कृषि क्षेत्र में युवाओं की भागीदारी काफ़ी अहम है। देश के कई ऐसे युवा हैं, जिन्होंने अपनी प्राइवेट सेक्टर की नौकरी छोड़ खेती-किसानी को अपनी कर्मभूमि बनाया है। एक ऐसे ही युवा किसान हैं लखनऊ के रहने वाले दीपेश कुमार चौहान। दीपेश और उनके साथियों ने एक ऐसा फ़ार्मिंग मॉडल तैयार किया है, जिसमें न सिर्फ़ जैविक खेती पर ज़ोर दिया जाता है, बल्कि मछली पालन, गौपालन, मधूमक्खी पालन जैसी कई गतिविधियों के ज़रिए युवकों को अपने साथ जोड़ने का काम भी किया है।
दीपेश और उनके साथी 7 क्रॉप फाऊंडेशन के नाम से एनजीओ और आर्गेनिक फॉर यू फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से कंपनी संचालित करते हैं। कृषि प्रेमी व 7 क्रॉप फाउंडेशन के पदाधिकारी श्याम कुमार, विवेक मिश्रा, दीपेश कुमार, साथ ही कृषि सहायक कर्ता काजा नागराजू, मत्स्य पालन सहायक कर्ता अदीब हैदर, प्रयावरण रक्षक विपिन कपूर, मधु मक्खी एक्सपर्ट डॉ. नितिन सिंह के हाथों में तमाम गतिविधियों के संचालन की ज़िम्मेदारी है। Kisan of India से ख़ास बातचीत में दीपेश कुमार चौहान ने जैविक खेती और किसानों की आय में बढ़ोतरी जैसे विषयों पर हमसे बात की।
नौकरी छोड़ पकड़ी खेती की राह
दीपेश और उनके साथियों ने 2016 में कॉर्पोरेट सेक्टर की अच्छी नौकरी छोड़कर खेती-किसानी की राह पकड़ ली। दीपेश बताते हैं कि उन्होंने और उनके साथियों ने पहले जॉब छोड़ी। फिर खेती की बारीकियों को जानने के लिए वो फ़ील्ड पर निकल पड़े। उन्होंने कई प्रगतिशील किसानों और कृषि संस्थानों का दौरा किया।
इस दौरान वो मध्य प्रदेश के सागर ज़िले के प्रगतिशील किसान आकाश चौरसिया के संपर्क में आए। दीपेश को मल्टीलेयर फ़ार्मिंग और उन्नत खेती के 72 मॉडल तैयार करने का श्रेय जाता है। आकाश चौरसिया को कृषि में उनके योगदान के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है। दीपेश ने बताया कि उनसे जुड़कर कई ट्रेनिंग प्रोग्राम्स शुरू किये। उनके साथ रहकर ही जैविक खेती से जुड़ी कई बातें जानी।
आगे दीपेश कहते हैं कि पहले जहां लोग 100 साल तक भी जीते थे। अब औसतन आयु सीमा कम होती जा रही है। इसकी एक मुख्य वजह खान-पान है। पहले चीज़ें मिलावटी नहीं होती थी। उनमें किसी तरह के केमिकल का छिड़काव नहीं होता था। दीपेश ने बताया कि इन बातों को गांठ बांधते हुए उन्होंने जैविक खेती का रूख किया और लोगों को स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराने के अपने लक्ष्य पर काम करने लगे।
कोरोना काल में घर-घर जाकर पहुंचाई जैविक सब्जियां
आज की तारीख में लखनऊ के इटौंजा में Alibagh-World of Organic Farming के नाम से उनका फ़ार्म करीब 100 एकड़ के क्षेत्र में बना हुआ है। उनके फ़ार्म में बड़े स्तर पर आधुनिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। फ़ार्म में समय-समय पर जैविक खेती को लेकर ट्रेनिंग सेशन भी आयोजित किये जाते हैं। किसानों को खेती-किसानी की बारीकियों के बारे जानकारी दी जाती है। दीपेश और उनके साथी 7 क्रॉप फाऊंडेशन के नाम से एनजीओ और आर्गेनिक फॉर यू फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से कंपनी संचालित करते हैं। दीपेश बताते हैं कि 2021 में कोरोना काल में उन्होंने लोगों के घर-घर जाकर सब्जियां पहुंचाई, जिसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया।
मार्केटिंग का लीक से हटकर कॉन्सेप्ट
दीपेश बताते हैं कि उन्होंने ऑर्गेनिक खेती की मार्केटिंग का भी हटकर कॉन्सेप्ट रखा है। उन्होंने फूलों के गुलदस्ते की तर्ज पर सब्जियों का गुलदस्ता बनाया है। उनका ये कॉन्सेप्ट काफ़ी हिट हुआ। सब्जियों का ये गुलदस्ता उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री से लेकर कृषि मंत्री तक पहुंचा। यही नहीं, बर्थडे से लेकर शादी की सालगिरह जैसे कई कार्यक्रमों में सब्जियों का ये गुलदस्ता हिट रहा है।
खस की खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद
दीपेश ने आगे बताया कि एनजीओ 7 क्रॉप फाऊंडेशन का उद्देश्य लोगों को जैविक उत्पादों और फॉरेस्ट फ़ार्मिंग के प्रति जागरूक करना है। दीपेश कहते हैं कि कुछ किसान पारंपरिक फसलों जैसे धान और गेंहू तक ही सीमित रहना चाहते हैं, ऐसे मे आमदनी बढ़ोतरी नहीं हो पाती। स्थिति जस की तस रहती है। इसके लिए उन्होंने अपने फ़ार्म से ही लेमन ग्रास और खस की खेती शुरू की और आस पास के किसानों को इसके फ़ायदों के बारे में बताया।
दीपेश ने कहा कि थोड़े बहुत किसान जो पहले खस की खेती किया भी करते थे, वो पौधों को जला देते थे, पत्तियों को फेंक देते थे, क्योंकि वो सिर्फ़ तेल प्राप्त करने के लिए ही खस की खेती करते थे। दीपेश ने बताया कि उनकी संस्था ने किसानों को खस की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उनसे खस के पौधे खरीदने शुरू किये।
वो कहते हैं कि किसानों को खस की जड़ से निकलने वाले तेल से एक से डेढ़ लाख रुपये की कमाई तो होती ही है, इसके अतिरिक्त, पौधों से भी आमदनी का ज़रिया बनता है। उनकी संस्था किसानों से खस के पौधे और पत्तियां खरीदती है। जो पौधे और पत्तियां किसानों के लिए कचरे के समान था, उससे भी आमदनी हो रही है। खरीदे गए इन पौधों को देश के अलग-अलग राज्यों में मांग के हिसाब से बेचा जाता है। किसानों से खस की पत्तियां 2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदी जाती हैं। इसके अलावा, पौधे 35 हज़ार रुपये प्रति ट्रक के हिसाब से खरीदे जाते हैं।
क्या है खस की फसल?
खस एक झाड़ीनुमा फसल है। खस की जड़ों से निकलने वाला तेल काफ़ी महंगा बिकता है। अंग्रेज़ी में इसे Vetiver कहते हैं। दीपेश ने बताया कि जंगली खस का तेल 50 से 60 हज़ार रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक जाता है। खस के तेल का इस्तेमाल इत्र, सुगंधित पदार्थों, कॉस्मेटिक, शर्बत और दवाइयों में होता है। तेल के अतिरिक्त खस की जड़े हस्तशिल्प समेत कई तरह से काम आती हैं। खस की फसल बंजर और बलुई मिट्टी पर भी पैदा हो सकती है। तालाबों के किनारे भी इन्हें लगा कर मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है, क्योंकि इनकी जड़ें बहुत गहराई तक होती है। खस की फसल को कोई जंगली जानवर नहीं खाता।
देशभर में लगाए 10 करोड़ खस के पौधे
दीपेश ने आगे बताया कि उनकी संस्था 2021 में 10 करोड़ खस के पौधे देशभर में डिलिवर कर चुकी है। ये पौधे वो किसानों से ही खरीदते हैं। वो देशभर के खस उत्पादक किसानों से फसल लेते हैं। इस साल 2022 में संस्था का लक्ष्य फॉरेस्ट डेवलपमेंट के तहत एक लाख हेक्टेयर में 100 करोड़ पेड़ लगाने का है।
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फॉरेस्ट टूरिज़्म को दे रहे बढ़ावा
फ़ार्म Alibagh-World of Organic Farming फॉरेस्ट टूरिज़्म को भी बढ़ावा दे रहा है। यहां देश के अलग-अलग कोनों से लोग आते हैं, जिन्हें गाँव की जीवनशैली से रूबरू कराया जाता है। दीपेश कहते हैं कि उनका मकसद है कि युवाओं को उस परिश्रम के बारे में बताया जाए, जिसके ज़रिए भोजन उनकी थालियों में पहुंचता है। यहां आने वाले लोगों को खेती से जुड़ी जानकारी दी जाती है ताकि वो इसके पीछे की मेहनत को समझ सकें।
आवारा गायों को करते हैं रेस्क्यू
उनकी संस्था गौपालन से भी जुड़ी है। जिन गायों को लोग छोड़ देते हैं, जो गायें सड़कों पर आवारा घूमती हैं, उन्हें संस्था रेस्क्यू करती है और अपने फ़ार्म पर लेकर आती है।
उनके फ़ार्म में ग्राहक की मांग के हिसाब से भी सब्जियां उगाई जाती हैं। उनके इस कॉन्सेप्ट के साथ देशभर के किसान जुड़े हुए हैं। अगर आप 9 से 10 लोगों का ग्रुप हैं तो आप उनके फ़ार्म से संपर्क कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप उत्तर प्रदेश के अलावा किसी दूसरे राज्य से आते हैं तो दीपेश की संस्था उस राज्य के किसानों से संपर्क कर आपको जैविक उत्पादों की उपलब्धता कराती है।
अभी उनके संस्थान के साथ करीबन 5 हज़ार लोग जुड़े हुए हैं। इनमें किसान, उद्यमी और कई वैज्ञानिक शामिल हैं। दीपेश कहते हैं कि आज के युवाओं में खेती के प्रति लगाव को बनाए रखना ज़रूरी है क्योंकि ये युवा ही खेती का भविष्य हैं।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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