसलों का उत्पादन प्रभावित होता है।
डॉ. सिंह के अनुसार, पाला पड़ने से आलू, टमाटर, मटर, मसूर, सरसों, बैगन, अलसी, जीरा, अरहर, धनिया, पपीता और रोपित फसलें अधिक प्रभावित होती हैं। पाला ज़्यादा होने पर गेहूं, जौ, गन्ना आदि फसलें भी इसकी चपेट में आ जाती हैं। शीत लहर और पाले के प्रभाव से सर्दी के मौसम में लगभग सभी फसलों को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है। टमाटर, मिर्च, बैगन, पपीता केला, मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, आदि फसलों को 70 से 80 फ़ीसदी तक नुकसान हो सकता है। अरहर, चना, मटर में 60 से 70 फीसदी, गन्ने में 50 फीसदी और गेहूं व जौ में 10 से 20 फ़ीसदी का नुकसान होने का डर रहता है।
डॉ. आर.पी. सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताए पाले से बचाव के निम्न तरीके:
- खेतों की मेड़ों पर घास-फूस जलाकर धुआं करें, ऐसा करने से फसलों के आसपास का वातावरण गर्म हो जाता है। पाले के प्रभाव से फसलें बच जाती हैं।
- पाले से बचाव के लिए फसलों में सिंचाई करें। सिंचाई करने से फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ता है ।
- फसल को पाले से बचाने के लिए एक रस्सी लें। रस्सी के दोनों सिरों को पकड़कर खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते रहें। इससे फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है।
- अगर किसान नर्सरी तैयार कर रहे हैं तो उसको घास-फूस की टाटिया बनाकर या प्लास्टिक से ढके। साथ ही, ध्यान रखें कि दक्षिण पूर्व भाग खुला रहे ताकि सुबह और दोपहर धूप मिलती रहे।
- पाले से बचाव के लिए उत्तर पश्चिम मेड़ पर तथा बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु रोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल, खेजड़ी, शहतूत, आम तथा जामुन आदि को लगाएं। इस तरह से लंबे समय के लिए सर्दियों में पाले से फसलों को बचाया जा सकता है।
- अगर किसान भाई फसलों पर गुनगुने पानी का छिड़काव करते हैं तो फसलें पाले से बच जाती हैं।
- पाला पड़ने के दिनों में यूरिया का 20 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर 15-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें, अथवा घुलनशील सल्फर 80% डब्लू डी जी की 40 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है। ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है। वह जम नहीं पाता और फसलें पाले से बच जाती हैं।
- फसलों को पाले से बचाव के लिए म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की 15 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं।
- किसान भाई फसलों को पाले से बचाने के लिए ग्लूकोज 25 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- फसलों को पाले से बचाव के लिए एनपीके 100 ग्राम एवं 25 ग्राम एग्रोमीन प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है।
डॉ. आर.पी. सिंह का कहना है कि आजकल आंधी और बारिश की वजह से भी सरसों, गेहूं, चना, मसूर, अरहर, की फसल की नुकसान की संभावना ज़्यादा रहती है।
- अधिक पानी बरसने से फफूंद लगने के कारण सरसों की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- बारिश और आंधी से जो गेहूं की फसल गिर गई है उनमें भी उत्पादन प्रभावित होगा। गिरी हुई पौध में दानों का पूर्णरूपेण विकास नहीं होगा, दाने सिकुड़ जाएंगे, दानों का वज़न घटेगा।
- इसी तरह से चना, मसूर व अरहर में बारिश तथा तेज हवाओं से फ़ूल गिरने की वजह से ऐसी समुचित फलियों का निर्माण न होने के कारण उत्पादन प्रभावित होगा।
- अगर 2 से 3 दिनों तक बूंदा-बांदी होती रहती है तो फसलों पर रोग एवं कीट का प्रकोप अधिक होता है।
डॉ. सिंह ने कहा कि ऐसी दशा में किसानों को निम्न उपाय अपनाने चाहिए:
- जिस खेत में अधिक पानी भर गया हो उसमें से पानी निकाल दें।
- अगर सरसों की कटाई हो गई है तो फसल को अच्छी तरह सूखाकर मड़ाई का कार्य करें।
- चना, मसूर, अरहर की फसल में मौसम साफ होने पर फली छेदक कीट नियंत्रण हेतु इमामेक्तीन बेंजोएट की 1 ग्राम मात्रा प्रति 2 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
इन उपायों को अपनाकर किसान अपनी रबी फसलों को पाले और बदलते मौसम से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।