26 जनवरी को दिल्ली में किसानों द्वारा निकाली गई ट्रैक्टर रैली में मचे हुडदंग के बाद एक तरफ जहां बहुत से लोग किसान आंदोलन में शामिल हुए अराजक तत्वों को इसका जिम्मेदार बता रहे हैं तो दूसरी ओर कुछ लोग प्रदर्शनकारियों के ही विरोध में उतर आए हैं।
ऐसे में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने एक खुला पत्र लिखकर देशवासियों से अपील की है। पाठकों के लिए Kisan of India यहां पर उनके पत्र को ज्यों का त्यों दे रहा है।
पिछले कई महीनों से अनुकरणीय पारदर्शिता, संयम और शांतिमयता के साथ चल रहे किसान आंदोलन की आड़ में 26 जनवरी को जो अराजकता हुई उससे देश के हम लोकतांत्रिक व शांतिप्रिय नागरिकों को गहरी पीड़ा हुई है. यह किसी आंदोलन के समथर्न या विरोध करने का सवाल नहीं है, यह देश की लोकतांत्रिक, गांधी-विरासत के सम्मान व पालन का सवाल है. हम सरकार को भी और समाज को भी सावधान करते हैं कि लोकतंत्र व संविधान की लक्ष्मण-रेखा के उल्लंघन से अराजकता व विघटन के अलावा दूसरा कुछ भी हाथ नहीं आएगा. देश जिस नाजुक दौर पर गुजर रहा है उसका पहला तकाजा है कि सत्ता व समाज दोनों इस लक्ष्मण-रेखा का सम्मान करें.
महात्मा गांधी ने जिसे ‘जगत का पिता’ कहा था उन किसानों के आंदोलन को इस बात का श्रेय है कि उसने शांतिमय प्रतिकार का एक नया प्रतिमान बनाया है. 26 जनवरी की घटनाओं के बाद भी उन्होंने न धैर्य खोया है, न शांति का रास्ता छोड़ा है. तमाम सरकारी व प्रशासनिक ज्यादतियों के बावजूद वे अपना
आंदोलन मजबूत ही करते जा रहे हैं. आजादी के बाद से ही खेती-किसानी के साथ जो राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक अन्याय होता आया है, वह किसी से छुपा नहीं है. इस अन्याय का सामना करने में असमर्थ लाखों किसानों ने अब तक आत्महत्या कर ली है. किसान आंदोलन उनके लिए न्याय मांगने व दूसरे
किसानों को वैसी असमथर्ता से बचाने का आंदोलन है. यह भारत के समस्त नागिरकों का आंदोलन है, क्योंकि हम सभी निरपवाद रूप से किसानों के बेटे हैं, किसानों का दिया खाते-पीते हैं. इसलिए इस आंदोलन का सम्मान करना हम सबके लिए नमक का कर्ज अदा करने के बराबर है.
अब यह बात साफ हो चुकी है कि 26 जनवरी की अराजकता के पीछे किसान आंदोलन नहीं, उसकी आड़ में छिपी आपराधिक शक्तियां और उनके साथ साठ-गांठ रखने वाली यथास्थिति की ताकतें थीं. हम मानते हैं कि किसान आंदोलन की चूक यह हुई कि वह अपने भीतर की इन ताकतों को पहचानने
और उन्हें अलग-थलग करने में विफल हुआ. लेकिन विफलता बेईमानी नहीं होती है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी नागिरकों के शांतिमय प्रदशर्न के अधिकार को संविधानसम्मत बताया है. इसलिए अब न्यायालय और सरकार की यह नैतिक जिम्मेवारी है कि नागिरकों के संविधानसम्मत अधिकार को छल से विफल करने वाले आपराधिक तत्वों और उनकी सहकारी ताकतों का वह पता लगाए और देश को बताए. इसके बगैर अब इन दोनों की विश्वसनीयता भी दांव पर लग गई है. भारतीय जनता के बनाए संविधान से बनी व्यवस्था के किसी भी अंग को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसका अस्तित्व लोक से ही बना है और उसी के भरोसे टिका है.
हम गांधी-जन किसानों से कहना चाहते हैं कि वे अपना संघर्ष चलाते हुए शांति व सच्चाई के रास्ते से न डिगें. वही रास्ता सबकी मंगलमय सफलता का रास्ता है.
- कुमार प्रशांत, अध्यक्ष, गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली
- रामचंद्र राही, अध्यक्ष, गांधी स्मारक निधि, नई दिल्ली
- चंदनपाल, अध्यक्ष, सर्व सेवा संघ, सेवाग्राम, वर्धा
- डॉ. विश्वजीत एवं अजमत खान, राष्ट्रीय संयोजक, राष्ट्रीय युवा संगठन, वर्धा