देश की आज़ादी का 75वां साल अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है और इसी अवसर पर खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने एक नई पहल की है। इस पहल के तहत बांस के उत्पादन को प्रोत्साहन देकर किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय स्तरों पर संबंधित उद्योगों का विकास और रोजगार के नए अवसरों का सृजन करने का लक्ष्य रखा गया है।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने लेह-लद्दाख के हिमालयी इलाकों में बंजर भूमि पर बांस के पौधे लगाकर हरित क्षेत्र विकसित करने की पहल की है। KVIC और लेह-लद्दाख के वन विभाग ने भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (ITBP) के सहयोग से इसे शुरू किया है। लेह के गांव चुचोट में 2.50 लाख वर्ग फुट से अधिक बंजर वन भूमि में 1000 बांस के पौधे लगाए गए। जिस जमीन पर अब तक कुछ भी नहीं हो रहा था, अब वहां बांस के उत्पादन को बल मिलेगा।
जानिए क्या है ‘प्रोजेक्ट बोल्ड’
केवीआईसी के ‘प्रोजेक्ट बोल्ड’ के तहत ये बांस के पौधे लगाए गए हैं। ‘प्रोजेक्ट बोल्ड’ (बैंबू ओएसिस ऑन लैंड इन ड्राउट) ‘खादी बांस महोत्सव’ का एक हिस्सा है। KVIC के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना ने स्थानीय पार्षदों, ग्राम सरपंच और आईटीबीपी के अधिकारियों की उपस्थिति में इस बांस वृक्षारोपण अभियान की शुरुआत की।
किसानों के लिए कैसे होगा मददगार
बांस के उत्पादन से इन हिमालयी क्षेत्रों में कई नए अवसर खुलेंगे। लेह में बांस के पौधों का वृक्षारोपण स्थानीय ग्रामीण और बांस आधारित उद्योगों का समर्थन कर विकास का एक स्थायी मॉडल तैयार करेगा। लेह लद्दाख के मठों में बड़ी मात्रा में अगरबत्ती का उपयोग होता है, जिन्हें बड़े पैमाने पर अन्य राज्यों से मँगवाया जाता है। ऐसे में इस क्षेत्र में ही बांस का उत्पादन किसानों की आय का एक स्रोत बन सकता है, जो स्थानीय अगरबत्ती उद्योग के विकास को भी बढ़ावा देगा। क्षेत्र में बांस के उत्पादन से कई अन्य बांस आधारित उद्योगों जैसे फर्नीचर, हस्तशिल्प को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे। उधर बांस के कचरे का इस्तेमाल लकड़ी का कोयला और ईंधन ब्रिकेट बनाने में किया जा सकता है। इसके अलावा, बांस अन्य पौधों की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन का उत्सर्जन करता है, जो ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी को कम कर सकता है।
कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद लगाए बांस के पौधे
केवीआईसी के अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि लेह में बांस के रोपण का प्रयोग क्षेत्र की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। लेह में भूमि का एक विशाल क्षेत्र सैकड़ों वर्षों से अनुपयोगी पड़ा है। इस वजह से इस क्षेत्र की काली मिट्टी भी अधिकांश स्थानों पर चट्टानों में बदल गई है। इस वजह से बांस के रोपण के लिए गड्ढों की खुदाई करना एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था। गड्ढों को खोदते समय इन मिट्टी की कठोर गाठों को सबसे पहले तोड़ा गया और गड्ढों में भर गया ताकि बांस की जड़ों को बढ़ने के लिए एक नरम जमीन मिल सके।