महोगनी की खेती (Mahogany Farming): खेती से कमाई बढ़ाने के उपायों के लिहाज़ से महोगनी (Mahogany) का जवाब नहीं। हालाँकि, महोगनी की खेती दीर्घकालिक निवेश की तरह हैं, क्योंकि इसके पौधों को पेड़ बनकर किसान का शानदार ‘कमाऊ पूत’ बनने में चार-पाँच साल लगते हैं। महोगनी के पौधों को परिपक्व पेड़ का रूप हासिल करने में क़रीब 6 साल लगते हैं।
ऐसा नहीं है कि महोगनी की खेती के इच्छुक किसानों को अपनी नियमित आमदनी की क़ुर्बानी देनी पड़ती हो, क्योंकि इसके पौधों को दलहल की फसल वाले खेतों में लगाना सबसे उपयुक्त रहता है। परिपक्व होने तक महोगनी के पौधे किसानों के लिए किसी आर्थिक तंगी का सबब नहीं बनते बल्कि दलहन के पौधों के लिए क़ुदरती खाद के सबसे अनमोल स्रोत ‘नाइट्रोजन’ की उचित मात्रा की सप्लाई करते रहते हैं।
महोगनी की खेती के लिए कैसी जलवायु चाहिए?
महोगनी के पेड़ की लम्बाई 40 से 200 फीट तक हो सकती है। लेकिन भारत में असली औसत लम्बाई 60 फीट के आसपास रहती है। इसकी जड़ें ज़्यादा गहराई में नहीं जाती। इसीलिए इसे ज़रा नाज़ुक मानते हैं और तेज़ हवाओं वाले इलाकों में लगाने से संकोच करते हैं। महोगनी को जल भराव वाली भूमि को छोड़ किसी भी उपजाऊ भूमि में लगा सकते हैं। इसे ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए दलहन वाले खेत इसके लिए बेहतरीन होते हैं।
महोगनी को उष्णकटिबंधीय जलवायु पसन्द है। इसीलिए पहाड़ी और ज़्यादा वर्षा वाले इलाकों के सिवाय इसे पूरे भारत में उगा सकते हैं। इसके बीज को अंकुरण और विकास के लिए सामान्य तापमान ही सुहाता है। शुरुआत वर्षों में महोगनी के पौधों को ज़्यादा गर्मी और सर्दी से बचाना पड़ता है। लेकिन विकसित पेड़ सर्दियों में 15 डिग्री सेल्सियस और गर्मियों में 35 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भी ढंग से विकसित होते रहते हैं।
महोगनी की खेती के लिए उन्नत किस्में
महोगनी की भारतीय किस्म नहीं है। अभी तक इसे पाँच विदेशी कलमी के ज़रिये ही उगाया जाता है। इसे क्यूबन, मैक्सिकन, अफ्रीकन, न्यूज़ीलैंड और होन्डूरन किस्में कहते हैं। सभी किस्मों के पौधों को उपज और बीजों की गुणवत्ता के आधार पर तैयार किया जाता है। महोगनी के पौधों की उचित देखभाल के लिए किसान को मेहनत करनी पड़ती है। इसीलिए सरकारी रजिस्टर्ड कम्पनी या नर्सरी से दो-तीन साल पुराने और अच्छे ढंग से विकासित हो रहे पौधों को अपनाना ज़्यादा फ़ायदेमन्द रहता है। ज़ाहिर है, महोगनी उन लोगों को लिए भी फ़ायदे का सौदा है जो नर्सरी चलाते हैं।
बेजोड़ है महोगनी की रोग प्रतिरोधकता
अपने औषधीय गुणों की वजह से महोगनी के पेड़ों पर कोई रोग नहीं लगता। लिहाज़ा, इसे कीटनाशक की ज़रूरत नहीं पड़ती। उल्टा इसकी पत्तियों का इस्तेमाल कीटनाशक बनाने में भी होता है। लेकिन ज़्यादा वक़्त तक जल भराव की चपेट में आने पर इसका तना गलने की तकलीफ़ पैदा हो सकती है।
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कैसे लगाएं महोगनी के पेड़?
महोगनी के पौधों की रोपाई के लिए जून-जुलाई का वक़्त बेहतरीन है। इसके बाद मॉनसून का दौर पौधों के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बन जाता है। इसके लिए खेत को गहरी जुताई के बाद समतल कर लें। फिर तीन से चार मीटर की दूरी पर तीन फीट चौड़ाई पर दो फीट गहराई वाले गड्ढों की पंक्तियाँ बनाकर पौधे लगाएँ। गड्ढों को जैविक और रासायनिक खाद मिलायी हुई मिट्टी से पाटें और हल्की सिंचाई कर दें।
गर्मियों में पौधों को 5 से 7 दिन पर पानी दें और सर्दियों में 10 से 15 दिन पर। बड़े होते पौधों की पानी की ज़रूरत घटती जाती है। विकसित पेड़ों के लिए साल में 5 से 6 सिंचाई पर्याप्त है। ज़रूरत के मुताबिक, निराई-गुड़ाई करते रहें। नज़दीकी कृषि विकास केन्द्र के विशेषज्ञों का मशविरा लेकर यदि महोगनी की खेती की अपनाया जाए तो 12-15 साल बाद जब पेड़ों को काटकर उनकी लकड़ी को बेचने का वक़्त आता है, तब तक प्रति एकड़ करोड़ों की कमाई हो जाती है।
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बेहद क़ीमती है महोगनी के उत्पाद
व्यापारिक दृष्टि से महोगनी के पेड़ बेहद क़ीमती माने जाते हैं, क्योंकि इसके हरेक भाग मसलन, पत्ती, फूल, बीज, खाल और लकड़ी, सभी की माँग होती है और सबका अच्छा दाम मिलता है। महोगनी की लकड़ी का इस्तेमाल जहाज़, फर्नीचर, प्लाईवुड, सज़ावट की चीज़ों और मूर्तियों वग़ैरह को बनाने में किया जाता है। महोगनी की लकड़ी भी दो हज़ार रुपये प्रति घन फीट के भाव तक बिकती है। इसके बीज और फूलों का इस्तेमाल शक्तिवर्धक दवाईयाँ बनाने में होता है। महोगनी को कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग यानी ठेके पर होने वाली खेती के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है। इसीलिए बेजोड़ गुणों वाले महोगनी के पेड़ को किसानों का कमाऊ पूत कहा गया है।
महोगनी की खेती की लागत
एक एकड़ में महोगनी के 1200 से 1500 पेड़ उगाये जा सकते हैं। इसके पौधे 25-30 रुपये से लेकर 100-200 रुपये तक होती है। इसका दाम इस पर निर्भर करता है कि रोपाई के इस्तेमाल होने जा रहे पौधे की उम्र कितनी है और इसका विकास कैसा हुआ है? इसके अलावा खाद, मज़दूरी और अन्य खर्चों को जोड़कर देखे तो औसतन प्रति एकड़ लागत डेढ़ से ढाई लाख रुपये तक होती है।
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